Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 137 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 137/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शिरिम्बिठिः देवता - अलक्ष्मीनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त १३७
    1

    यद्ध॒ प्राची॒रज॑ग॒न्तोरो॑ मण्डूरधाणिकीः। ह॒ता इन्द्र॑स्य॒ शत्र॑वः॒ सर्वे॑ बुद्बु॒दया॑शवः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ह॒ । प्राची॑: । अज॑गन्त । उर॑: । म॒ण्डू॒र॒ऽधा॒णि॒की॒: ॥ ह्व॒ता: । इन्द्र॑स्य । शत्र॑व: । सर्वे॑ । बु॒द्बु॒दऽया॑शव: ॥१३७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्ध प्राचीरजगन्तोरो मण्डूरधाणिकीः। हता इन्द्रस्य शत्रवः सर्वे बुद्बुदयाशवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । ह । प्राची: । अजगन्त । उर: । मण्डूरऽधाणिकी: ॥ ह्वता: । इन्द्रस्य । शत्रव: । सर्वे । बुद्बुदऽयाशव: ॥१३७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 137; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (मण्डूरधाणिकीः) हे विभग धारण करनेवाली (उरः) मारू सेनाओ ! (प्राचीः) आगे बढ़ती हुई (यत् ह) जभी (अजगन्त) तुम चली हो। [तभी] (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] के (सर्वे) सब (शत्रवः) वैरी लोग (बुद्बुदयाशवः) बुद्बुदों के समान चलनेवाले और फैलनेवाले होकर (हताः) मारे गये ॥१॥

    भावार्थ

    राजा व्यूहरचना से टुकरी-टुकरी करके सुशिक्षित सेना के द्वारा शत्रुओं को बुद्बुदों के समान निर्बल करके मारे ॥१॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१०।१।४ ॥ १−(यत्) यदा (ह) एव (प्राचीः) प्रकर्षेण अञ्चन्त्यः। प्रकृष्टगमनाः सत्यः (अजगन्त) गमेर्लङि मध्यमबहुवचने छान्दसः शपः श्लुः। तप्तनप्तनथनाश्च। पा० ७।१।४। तस्य तबादेशः। अगच्छत यूयम् (उरः) उर्वी हिंसायाम्-क्विप्। राल्लोपः। पा० ६।४।२१। वलोपः, ततो जसि रूपम्। हे हिंसित्र्यो मारणशीलाः सेनाः (मण्डूरधाणिकीः) मीनातेरूरन्। उ० १।६७। मडि विभाजने भूषायां हर्षे च−ऊरन्। आणको लूधूशिङ्धिधाञ्भ्यः। उ० ३।८३। दधातेः-आणकप्रत्ययः, ङीप्, इत्वं च। हे विभागस्य धारयित्र्यः व्यूहेन (हताः) नष्टाः (इन्द्रस्यः) ऐश्वर्यवतो राज्ञः (शत्रवः) (सर्वे) (बुद्बुदयाशवः) बुद आलोचने प्रणिधाने−क्विप्+बुद आलोचनो+क। यन्ति गच्छन्तीति याः, या-क्विप्। अश्नुवत इत्याशवः, अशू व्याप्तौ-उण्। बुद्बुदवत् जलस्य गोलाकारविकारवत् यातारो व्यापनशीलाश्च सन्तः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'शिरिम्बिठि' का पवित्र जीवन

    पदार्थ

    १. (यत्) = जब (ह) = निश्चय से लोग (प्राची: अजगन्त) = प्रकृष्ट गतिबाले होकर आगे और आगे चलते हैं तब (उरः) = [उर्वी हिंसायाम्]-वासनाओं का हिंसन करनेवाले होते हैं। ये (मण्डूरधाणिकी:) = [मन्दनस्य धनस्य धारयित्र्यः] आनन्दप्रद धनों का धारण करनेवाले होते है। प्रभु का भक्त 'शिरिम्बिठि' बनता है-यह कभी अनुचित उपायों से धनार्जन नहीं करता। २. (इन्द्रस्य) = इस जितेन्द्रिय पुरुष के (शत्रवः) = काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रु (हता:) = विनष्ट हो जाते हैं। (सर्वे) = ये सब शत्रु (बुद्बुदयाशवः) = [यान्ति, अश्नुवते]-बुलबुलों की भाँति नष्ट हो जानेवाले होते हैं और व्यापक रूप को धारण करते हैं। बुलबुला फटा और पानी में फैल गया [विलीन हो गया]। इसी प्रकार इस व्यक्ति के जीवन में 'काम' फटकर फैल जाता है और 'प्रेम' का रूप धारण कर लेता है। क्रोध' फटकर 'करुणा' के रूप में हो जाता है और 'लोभ' त्याग का रूप धारण कर लेता है।

