अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 119/ मन्त्र 1
अस्ता॑वि॒ मन्म॑ पू॒र्व्यं ब्रह्मेन्द्रा॑य वोचत। पू॒र्वीरृ॒तस्य॑ बृह॒तीर॑नूषत स्तो॒तुर्मे॒धा अ॑सृक्षत ॥
स्वर सहित पद पाठअस्ता॑वि । मन्म॑ । पू॒र्व्यम् । ब्रह्म॑ । इन्द्रा॑य । वो॒च॒त॒ ॥ पू॒र्वी: । ऋ॒तस्य॑ । बृ॒ह॒ती: । अ॒नू॒ष॒त॒ । स्तो॒तु: । मे॒धा: । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ ॥११९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्तावि मन्म पूर्व्यं ब्रह्मेन्द्राय वोचत। पूर्वीरृतस्य बृहतीरनूषत स्तोतुर्मेधा असृक्षत ॥
स्वर रहित पद पाठअस्तावि । मन्म । पूर्व्यम् । ब्रह्म । इन्द्राय । वोचत ॥ पूर्वी: । ऋतस्य । बृहती: । अनूषत । स्तोतु: । मेधा: । असृक्षत ॥११९.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर की स्तुति का उपदेश।
पदार्थ
(पूर्व्यम्) पुराना (मन्म) ज्ञान (अस्तावि) स्तुति किया गया है, (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] के पाने के लिये (ब्रह्म) वेदवचन को (वोचत) तुम बोलो। (ऋतस्य) सत्य ज्ञान की (पूर्वीः) पहिली (बृहतीः) बढ़ती हुई वाणियों की (अनूषत) उन्होंने [ऋषियों ने] स्तुति की है और (स्तोतुः) स्तुति करनेवाले विद्वान् की (मेधाः) धारणावती बुद्धियाँ (असृक्षत) दी हैं ॥१॥
भावार्थ
जिन वेदवाणियों को विचारकर ऋषि लोग सदा ज्ञानी होते हैं, उन्हीं वेदवाणियों को विचारकर मनुष्य अपना ज्ञान बढ़ावें ॥१॥
टिप्पणी
यह मन्त्र ऋग्वेद में है-८।२।९ [सायणभाष्य, अवशिष्ट, बालखिल्य, सू० ४ म० ९]; सामवेद, उ० ८।२।७ ॥ १−(अस्तावि) स्तुतम् (मन्म) ज्ञानम् (पूर्व्यम्) पुरातनम् (ब्रह्म) वेदवचनम् (इन्द्राय) परमेश्वरप्राप्तये (वोचत्) लोडर्थे लुङ्। ब्रूत यूयम् (पूर्वीः) पूर्वकालीनाः (ऋतस्य) सत्यज्ञानस्य (बृहतीः) वर्धमाना वाणीः (अनूषत) अ० २०।१७।१। अस्तुवन् ते ऋषयः (स्तोतुः) स्तुतिं कुर्वतः पुरुषस्य (मेधाः) धारणावतीर्बुद्धीः (असृक्षत) सृज विसर्गे। दत्तवन्तः ॥
विषय
वेदवाणी द्वारा बुद्धिवर्धन
पदार्थ
१. (पूर्व्यम्) = पालन व पूरण में उत्तम (मन्म) = मननीय स्तोत्र (अस्तावि) = हमसे स्तुत होता है। हम प्रभु का विचारपूर्वक स्तवन करते हैं-यह स्तवन हमारी लक्ष्यदृष्टि को पैदा करता हुआ हमारा पूरण करता है। (इन्द्राय) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु की प्राति के लिए (ब्रह्म वोचत) = ज्ञान की वाणियों का उच्चारण करो। २. (प्रातस्य) = सत्यज्ञान की (पूर्वी:) = सृष्टि के प्रारम्भ में दी जानेवाली (बृहती:) = ये वर्धन की हेतुभूत वाणियाँ (अनूषत) = हमसे स्तुत होती हैं। इस वेदवाणी के स्तवन से (स्तोतुः) = स्तवन करनेवाले की (मेधा) = बुद्धियाँ,(असक्षत) = सृष्ट होती हैं। वेदवाणियों का अध्ययन बुद्धियों की वृद्धि का कारण बनता है।
भावार्थ
हम प्रभु का स्तवन करें। प्रभु-प्राप्ति के लिए ज्ञान की वाणियों का उच्चारण करें। ये वेदवाणियाँ हमारी बुद्धि का वर्धन करनेवाली होती हैं।
भाषार्थ
हे उपासको! (अस्तावि) उपासना आरम्भ हुई है, तुम (इन्द्राय) परमेश्वर के लिए, (मन्म) मननीय, (पूर्व्यम्) सनातन काल से प्राप्त, (ब्रह्म) ब्रह्म-प्रतिपादक मन्त्रों का (वोचत) उच्चारण करो। (पूर्वीः) अनादि, (ऋतस्य बृहतीः) तथा सत्यज्ञान प्राप्त करनेवाली वैदिक महावाणियों ने (अनूषत) परमेश्वर का स्तवन किया है, कथन किया है, और इन महावाणियों द्वारा (स्तोतुः) स्तुति करनेवालों को (मेधाः) ऋतम्भरा-प्रज्ञाएँ (असृक्षत) प्रकट हुई हैं।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Eternal and adorable song of divine praise has been presented. Chant that for Indra, the divine soul. Sing the grand old hymns of divine law and glorify the Lord. Inspire and augment the mind and soul of the celebrant.
