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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 108 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 108/ मन्त्र 1
    ऋषिः - नृमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१०८
    4

    त्वं न॑ इ॒न्द्रा भ॑रँ॒ ओजो॑ नृ॒म्णं श॑तक्रतो विचर्षणे। आ वी॒रं पृ॑तना॒षह॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । न॒: । इ॒न्द्र॒ । आ । भ॒र॒ । ओज॑: । नृ॒म्णम् । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । वि॒ऽच॒र्ष॒णे॒ ॥ आ । वी॒रम् । पृ॒त॒ना॒ऽसह॑म् ॥१०८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं न इन्द्रा भरँ ओजो नृम्णं शतक्रतो विचर्षणे। आ वीरं पृतनाषहम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । न: । इन्द्र । आ । भर । ओज: । नृम्णम् । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । विऽचर्षणे ॥ आ । वीरम् । पृतनाऽसहम् ॥१०८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 108; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर की प्रार्थना का उपदेश।

    पदार्थ

    (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्म करनेवाले ! (विचर्षणे) हे विविध प्रकार देखनेवाले ! (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर] (त्वम्) तू (नः) हमारे लिये (ओजः) बल, (नृम्णम्) धन (आ) और (पृतनासहम्) संग्राम जीतनेवाले (वीरम्) वीर को (आ) भले प्रकार (भर) पुष्ट कर ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर से प्रार्थना करके प्रयत्नपूर्वक बलवान्, धनवान् और वीर पुरुषोंवाले होवें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह तृच ऋग्वेद में है-८।९८ [सायणभाष्य ८७]।१०-१२, सामवेद-उ० ४।२। तृच १३; मन्त्र १ साम० पू० २।२।७ ॥ १−(त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् जगदीश्वर (आ) समन्तात् (भर) पोषय (ओजः) बलम् (नृम्णम्) धनम् (शतक्रतो) बहुकर्मन् (विचर्षणे) विविधद्रष्टः (आ) समुच्चये (वीरम्) वीर्योपेतम् (पृतनासहम्) संग्रामजेतारम् ॥

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    विषय

    ओज+नृम्ण

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन्-परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (त्वम्) = आप (न:) = हमारे लिए (ओजः) = बल को तथा (नृम्णम्) = धन को (आभर) = प्राप्त कराइए। २. हे (शतक्रतो) = अनन्त प्रज्ञान व शक्तिवाले (विचर्षणे) = सबके द्रष्टा प्रभो! आप हमें (पृतनापहम्) = शत्रु-सेनाओं का अभिभव करनेवाले (वीरम्) = वीर सन्तान को आ [भर]-प्राप्त कराइए।

    भावार्थ

    प्रभु का उपासन करते हुए हम बल, धन व वीर सन्तान को प्राप्त करके सुखी जीवनवाले हों।

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    भाषार्थ

    (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्मों वाले महाप्रज्ञ! (विचर्षणे) हे विश्वद्रष्टा, (इन्द्र) परमेश्वर! (त्वम्) आप (नः) हमें (ओजः) ओज अर्थात् तेज, (नृम्णम्) बल और धन (आ भर) दीजिये; (वीरम्) और वीर-सन्तान (आ) दीजिए, जो कि (पृतनाषहम्) काम-क्रोध आदि की सेनाओं को परास्त कर सके।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    Indra, lord of vision and hero of a hundred great actions, bring us abundant and illustrious strength, courage and procreative energy by which we may fight out and win many battles of our life.

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    Translation

    O Almighty God, you please bring us vigour, riches and hero conquering the; battle. O strong one, you are the observer of all, and possessor of hundred of skills and acts.

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    Translation

    O Almighty God, you please bring us vigor, niches and hero conquering the battle. O strong one, you are the observer of all, and possessor’ of hundred of skills and acts.

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    Translation

    O Shelterer of hundred-fold Intelligence, Thou art our Father and mother. That is why we pray for peace and prosperity from Thee.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह तृच ऋग्वेद में है-८।९८ [सायणभाष्य ८७]।१०-१२, सामवेद-उ० ४।२। तृच १३; मन्त्र १ साम० पू० २।२।७ ॥ १−(त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् जगदीश्वर (आ) समन्तात् (भर) पोषय (ओजः) बलम् (नृम्णम्) धनम् (शतक्रतो) बहुकर्मन् (विचर्षणे) विविधद्रष्टः (आ) समुच्चये (वीरम्) वीर्योपेतम् (पृतनासहम्) संग्रामजेतारम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরপ্রার্থনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (শতক্রতো) হে শত/বহু কর্মকারী! (বিচর্ষণে) হে বিবিধ প্রকারে দ্রষ্টা! (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [মহান ঐশ্বর্যের জগদীশ্বর] (ত্বম্) তুমি (নঃ) আমাদের জন্য (ওজঃ) বল, (নৃম্ণম্) ধন (আ) এবং (পৃতনাসহম্) যুদ্ধ বিজয়ী (বীরম্) বীরকে (আ) উত্তম প্রকারে (ভর) পুষ্ট করো॥১॥

    भावार्थ

    মনুষ্য পরমেশ্বরের নিকট প্রার্থনা করে বলবান, ধনবান এবং বীর পুরুষের অধিকারী হোক॥১॥ এই তৃচ ঋগ্বেদে আছে-৮।৯৮ [সায়ণভাষ্য ৮৭]।১০-১২, সামবেদ-উ০ ৪।২। তৃচ ১৩; মন্ত্র ১ সাম০ পূ০ ২।২।৭ ॥

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    भाषार्थ

    (শতক্রতো) হে শত কর্মযুক্ত মহাপ্রজ্ঞ! (বিচর্ষণে) হে বিশ্বদ্রষ্টা, (ইন্দ্র) পরমেশ্বর! (ত্বম্) আপনি (নঃ) আমাদ (ওজঃ) ওজ অর্থাৎ তেজ, (নৃম্ণম্) বল এবং ধন (আ ভর) প্রদান করুন; (বীরম্) এবং বীর-সন্তান (আ) প্রদান করুন, যা (পৃতনাষহম্) কাম-ক্রোধ প্রভৃতির সেনাদের পরাস্ত করতে পারে।

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