अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 120/ मन्त्र 1
यदि॑न्द्र॒ प्रागपा॒गुद॒ङ्न्यग्वा हू॒यसे॒ नृभिः॑। सिमा॑ पु॒रू नृषू॑तो अ॒स्यान॒वेऽसि॑ प्रशर्ध तु॒र्वशे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । इ॒न्द्र॒ । प्राक् । अपा॑क् । उद॑क् । न्य॑क् । वा॒ । हू॒यसे॑ । नृऽभि॑: ॥ सिम॑ । पु॒रू । नृऽसू॑त: । अ॒सि॒ । आन॑वे । असि॑ । प्र॒ऽश॒र्ध॒ । तु॒र्वशे॑ ॥१२०.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यदिन्द्र प्रागपागुदङ्न्यग्वा हूयसे नृभिः। सिमा पुरू नृषूतो अस्यानवेऽसि प्रशर्ध तुर्वशे ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । इन्द्र । प्राक् । अपाक् । उदक् । न्यक् । वा । हूयसे । नृऽभि: ॥ सिम । पुरू । नृऽसूत: । असि । आनवे । असि । प्रऽशर्ध । तुर्वशे ॥१२०.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (यत्) जब (प्राक्) पूर्व में, (अपाक्) पश्चिम में, (उदक्) उत्तर में (वा) और (न्यक्) दक्षिण में (नृभिः) मनुष्यों करके (हूयसे) तू पुकारा जाता है। (सिम) हे सीमा बाँधनेवाले (प्रशर्ध) प्रबल ! [परमात्मन्] (आनवे) मनुष्यों के (तुर्वशे) हिंसकों के वश करनेवाले पुरुष में (पुरु) बहुत प्रकार (नृषूतः) तू मनुष्यों से प्रेरणा [प्रार्थना] किया गया (असि) है, (असि) है ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य सब स्थानों में परमात्मा को बारंबार स्मरण करके परस्पर उपकार करें ॥१॥
टिप्पणी
यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।४।१, २; सामवेद, उ० ।१।१३; म० १ सा० पू० ३।९।७ ॥ १−(यत्) यदा (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (प्राक्) प्राच्यां दिशि (अपाक्) प्रतीच्यां दिशि (उदक्) उदीच्यां दिशि (न्यक्) नीच्यां दक्षिणस्यां दिशि (वा) च (हूयसे) आहूयसे (नृभिः) नेतृभिः (सिम) अविसिविसिशुषिभ्यः कित्। उ० १।१४४। षिञ् बन्धने-मन् कित्। हे सीमाकारक (पुरु) बहुलम् (नृषूतः) षू प्रेरणे-क्त। नरैः प्रेरितः पार्थितः (असि) (आनवे) अनु-अण्। अनवो मनुष्यनाम-निघ० २।३। मनुष्यसम्बन्धिनि (असि) (प्रशर्ध) शृधु उत्साहे-अच्। शर्धो बलनाम-निघ० २।९। हे प्रबल (तुर्वशे) अ० २०।३७।८। तुरां हिंसकानां वशयितरि ॥
विषय
सर्वव्यापक प्रभु
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो। (यत्) = जो आप (अपाग्) = पूर्व व पश्चिम में (उदग् न्यग् वा) = वा उत्तर व दक्षिण में (नृभिः) = मनुष्यों से (हूयसे) = पुकारे जाते हैं। वे आप (सिमः) = सब दिशाओं में विद्यमान है। आप कहाँ नहीं हैं? आप (पुरू) = खूब ही (नृषूतः असि) = उन्नति-पथ पर चलनेवालों के सारथि है। २. (आनवे) = [अन प्राणने] आप इन नर मनुष्यों को प्राणित व उत्साहित करनेवाले हैं। हे (प्रशर्ध) = प्रकृष्ट शक्ति-सम्पन्न प्रभो! आप (तुर्वशे असि) = त्वरा से शत्रुओं को वश में करने के लिए होते हैं। प्रभु का भक्त प्रभु से शक्ति व उत्साह प्राप्त करके शत्रुओं को शीघ्रता से वश में करनेवाला होता है।
भावार्थ
प्रभ सर्वव्यापक हैं। उन्नति-पथ पर चलनेवालों के पथ के सारथि होते हैं। उन्हें उत्साह व शक्ति देते हैं। शत्रुओं को वशीभूत करनेवाले हैं।
भाषार्थ
(इन्द्र) हे परमेश्वर! (यद्) चाहे जो (प्राक्) पूर्व में, (अपाक्) पश्चिम में, (उदक्) उत्तर में, (वा न्यक्) या दक्षिण में, (सिमा) अर्थात् सर्वत्र, (नृभिः) मनुष्यों द्वारा आप (हूयसे) सहायतार्थ पुकारे जाते हैं, और यद्यपि (नृषूतः पुरु) प्रायः आप इन मनुष्यों द्वारा सहायतार्थ प्रेरित किये जाते हैं, तो भी (प्रशर्ध) हे बलशाली! आप (आनवे) प्राण-संयमी में, (असि) प्रकट होते हैं, (तुर्वशे) और शीघ्रता से इन्द्रियों को वश में करनेवाले में (असि) प्रकट होते हैं।
टिप्पणी
[नृषूतः=नृभिः प्रेरितः। आनवे=अन् प्राणने। शर्धः=बलम् (निघं০ २.९)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Indra, illustrious lord of the world, ruler and commander of human forces, karmayogi, when you are invoked by people anywhere east or west, north or south, up or down, then, O lord of excellence, you feel highly impelled by those many and come and act as the destroyer of many evils for the people of reverence and exceptional strength.