Translation
The perfect knowledge of God has been praised. O people, pronounce the Vedic hymn for attaining Almighty God. The devotees pour the perfect great voice of the truth and eternal law and these grant the worshipers many thoughts.
Translation
The perfect knowledge of God has been praised. O people, pronounce the Vedic hymn for attaining Almighty God. The devotees pour the perfect great voice of the truth and eternal law and these grant the worshipers many thoughts.
Translation
The swiftly-acting, wise people worship the Adorable God, Full of knowledge and sweet bounties, splendorous Himself and shedding splendor all around. He spreads all sorts of riches and fortunes amongst us and invests us with gift-showering power, and instills in us the generative fluids, like semen etc.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र ऋग्वेद में है-८।२।९ [सायणभाष्य, अवशिष्ट, बालखिल्य, सू० ४ म० ९]; सामवेद, उ० ८।२।७ ॥ १−(अस्तावि) स्तुतम् (मन्म) ज्ञानम् (पूर्व्यम्) पुरातनम् (ब्रह्म) वेदवचनम् (इन्द्राय) परमेश्वरप्राप्तये (वोचत्) लोडर्थे लुङ्। ब्रूत यूयम् (पूर्वीः) पूर्वकालीनाः (ऋतस्य) सत्यज्ञानस्य (बृहतीः) वर्धमाना वाणीः (अनूषत) अ० २०।१७।१। अस्तुवन् ते ऋषयः (स्तोतुः) स्तुतिं कुर्वतः पुरुषस्य (मेधाः) धारणावतीर्बुद्धीः (असृक्षत) सृज विसर्गे। दत्तवन्तः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরস্ত্যুত্যুপদেশঃ
भाषार्थ
(পূর্ব্যম্) পুরাতন (মন্ম) জ্ঞান (অস্তাবি) স্তুতি করা হয়েছে, (ইন্দ্রায়) ইন্দ্রকে [মহা ঐশ্বর্যবান পরমাত্মাকে] লাভ করার জন্য (ব্রহ্ম) বেদবচন (বোচত) তুমি বলো। (ঋতস্য) সত্য জ্ঞানের (পূর্বীঃ) পূর্বকালীন (বৃহতীঃ) বর্ধিত বাণীসমূহ (অনূষত) তাঁরা [ঋষিগণ] স্তুতি করেছে এবং (স্তোতুঃ) স্তুতিকারী বিদ্বানদের (মেধাঃ) ধারণাবতী বুদ্ধিসমূহ (অসৃক্ষত) প্রদান করেছেন ॥১॥
भावार्थ
যে বেদবাণী বিচার করে ঋষিরা সর্বদা জ্ঞানী হয়েছেন, সেই বেদবাণী বিচার করে মনুষ্য নিজেদের জ্ঞান বৃদ্ধি করুক ॥১॥ এই মন্ত্র ঋগ্বেদে আছে-৮।২।৯ [সায়ণভাষ্য, অবশিষ্ট, বালখিল্য, সূ০ ৪ ম০ ৯]; সামবেদ, উ০ ৮।২।৭ ॥
भाषार्थ
হে উপাসকগণ! (অস্তাবি) উপাসনা আরম্ভ হয়েছে, তোমরা (ইন্দ্রায়) পরমেশ্বরের জন্য, (মন্ম) মননীয়, (পূর্ব্যম্) সনাতন কাল থেকে প্রাপ্ত, (ব্রহ্ম) ব্রহ্ম-প্রতিপাদক মন্ত্র-সমূহ (বোচত) উচ্চারণ করো। (পূর্বীঃ) অনাদি, (ঋতস্য বৃহতীঃ) তথা সত্যজ্ঞান প্রাপ্তকারী বৈদিক মহাবাণীসমূহ (অনূষত) পরমেশ্বরের স্তবন করেছে, কথন করেছে, এবং এই মহাবাণীসমূহ দ্বারা (স্তোতুঃ) স্তোতাদের (মেধাঃ) ঋতম্ভরা-প্রজ্ঞা (অসৃক্ষত) প্রকট হয়েছে।
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