अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 112/ मन्त्र 1
यद॒द्य कच्च॑ वृत्रहन्नु॒दगा॑ अ॒भि सू॑र्य। सर्वं॒ तदि॑न्द्र ते॒ वशे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । अ॒द्य । कत् । च॒ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । उ॒त्ऽगा॑: । अ॒भि । सू॒र्य॒ ॥ सर्व॑म् । तत् । इ॒न्द्र॒ । ते॒ । वशे॑ ॥११२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यदद्य कच्च वृत्रहन्नुदगा अभि सूर्य। सर्वं तदिन्द्र ते वशे ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । अद्य । कत् । च । वृत्रऽहन् । उत्ऽगा: । अभि । सूर्य ॥ सर्वम् । तत् । इन्द्र । ते । वशे ॥११२.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(वृत्रहन्) हे शत्रुनाशक ! (सूर्य) हे सूर्य ! [सूर्य के समान सर्वप्रेरक] (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] (अद्य) आज (यत् कत् च अभि) जिस-किसी वस्तु पर (उदगाः) तू उदय हुआ है, (तत्) वह (सर्वम्) सब (ते) तेरे (वशे) वश में है ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य विद्या और पराक्रम से संसार में सूर्य के समान प्रकाशमान होकर सब पदार्थों का तत्त्व जानकर उनको उपयोगी बनावें ॥१॥
टिप्पणी
यह तृच ऋग्वेद में है-८।९३ [सायणभाष्य ८२]।४-६; म० १ यजुर्वेद-३३।३; सामवेद-पू० २।४।२ ॥ १−(यत्) वस्तु (अद्य) (कत् च) किमपि (वृत्रहन्) शत्रुनाशक (उदगाः) इण् गतौ-लुङ्। उदितवानसि (अभि) प्रति (सूर्य) सूर्यवत्प्रेरक (सर्वम्) (तत्) वस्तु (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् मनुष्य (ते) तव (वशे) अधीनत्वे ॥
विषय
इन्द्र-वृत्रहन्-सूर्य
पदार्थ
१. प्रभु जीव से कहते हैं कि हे (वृत्रहन्) = कामनाओं को विनष्ट करनेवाले व (सूर्य) = सूर्य की भौति निरन्तर क्रियाशील जीव ! (यत्) = जब (अद्य) = आज या जब भी कभी तू (उत्) = प्रकृति से ऊपर उठकर (अभि अगा:) = मेरी ओर आता है तब (तत् सर्वम्) = वह सब हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष! (ते वशे) = तेरी इच्छा पर निर्भर करता है। तू दृढ़ संकल्प करेगा, वासनाओं को विनष्ट करके ज्ञान सूर्य से दीप्त जीवनवाला बनेगा तो अवश्य मेरी ओर [प्रभु की ओर] आनेवाला होगा। २. प्रभु की ओर आने पर है (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष (तत् सर्वम्) = यह सब संसार (ते वशे) = तरे वश में होगा। प्रभु को प्राप्त कर लेने पर तुझे ये सब ब्रह्माण्ड प्राप्त हो जाएगा।
भावार्थ
हम प्रभु-प्राप्ति का दृढ़ संकल्प करें। यह संकल्प हमें वासना-विनाश में प्रवृत्त करेगा और तब हमारे जीवन में वासनाओं के मेघों का विलय होकर ज्ञानसूर्य का उदय होगा।
भाषार्थ
(वृत्रहन्) हे अज्ञानावरण का हनन करनेवाले! (सूर्य) हे सूर्यों के सूर्य! (अद्य) प्रतिदिन (अभि) हमारे सामने (यद् कत् च) जो कोई अर्थात् सूर्य, चाँद तथा तारागण (उद् अगाः) उदित होते हैं, (इन्द्र) हे परमेश्वर! (तत् सर्वम्) वह सब (ते) आपके (वशे) वश में है।
टिप्पणी
[मन्त्र में सूर्य और इन्द्र, दोनों शब्द परमात्मवाचक हैं।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indi a Devata
Meaning
O sun, dispeller of darkness, whatever the aim and purpose for which you rise today, let that be, O Indra, lord ruler of the world, under your command and control.
Translation
O dispeller of ignorance, O impeller of all, O mighty Divinity All that which you pervade and control at present is in your power.
Translation
O dispeller of ignorance, O impeller of all, O mighty Divinity All that which you pervade and control at present is in your power.
Translation
O Most-Powerful Lord of the Good, when Thou thinkest that Thou art Deathless (Immortal) certainly that is true of Thine.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह तृच ऋग्वेद में है-८।९३ [सायणभाष्य ८२]।४-६; म० १ यजुर्वेद-३३।३; सामवेद-पू० २।४।२ ॥ १−(यत्) वस्तु (अद्य) (कत् च) किमपि (वृत्रहन्) शत्रुनाशक (उदगाः) इण् गतौ-लुङ्। उदितवानसि (अभि) प्रति (सूर्य) सूर्यवत्प्रेरक (सर्वम्) (तत्) वस्तु (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् मनुष्य (ते) तव (वशे) अधीनत्वे ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(বৃত্রহন্) হে শত্রুনাশক! (সূর্য) হে সূর্য ! [সূর্যের ন্যায় সর্বপ্রেরক] (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ পুরুষ] (অদ্য) আজ (যৎ কৎ চ অভি) যে সমস্ত বস্তুর উপর (উদগাঃ) তুমি উদিত হয়েছ, (তৎ) সেই (সর্বম্) সমস্ত (তে) তোমার (বশে) অধীন ॥১॥
भावार्थ
মনুষ্য বিদ্যা এবং পরাক্রম দ্বারা সংসারে সূর্যের ন্যায় প্রকাশমান হয়ে সমস্ত পদার্থসমূহের তত্ত্ব/সারমর্ম জেনে সেগুলোকে উপযোগী করুক ॥১॥ এই তৃচ ঋগ্বেদে আছে-৮।৯৩ [সায়ণভাষ্য ৮২]।৪-৬; ম০ ১ যজুর্বেদ-৩৩।৩; সামবেদ-পূ০ ২।৪।২ ॥
भाषार्थ
(বৃত্রহন্) হে অজ্ঞানাবরণ হননকারী! (সূর্য) হে সূর্য-সমূহের সূর্য! (অদ্য) প্রতিদিন (অভি) আমাদের সামনে (যদ্ কৎ চ) যা কিছু অর্থাৎ সূর্য, চাঁদ তথা তারাগণ (উদ্ অগাঃ) উদিত হয়, (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (তৎ সর্বম্) সেই সব (তে) আপনার (বশে) বশে রয়েছে/বশবর্তী।
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