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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 121 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 121/ मन्त्र 1
    ऋषिः - देवातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१२१
    2

    अ॒भि त्वा॑ शूर नोनु॒मोऽदु॑ग्धा इव धे॒नवः॑। ईशा॑नम॒स्य जग॑तः स्व॒र्दृश॒मीशा॑नमिन्द्र त॒स्थुषः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । त्वा॒ । शू॒र॒ । नो॒नु॒म॒: । अदु॑ग्धा:ऽइव । धे॒नव॑: ॥ ईशा॑नम् । अ॒स्य । जग॑त: । स्व॒:ऽदृश॑म् । ईशा॑नम् । इ॒न्द्र॒ । त॒स्थुष॑: ॥१२१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि त्वा शूर नोनुमोऽदुग्धा इव धेनवः। ईशानमस्य जगतः स्वर्दृशमीशानमिन्द्र तस्थुषः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । त्वा । शूर । नोनुम: । अदुग्धा:ऽइव । धेनव: ॥ ईशानम् । अस्य । जगत: । स्व:ऽदृशम् । ईशानम् । इन्द्र । तस्थुष: ॥१२१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 121; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (शूर) हे शूर (इन्द्र) इन्द्र ! [परमेश्वर] (अदुग्धाः) बिना दुही (धेनवः इव) दुधेल गौओं के समान [झुककर] हम (अस्य) इस (जगतः) जङ्गम के (ईशानम्) स्वामी और (तस्थुषः) स्थावर के (ईशानम्) स्वामी, और (स्वर्दृशम्) सुख के दिखानेवाले (त्वा) तुझको (अभि) सब ओर से (नोनुमः) अत्यन्त सराहते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे दूध से भरी गौएँ दूध देने के लिये झुक जाती हैं, वैसे ही मनुष्य विद्या आदि शुभ गुणों से भरपूर होकर परमेश्वर की महिमा देखते हुए नम्र होकर संसार में उपकार करें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-७।३२।२२, २३; यजुर्वेद २७।३, ३६, सामवेद उ० १।१।११। म० १ सामवेद ३।३। ॥ १−(अभि) सर्वतः (त्वा) (शूर) (नोनुमः) अ० २०।१८।४। भृशं स्तुमः (अदुग्धाः) क्षीरपूर्णोधस्त्वेन वर्तमानाः (इव) यथा (धेनवः) दोग्ध्र्यो गावः (ईशानम्) ईश्वरम् (अस्य) दृश्यमानस्य (जगतः) जङ्गमस्य (स्वर्दृशम्) सुखस्य दर्शयितारम् (ईशानम्) (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (तस्थुषः) स्थावरस्य ॥

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    विषय

    ईशान का ध्यान

    पदार्थ

    १. हे (शूर) = हमारे 'काम, क्रोध, लोभ'-रूप शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले प्रभो! हम (अदुग्धाः धेनवः) = जो दुग्धदोह नहीं हो गई, अर्थात् जो इतनी वृद्ध नहीं हो गई कि अब दूध देंगी ही नहीं, उन गौओं के समान, अर्थात् अवृद्ध ही-तरुणावस्था में ही (त्वा अभिनोनुमः) = आपको प्रात: व सायं खूब ह स्तुत करते हैं । २. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! आप ही (अस्य जगत:) = इस जंगम संसार के (ईशानम्) = ईशान हैं। आप ही (तस्थुषः ईशानम्) = सम्पूर्ण स्थावर जगत् के भी स्वामी हैं। आप (स्वर्दशम्) = सूर्य के समान दिखते हैं 'ब्रह्म सूर्यसमं ज्योति:' अथवा सबका ध्यान करनेवाले आप ही हैं [Look after]| सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के आप ईशान हैं और सारे ब्रह्माण्ड के आप पालक है।

    भावार्थ

    हम तरुणावस्था में ही सदा प्रात:-सायं प्रभु का स्मरण करें। प्रभु ही हमारे शत्रुओं का विनाश करेंगे और ये ही हम सबके स्वामी व पालनकर्ता हैं।

