अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 125/ मन्त्र 1
अपे॑न्द्र॒ प्राचो॑ मघवन्न॒मित्रा॒नपापा॑चो अभिभूते नुदस्व। अपोदी॑चो॒ अप॑ शूराध॒राच॑ उ॒रौ यथा॒ तव॒ शर्म॒न्मदे॑म ॥
स्वर सहित पद पाठअप॑ । इ॒न्द्र॒ । प्राच॑: । म॒घ॒ऽव॒न् । अ॒मित्रा॑न् । अप॑ । अपा॑च: । अ॒भि॒ऽभू॒ते॒ । नु॒द॒स्व॒ ॥ अप॑ । उदी॑च:। अप॑ । शू॒र॒ । अ॒ध॒राच॑: । उ॒रौ । यथा॑ । तव॑ । शर्म॑न् । मदे॑म ॥१२५.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अपेन्द्र प्राचो मघवन्नमित्रानपापाचो अभिभूते नुदस्व। अपोदीचो अप शूराधराच उरौ यथा तव शर्मन्मदेम ॥
स्वर रहित पद पाठअप । इन्द्र । प्राच: । मघऽवन् । अमित्रान् । अप । अपाच: । अभिऽभूते । नुदस्व ॥ अप । उदीच:। अप । शूर । अधराच: । उरौ । यथा । तव । शर्मन् । मदेम ॥१२५.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(मघवन्) हे महाधनी ! (अभिभूते) हे विजयी ! (शूर) हे शूर ! (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (प्राचः) पूर्ववाले (अमित्रान्) वैरियों को (अपः) दूर, (अपाचः) पश्चिमवाले [वैरियों] को (अप) दूर, (उदीचः) उत्तरवाले [वैरियों] को (अप) दूर, और (अधराचः) दक्षिणवाले [वैरियों] को (अप) दूर (नुदस्व) हटा, (यथा) जिससे (तव) तेरी (उरौ) चौड़ी (शर्मन्) शरण में (मदेम) हम आनन्द करें ॥१॥
भावार्थ
प्रतापी राजा सब दिशाओं के शत्रुओं का नाश करके प्रजा को सुख देवे ॥१॥
टिप्पणी
यह सूक्त कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१०।१३१।१-७ ॥ १−(अप) दूरे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (प्राचः) प्र+अञ्चतेः-क्विन्, शस्। प्राग्देशे वर्तमानान् (मघवन्) महाधनिन् (अमित्रान्) पीडकान् वैरिणः (अप) (अपाचः) पश्चिमदेशे वर्तमानान् (अभिभूते) अभिभवितः (नुदस्व) प्रेरय। दूरे गमय (अप) (उदीचः) उत्तरदेशे वर्तमानान् (अप) (शूर) (अधराचः) दक्षिणदिशि वर्तमानान् (उरौ) विस्तीर्णै (यथा) येन प्रकारेण (तव) (शर्मन्) शर्मणि। शरणे (मदेम) हृष्येम ॥
विषय
शत्रुओं का अपनोदन
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले (मघवन) = ऐश्वर्यशालिन प्रभो। (प्राच: अमित्रान) = सामने से आनेवाले शत्रुओं को (अपनुदस्व) = परे धकेल दीजिए। इसी प्रकार हे (अभिभूते) = शत्रुओं का अभिभव करनेवाले प्रभो! (अपाच:) = दाहिनी ओर से आनेवाले शत्रुओं को भी (अप) = दूर कीजिए। (उदीच:) = उत्तर की ओर से आनेवाले शत्रुओं को (अप) = दूर कीजिए। हे शर शत्रओं को शीर्ण करनेवाले प्रभो! (अधरा च) = पश्चिम से [सूर्य जिस दिशा में नीचे जाता प्रतीत होता है-अधर] आते हुए शत्रुओं को भी (अप) = दूर कीजिए। सब दिशाओं से आनेवाले इन शत्रुओं को हमसे पृथक् कीजिए। २. इन सब काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि शत्रुओं को पराजित करके हम (यथा) = जिस प्रकार (तव) = आपकी (उरौ) = विशाल (शर्मन्) = शरण में (मदेम) = आनन्द में रहें, ऐसी आप कृपा कीजिए।
भावार्थ
चारों दिशाओं से होनेवाले शत्रुओं के आक्रमण से हम बचें। सदा प्रभु की शरण में आनन्द में रहें।
भाषार्थ
(मघवन्) हे सम्पत्तिशाली, (इन्द्र) सम्राट् आप! हमारे (प्राचः) पूर्वदिशा के, (अमित्रान्) स्नेह न करनेवाले शत्रुओं को (अप नुदस्व) परे धकेलिये। (अभिभूते) हे पराभव करनेवाले! (अपाचः) पश्चिम दिशा के अमित्रों को (अप) परे धकेलिये। (उदीचः) उत्तर दिशा के अमित्रों को (अप) परे धकेलिये। (शूर) हे पराक्रमी! (अधराचः) दक्षिण दिशा के अमित्रों को (अप) परे धकेलिए, (यथा) जिस प्रकार कि (तव) आपके (उरौ शर्मन्) विस्तृत राष्ट्र में हम प्रजाजन (मदेम) प्रसन्न तथा आनन्दित रहें। [शर्मन्=गृहम् (निघं০ २.४), अर्थात् राष्ट्ररूपी गृह।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Indra, all powerful ruler of the world, subduer of all enemies of the world, drive off all enemies that stand in front, who attack from behind, who arise from below, and all those who descend from above so that we may live in peace with joy without fear in your vast territory.
