अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 124/ मन्त्र 1
कया॑ नश्चि॒त्र आ भु॑वदू॒ती स॒दावृ॑धः॒ सखा॑। कया॒ शचि॑ष्ठया वृ॒ता ॥
स्वर सहित पद पाठकया॑ । न॒: । चि॒त्र: । आ । भु॒व॒त् । ऊ॒ती । स॒दाऽवृ॑ध: । सखा॑ ॥ कया॑ । शचि॑ष्ठया । वृ॒ता ॥१२४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता ॥
स्वर रहित पद पाठकया । न: । चित्र: । आ । भुवत् । ऊती । सदाऽवृध: । सखा ॥ कया । शचिष्ठया । वृता ॥१२४.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(चित्र !) विचित्र वा पूज्य और (सदावृधः) सदा बढ़ानेवाला [राजा] (नः) हमारी (कया) कमनीय वा क्रमणशील [आगे बढ़ती हुई], अथवा सुख देनेवाली [वा कौन सी] (ऊती) रक्षा से और (कया) कमनीय आदि [वा कौन सा] (शचिष्ठया) अति उत्तम वाणी वा कर्म वा बुद्धिवाले (वृता) बर्ताव से (सखा) [हमारा] सखा (आ) ठीक-ठीक (भुवत्) होवे ॥१॥
भावार्थ
राजा और प्रजा प्रयत्न करके परस्पर प्रीति रक्खें ॥१॥
टिप्पणी
मन्त्र १-३ ऋग्वेद में हैं-४।३१।१-३; यजर्वेद २७।३९-४१ तथा ३६।४-६; सामवेद उ० १।१। तृच १२, म० १ सा० पू० २।८। ॥ १−(कया) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। कमेः क्रमेर्वा-डप्रत्ययः क्रमे रेफलोपः स्त्रियां टाप्। कः कमनो वा क्रमणो वा सुखो वा-निरु १०।२२। कमनीयया क्रमणशीलया गतिवत्या। सुखप्रदया। अथवा प्रश्नवाचकोऽस्ति (नः) अस्माकम् (चित्रः) अमिचिमि०। उ० ४।१६४। चिञ् चयने-क्त्र। चित्रं चायनीयम्-निरु० १२।६। अद्भुतः। पूज्यः (आ) समन्तात् (भुवत्) भवतेर्लेट्। भवेत् (ऊती) उत्या रक्षया। गत्या (सदावृधः) वृधु-क। सदा वर्धमानो वर्धयिता वा (सखा) सुहृद् (कया) (शचिष्ठया) शची-इष्ठन् मत्वर्थीयलोपः। शची=वाक्-निघ० १।११। कर्म-२।१। प्रज्ञा-३।११। अतिश्रेष्ठया वाचा क्रियया प्रज्ञया वा युक्त्या (वृता) वृतु-क्विप्। वृत्या। वर्तनेन ॥
विषय
वह सदा का साथी
पदार्थ
१. वे (सदावृधः) = सदा से बढ़े हुए (सखा) = जीव के मित्र (चित्र:) = अद्भुत शक्ति व ज्ञानवाले प्रभु (न:) = हमारे (ऊती:) = कल्याणमय रक्षण के द्वारा (आभुवत्) = चारों ओर विद्यमान हैं। जब मैं प्रभु से आवृत्त हूँ तब मुझे भय किस बात का? 'हम प्रभु में रह रहे हैं' इस तथ्य को हम अनुभव करेंगे तो निर्भीक बनेंगे ही। प्रभु हमें सदा बढ़ानेवाले हैं। हम ही क्रोध, ईर्ष्या व द्वेष आदि से उस उन्नति को समाप्त कर लेते हैं। २. वे प्रभु कया कल्याणकर (शचिष्ठया) = अत्यन्त शक्तिप्रद (वृता) = आवर्तन के द्वारा हमारे चारों ओर विद्यमान हैं। दिन-रात व ऋतुओं आदि का चक्र हमारे कल्याण के लिए ही है।
भावार्थ
मैं उस सदा के साथी, मेरी सतत वृद्धि के कारणभूत प्रभु को अपने चारों ओर अनुभव करूँ। वे प्रभु अनन्त शक्तिप्रद आवर्तनों के द्वारा हमारी रक्षा कर रहे हैं।
भाषार्थ
(चित्रः) अद्भुत स्वरूपवाला परमेश्वर, जो कि (नः) हमें (सदावृधः) सदा बढ़ानेवाला (सखा) सखा है, वह (कया) किस रक्षाविधि से (नः आ भुवत्) हमारे सब ओर विद्यमान है?। उत्तर—(कया) सुखमयी (शचिष्ठया) तथा अत्यन्त प्रज्ञामयी (वृता) वर्तावविधि द्वारा वह हमारे सब ओर विद्यमान है।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
When would the Lord, sublime and wondrous, ever greater, ever friendly, shine in our consciousness and bless us? With what gifts of protection and promotion? What highest favour of our choice? What order of grace?