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    भाषार्थ

    (शूर) हे पराक्रमशील परमेश्वर! हम (त्वा अभि) आपके प्रति (नोनुमः) वार-वार स्तुतिवचन उच्चारित करते हैं, (इव) जैसे कि (अदुग्धाः) न दुही गई (धेनवः) गौएँ अपने बछड़ों के प्रति हम्भारव करती हैं। हे परमेश्वर! आप (अस्य) इस (जगतः) जङ्गम अर्थात् प्राणी-जगत् के (ईशानम्) अधीश्वर हैं, (स्वर्दृशम्) आप आदित्य-सदृश ज्योतिर्मय है। (इन्द्र) हे परमेश्वर! (तस्थुषः) स्थावर जगत् के भी आप (ईशानम्) अधीश्वर हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indi a Devata

    Meaning

    O lord almighty, we adore you and wait for your blessings as lowing cows not yet milked wait for the master. Indra, lord of glory, you are ruler of the moving world and you are ruler of the unmoving world and your vision is bliss.

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    Translation

    O heroe Divinity we, like the cows unmilked praise you who is the administrator of this moving world, ruler of unmoving world and is the giver of happiness.

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    Translation

    O heroe Divinity. We, like the cows unmilked praise you who is the administrator of this moving world, ruler of unmoving world and is the giver of happiness.

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    Translation

    There is none like Thee, Mighty Lord, of fortunes divine or terrestrial neither born nor to be born. We, desirous of wealth of horses and cows, and being master of food grains, power, knowledge, wealth and agility, invoke Thee.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-७।३२।२२, २३; यजुर्वेद २७।३, ३६, सामवेद उ० १।१।११। म० १ सामवेद ३।३। ॥ १−(अभि) सर्वतः (त्वा) (शूर) (नोनुमः) अ० २०।१८।४। भृशं स्तुमः (अदुग्धाः) क्षीरपूर्णोधस्त्वेन वर्तमानाः (इव) यथा (धेनवः) दोग्ध्र्यो गावः (ईशानम्) ईश्वरम् (अस्य) दृश्यमानस्य (जगतः) जङ्गमस्य (स्वर्दृशम्) सुखस्य दर्शयितारम् (ईशानम्) (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (तस्थुषः) स्थावरस्य ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (শূর) হে বীর (ইন্দ্র) ইন্দ্র! [পরমেশ্বর] (অদুগ্ধাঃ) দুগ্ধপূর্ণ (ধেনবঃ ইব) গাভীর সমান [নত হয়ে] আমরা (অস্য) এই (জগতঃ) জঙ্গমের (ঈশানম্) স্বামী এবং (তস্থুষঃ) স্থাবরের (ঈশানম্) স্বামী, এবং (স্বর্দৃশম্) সুখ প্রদর্শক (ত্বা) তোমাকে (অভি) সর্বদিক থেকে (নোনুমঃ) অত্যন্ত স্তুতি/প্রশংসা করি॥১॥

    भावार्थ

    দুগ্ধবতী গাভী যেমন দুগ্ধ দানের জন্য নত হয়, তেমনই বিদ্যা আদি শুভ গুণসমূহে পরিপূর্ণ হয়ে মনুষ্য, পরমেশ্বরের মহিমা দেখে নম্র হয়ে সংসারে/জগতে উপকার করুক ॥১॥ এই সূক্ত ঋগ্বেদে আছে-৭।৩২।২২, ২৩; যজুর্বেদ ২৭।৩, ৩৬, সামবেদ উ০ ১।১।১১। ম০ ১ সামবেদ ৩।৩। ॥

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    भाषार्थ

    (শূর) হে পরাক্রমশীল পরমেশ্বর! আমরা (ত্বা অভি) আপনার প্রতি (নোনুমঃ) বার-বার স্তুতিবচন উচ্চারিত করি, (ইব) যেমন (অদুগ্ধাঃ) অদুগ্ধা (ধেনবঃ) গাভী নিজের বাছুরের প্রতি হম্ভারব/নর্দন করে। হে পরমেশ্বর! আপনি (অস্য) এই (জগতঃ) জঙ্গম অর্থাৎ প্রাণী-জগতের (ঈশানম্) অধীশ্বর, (স্বর্দৃশম্) আপনি আদিত্য-সদৃশ জ্যোতির্ময়। (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (তস্থুষঃ) স্থাবর জগতেরও আপনি (ঈশানম্) অধীশ্বর।

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