Translation
O strong one, O mighty Lord, when you are invoked by men eastward, west ward and from north and south, you praised by men are for mankind and are for man swift in action.
Translation
O strong one, O mighty Lord, when you are invoked by men eastward, west ward and from north and south, you praised by men are for mankind and are for man swift in action.
Translation
O Almighty God, when Thou dispassionately fills the preaching person (i.e., Brahman) the protecting one (i.e., Kshatriya) the businessman (i.e.,Vaishya) and the physical laborer (i.e., Shudra) with pleasure, one and all together, the wise and learned persons, singing Vedic verses, approach Thee with Vedic songs and praises. Completely reveal Thyself to them.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।४।१, २; सामवेद, उ० ।१।१३; म० १ सा० पू० ३।९।७ ॥ १−(यत्) यदा (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (प्राक्) प्राच्यां दिशि (अपाक्) प्रतीच्यां दिशि (उदक्) उदीच्यां दिशि (न्यक्) नीच्यां दक्षिणस्यां दिशि (वा) च (हूयसे) आहूयसे (नृभिः) नेतृभिः (सिम) अविसिविसिशुषिभ्यः कित्। उ० १।१४४। षिञ् बन्धने-मन् कित्। हे सीमाकारक (पुरु) बहुलम् (नृषूतः) षू प्रेरणे-क्त। नरैः प्रेरितः पार्थितः (असि) (आनवे) अनु-अण्। अनवो मनुष्यनाम-निघ० २।३। मनुष्यसम्बन्धिनि (असि) (प्रशर्ध) शृधु उत्साहे-अच्। शर्धो बलनाम-निघ० २।९। हे प्रबल (तुर्वशे) अ० २०।३७।८। तुरां हिंसकानां वशयितरि ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [পরম্ ঐশ্বর্যবান পরমাত্মা] (যৎ) যখন (প্রাক্) পূর্বে, (অপাক্) পশ্চিমে, (উদক্) উত্তরে (বা) এবং (ন্যক্) দক্ষিণে (নৃভিঃ) মনুষ্যদের দ্বারা (হূয়সে) তুমি আহূত হও। (সিম) হে সীমা বন্ধনকারী (প্রশর্ধ) প্রবল! [পরমাত্মা] (আনবে) মনুষ্যদের (তুর্বশে) হিংসুকদের বশকারী পুরুষের মধ্যে (পুরু) বিবিধ প্রকারে (নৃষূতঃ) তুমি মনুষ্যদের দ্বারা প্রেরিত [প্রার্থিত] (অসি) হয়েছো, (অসি) হও ॥১॥
भावार्थ
মনুষ্য সর্ব স্থানে পরমাত্মাকে বারংবার স্মরণ করে পারস্পরিক উপকার করুক ॥১॥ এই সূক্ত ঋগ্বেদে আছে-৮।৪।১, ২; সামবেদ, উ০ ।১।১৩; ম০ ১ সা০ পূ০ ৩।৯।৭ ॥
भाषार्थ
(ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (যদ্) যে (প্রাক্) পূর্বে, (অপাক্) পশ্চিমে, (উদক্) উত্তরে, (বা ন্যক্) বা দক্ষিণে, (সিমা) অর্থাৎ সর্বত্র, (নৃভিঃ) মনুষ্যদের দ্বারা আপনি (হূয়সে) সহায়তার্থে আহূত হন, এবং যদ্যপি (নৃষূতঃ পুরু) প্রায়ঃ আপনি এই মনুষ্যদের দ্বারা সহায়তার্থে প্রেরিত হন, তবুও (প্রশর্ধ) হে বলশালী! আপনি (আনবে) প্রাণ-সংযমীর মধ্যে, (অসি) প্রকট হন, (তুর্বশে) এবং শীঘ্রতাপূর্বক ইন্দ্রিয়-সমূহকে বশবর্তীকারীর মধ্যে (অসি) প্রকট হন।
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