Translation
O Wondrous and ever-mature Divinity, you with your blissful protection and with auspicious wisdon, or act or revelation of Vedic speech become my friend.
Translation
O Wondrous and ever-mature Divinity, you with your blissful protection and with auspicious wisdom, or act or revelation of Vedic speech become my friend.
Translation
O Adorable Lord or king, what genuine and most liberal means of enjoyment, amongst all joys of fortunes will exhilarate Thee, so that Thou may throw open the strongest treasures of wealth to Thy devotees?
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र १-३ ऋग्वेद में हैं-४।३१।१-३; यजर्वेद २७।३९-४१ तथा ३६।४-६; सामवेद उ० १।१। तृच १२, म० १ सा० पू० २।८। ॥ १−(कया) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। कमेः क्रमेर्वा-डप्रत्ययः क्रमे रेफलोपः स्त्रियां टाप्। कः कमनो वा क्रमणो वा सुखो वा-निरु १०।२२। कमनीयया क्रमणशीलया गतिवत्या। सुखप्रदया। अथवा प्रश्नवाचकोऽस्ति (नः) अस्माकम् (चित्रः) अमिचिमि०। उ० ४।१६४। चिञ् चयने-क्त्र। चित्रं चायनीयम्-निरु० १२।६। अद्भुतः। पूज्यः (आ) समन्तात् (भुवत्) भवतेर्लेट्। भवेत् (ऊती) उत्या रक्षया। गत्या (सदावृधः) वृधु-क। सदा वर्धमानो वर्धयिता वा (सखा) सुहृद् (कया) (शचिष्ठया) शची-इष्ठन् मत्वर्थीयलोपः। शची=वाक्-निघ० १।११। कर्म-२।१। प्रज्ञा-३।११। अतिश्रेष्ठया वाचा क्रियया प्रज्ञया वा युक्त्या (वृता) वृतु-क्विप्। वृत्या। वर्तनेन ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(চিত্র!) বিচিত্র বা পূজ্য এবং (সদাবৃধঃ) সদা বর্ধনকারী [রাজা] (নঃ) আমাদের (কয়া) কমনীয় বা ক্রমোন্নত [প্রগতিশীল], অথবা সুখ দাতা [বা কোন] (ঊতী) সুরক্ষা দ্বারা এবং (কয়া) কমনীয় আদি [বা কোন] (শচিষ্ঠয়া) অতি উত্তম বাণী বা কর্ম বা বুদ্ধিযুক্ত (বৃতা) আচরণ দ্বারা (সখা) [আমাদের] সখা (আ) যথাযথ (ভুবৎ) হবে/হোক॥১২৪.১॥
भावार्थ
রাজা এবং প্রজা প্রচেষ্টাপূর্বক পারস্পরিক প্রীতি বজায় রাখুক ॥১২৪.১॥ মন্ত্র ১-৩ ঋগ্বেদে আছে-৪।৩১।১-৩; যজর্বেদ ২৭।৩৯-৪১ তথা ৩৬।৪-৬; সামবেদ উ০ ১।১। তৃচ ১২, ম০ ১ সা০ পূ০ ২।৮। ॥
भाषार्थ
(চিত্রঃ) অদ্ভুত স্বরূপবিশিষ্ট পরমেশ্বর, যিনি (নঃ) আমাদের (সদাবৃধঃ) সদা বর্ধনকারী (সখা) সখা, তিনি (কয়া) কোন রক্ষাবিধি দ্বারা (নঃ আ ভুবৎ) আমাদের সবদিকে বিদ্যমান?। উত্তর—(কয়া) সুখময়ী (শচিষ্ঠয়া) তথা অত্যন্ত প্রজ্ঞাময়ী (বৃতা) আচরণবিধি দ্বারা তিনি আমাদের সবদিকে বিদ্যমান।
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