Translation
O hero, O mighty conqueror, O mighty ruler, drive away eastern enemies, western enemies, northern enemies and southern enemies. So that we may be joyful in your wide shelter.
Translation
O heroe, O mighty conqueror, O mighty ruler, drive away eastern enemies, western enemies, northern enemies and southern enemies. So that we may be joyful in your wide shelter.
Translation
O Dear Lord or king, just as the agriculturists with barley-fields, reap the barley, separating the stalks one after the other, similarly in various parts of the land make arrangements for the meals of those who have not gone astray from the path of sacrifice and worship.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह सूक्त कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१०।१३१।१-७ ॥ १−(अप) दूरे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (प्राचः) प्र+अञ्चतेः-क्विन्, शस्। प्राग्देशे वर्तमानान् (मघवन्) महाधनिन् (अमित्रान्) पीडकान् वैरिणः (अप) (अपाचः) पश्चिमदेशे वर्तमानान् (अभिभूते) अभिभवितः (नुदस्व) प्रेरय। दूरे गमय (अप) (उदीचः) उत्तरदेशे वर्तमानान् (अप) (शूर) (अधराचः) दक्षिणदिशि वर्तमानान् (उरौ) विस्तीर्णै (यथा) येन प्रकारेण (तव) (शर्मन्) शर्मणि। शरणे (मदेम) हृष्येम ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(মঘবন্) হে মহাধনী! (অভিভূতে) হে বিজয়ী! (শূর) হে শূর! (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [পরম্ ঐশ্বর্যবান রাজন্] (প্রাচঃ) পূর্বদিকে স্থিত/বর্তমান (অমিত্রান্) শত্রুদের (অপঃ) দূর/অপসারণ করো, (অপাচঃ) পশ্চিমদেশে বর্তমান/স্থিত [শত্রুদের] (অপ) দূর/অপসারণ করো, (উদীচঃ) উত্তরদিকের [শত্রুদের] (অপ) দূর/অপসারণ করো,এবং (অধরাচঃ) দক্ষিণ দিকের [শত্রুদের] (অপ) দূর/অপসারণ (নুদস্ব) করো, (যথা) যাতে (তব) তোমার (উরৌ) প্রশস্ত (শর্মন্) আশ্রয়ে (মদেম) আমরা আনন্দ করতে পারি ॥১॥
भावार्थ
প্রতাপী রাজা সর্বদিকের শত্রুদের বিনাশ করে প্রজাদের সুখ দান করুক॥১॥ এই সূক্ত কিছুটা আলাদাভাবে ঋগ্বেদে আছে-১০।১৩১।১-৭ ॥
भाषार्थ
(মঘবন্) হে সম্পত্তিশালী, (ইন্দ্র) সম্রাট্ আপনি! আমাদের (প্রাচঃ) পূর্বদিশার, (অমিত্রান্) অমিত্র/ শত্রুদের (অপ নুদস্ব) দূরে অপসারিত করুন। (অভিভূতে) হে পরাভবকারী! (অপাচঃ) পশ্চিম দিশার অমিত্রদের (অপ) দূরে অপসারিত করুন। (উদীচঃ) উত্তর দিশার অমিত্রদের (অপ) দূরে অপসারিত করুন। (শূর) হে পরাক্রমী! (অধরাচঃ) দক্ষিণ দিশার অমিত্রদের (অপ) দূরে অপসারিত করুন, (যথা) যেরূপ (তব) আপনার (উরৌ শর্মন্) বিস্তৃত রাষ্ট্রে আমরা প্রজাগণ (মদেম) প্রসন্ন তথা আনন্দিত থাকি। [শর্মন্=গৃহম্ (নিঘং০ ২.৪), অর্থাৎ রাষ্ট্ররূপী গৃহ।]
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