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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 115 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 115/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वत्सः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-११५
    4

    अ॒हमिद्धि पि॒तुष्परि॑ मे॒धामृ॒तस्य॑ ज॒ग्रभ॑। अ॒हं सूर्य॑ इवाजनि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒हम् । इत् । हि । पि॒तु: । परि॑ । मे॒धाम् । ऋ॒तस्य॑ । ज॒ग्रभ॑ । अ॒हम् । सूर्य॑:ऽइव । अ॒ज॒नि॒ ॥११५.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अहमिद्धि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अहम् । इत् । हि । पितु: । परि । मेधाम् । ऋतस्य । जग्रभ । अहम् । सूर्य:ऽइव । अजनि ॥११५.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 115; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (अहम्) मैंने (पितुः) पिता [परमेश्वर] से (इत् हि) अवश्य करके (ऋतस्य) सत्य वेद की (मेधाम्) धारणावती बुद्धि (परि) सब प्रकार (जग्रभ) पाई है, (अहम्) मैं (सूर्यः इव) सूर्य के समान (अजनि) प्रसिद्ध हुआ हूँ ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमात्मा के दिये वेदज्ञान को ग्रहण करके संसार में सूर्य के समान विद्या का प्रकाश करे ॥१॥

    टिप्पणी

    यह तृच ऋग्वेद में है-८।६।१०-१२; सामवेद उ० ७।१, तृच , म० १ सा० पू० २।६।८ ॥ १−(अहम्) मनुष्यः (इत्) एव (हि) अवश्यम् (पितुः) पालकात् परमेश्वरात् (परि) सर्वथा (मेधाम्) धारणावतीं बुद्धिम् (ऋतस्य) सत्यज्ञानस्य (जग्रभ) हस्य भः। अहं जग्रह। गृहीतवानस्मि (अहम्) (सूर्यः) (इव) (अजनि) अजनिषं प्रादुरभूवम् ॥

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    विषय

    सूर्य के समान

    पदार्थ

    १. (अहम्) = मैं (इत् हि) = निश्चय से (पितुः) = अपने पिता प्रभु से (ऋतस्य) = सत्यज्ञान की (मेधाम्) = बुद्धि को (परिजनभ) = ग्रहण करता हूँ। प्रभु की उपासना करता हुआ हदयस्थ प्रभु से प्रकाश प्राप्त करता हूँ। २. इस प्रकाश को प्राप्त करके (अहम्) = मैं (सूर्य इव) = सूर्य की भाँति (अजनि) = हो गया हूँ। प्रभु से दिया गया प्रकाश मुझे इसप्रकार चकमा देता है जैसेकि सूर्य।

    भावार्थ

    हम प्रभु का ध्यान करें। हृदयस्थ प्रभु से प्रकाश को प्राप्त करें। यह प्रकाश हमें सूर्य की भाँति दीत जीवनवाला बना देगा।

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    भाषार्थ

    (अहम्) मैं उपासक ने, (इत् हि) अवश्य (पितुः) परमपिता परमेश्वर से, (ऋतस्य मेधाम्) सत्यज्ञान को (परि जग्रभ) प्राप्त कर लिया है। इसलिए (अहम्) मैं, (सूर्य इव) ज्ञानप्रकाश की दृष्टि से सूर्य के सदृश (अजनि) हो गया हूँ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    I have received from my father super intelligence of the universal mind and law, I have realised it too in the soul, and I feel reborn like the refulgent sun.

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    Translation

    I, the man of intuition have received deep knowledge of eternal law and now I have emerged like sun.

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    Translation

    I, the man of intuition have received deep knowledge of eternal law and now I have emerged like sun.

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    Translation

    I reveal the Vedic verses, like the wise learned seer through the ancient Vedic knowledge, by which the soul or king may attain power and strength (to lead his life aright on the earth).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह तृच ऋग्वेद में है-८।६।१०-१२; सामवेद उ० ७।१, तृच , म० १ सा० पू० २।६।८ ॥ १−(अहम्) मनुष्यः (इत्) एव (हि) अवश्यम् (पितुः) पालकात् परमेश्वरात् (परि) सर्वथा (मेधाम्) धारणावतीं बुद्धिम् (ऋतस्य) सत्यज्ञानस्य (जग्रभ) हस्य भः। अहं जग्रह। गृहीतवानस्मि (अहम्) (सूर्यः) (इव) (अजनि) अजनिषं प्रादुरभूवम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অহম্) আমি (পিতুঃ) পিতা [পরমেশ্বর] হতে (ইৎ হি) নিশ্চিতরূপে/অবশ্যই (ঋতস্য) সত্য বেদের (মেধাম্) ধারণাবতী বুদ্ধি (পরি) সর্ব প্রকারে (জগ্রভ) প্রাপ্ত করেছি, (অহম্) আমি (সূর্যঃ ইব) সূর্যের ন্যায় (অজনি) প্রসিদ্ধ হয়েছি ॥১॥

    भावार्थ

    পরমাত্মা প্রদত্ত বেদজ্ঞান গ্রহণ করে মনুষ্যগণ সূর্যের ন্যায় বিদ্যার প্রকাশ করুক॥১॥ এই তৃচ ঋগ্বেদে আছে-৮।৬।১০-১২; সামবেদ উ০ ৭।১, তৃচ , ম০ ১ সা০ পূ০ ২।৬।৮ ॥

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    भाषार्थ

    (অহম্) আমি উপাসক, (ইৎ হি) অবশ্যই (পিতুঃ) পরমপিতা পরমেশ্বর দ্বারা, (ঋতস্য মেধাম্) সত্যজ্ঞান (পরি জগ্রভ) প্রাপ্ত করেছি। এইজন্য (অহম্) আমি, (সূর্য ইব) জ্ঞানপ্রকাশের দৃষ্টিতে সূর্যের সদৃশ (অজনি) হয়েছি।

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