    भावार्थ

    हम "काम, क्रोध, लोभ' आदि शत्रुओं को विनष्ट करके आगे बढ़नेवाले हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (मण्डूरधाणिकीः) खनिज-लोहे की निधियाँ अर्थात् खाने (यत् ह) जो कि (उरस्=उरसि) पृथिवी की छाती में, (प्राचीः) पूर्व में (अजगन्त) फैली होती हैं, उनके द्वारा, अर्थात् उनसे निर्मित शस्त्रास्त्रों द्वारा, (इन्द्रस्य) सम्राट् के (शत्रवः) शत्रु (हताः) हताहत कर दिये जाते हैं, और वे (सर्वे) सब शत्रु (बुद्बुदयाशवः) पानी के बुलबुलों के सदृश शीघ्र विनष्ट हो जाते हैं।

    टिप्पणी

    [प्राचीः=पृथिवी की भूमध्यरेखा से उत्तरायण१ और दक्षिणायन सीमान्त तक पूर्व दिशा अभिप्रेत है। क्योंकि इतने प्रदेश में समय-समय पर सूर्य उदित होता रहता है। उत्तरायण और दक्षिणायन तक फैली भू-पेटी में खनिज-लोहे की खानें प्रायः होती हैं—यह अभिप्राय यहाँ प्रतीत होता है। उरो=उरस्=उरीस; अर्थात् खनिज-लोहे की खानें न तो बहुत गहरी होती है, और न पृथिवी के बाहरी स्तर में, अपितु पृथिवी की छाती में होती है। बुद्बुदयाशवः=बुद्बुद+या+आशु।] [१. उत्तरायण सीमान्त= summer solstice कर्करेखा। दक्षिणायन सीमान्त= winter solstice मकररेखा।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    When floods of water flow forth bearing iron ore, rejoicing as if with croaking frogs, all adversities, enemies of humanity, disappear like bubbles, at once.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O Divisioned slaughtering Army, when you foremost march onward all the enemies of the mighty king are found dead like froth and foam.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O Divisioned slaughtering Army, when you foremost march onward all the enemies of the mighty king are found dead like froth and foam.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    When the big guns of steel, hurling big shots of steel, move forward as the vanguard, all the foes of the mighty king are shattered like bubbles ofwater.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१०।१।४ ॥ १−(यत्) यदा (ह) एव (प्राचीः) प्रकर्षेण अञ्चन्त्यः। प्रकृष्टगमनाः सत्यः (अजगन्त) गमेर्लङि मध्यमबहुवचने छान्दसः शपः श्लुः। तप्तनप्तनथनाश्च। पा० ७।१।४। तस्य तबादेशः। अगच्छत यूयम् (उरः) उर्वी हिंसायाम्-क्विप्। राल्लोपः। पा० ६।४।२१। वलोपः, ततो जसि रूपम्। हे हिंसित्र्यो मारणशीलाः सेनाः (मण्डूरधाणिकीः) मीनातेरूरन्। उ० १।६७। मडि विभाजने भूषायां हर्षे च−ऊरन्। आणको लूधूशिङ्धिधाञ्भ्यः। उ० ३।८३। दधातेः-आणकप्रत्ययः, ङीप्, इत्वं च। हे विभागस्य धारयित्र्यः व्यूहेन (हताः) नष्टाः (इन्द्रस्यः) ऐश्वर्यवतो राज्ञः (शत्रवः) (सर्वे) (बुद्बुदयाशवः) बुद आलोचने प्रणिधाने−क्विप्+बुद आलोचनो+क। यन्ति गच्छन्तीति याः, या-क्विप्। अश्नुवत इत्याशवः, अशू व्याप्तौ-उण्। बुद्बुदवत् जलस्य गोलाकारविकारवत् यातारो व्यापनशीलाश्च सन्तः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (মণ্ডূরধাণিকীঃ) হে বিভাগধারণকারী/বিভাজনকারী (উরঃ) মারণশীল সেনা! (প্রাচীঃ) সামনে এগিয়ে (যৎ হ) যখনই (অজগন্ত) তুমি চলো। [তখন] (ইন্দ্রস্য) ইন্দ্রের [মহান ঐশ্বর্যবান রাজার] (সর্বে) সমস্ত (শত্রবঃ) শত্রু (বুদ্‌বুদয়াশবঃ) বুদবুদের মতো চলমান এবং বিস্তৃত হয়ে (হতাঃ) হত হয় ॥১॥

    भावार्थ

    রাজা ব্যূহরচনা দ্বারা একাধিক খন্ডে বিভক্ত করে সুশিক্ষিত সেনার দ্বারা শত্রুদের বুদবুদের মতো নির্বল করে নাশ করুক ॥১॥ এই মন্ত্র ঋগ্বেদে আছে-১০।১।৪ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (মণ্ডূরধাণিকীঃ) খনিজ-লোহার নিধি অর্থাৎ খনি (যৎ হ) যা (উরস্=উরসি) পৃথিবীর বুকে, (প্রাচীঃ) পূর্বে (অজগন্ত) বিস্তৃত থাকে, উহার দ্বারা, অর্থাৎ তা থেকে নির্মিত শস্ত্রাস্ত্র দ্বারা, (ইন্দ্রস্য) সম্রাটের (শত্রবঃ) শত্রু (হতাঃ) হত করা হয়, এবং তাঁরা (সর্বে) সকল শত্রু (বুদ্বুদয়াশবঃ) জলের বুদবুদের সদৃশ শীঘ্র বিনষ্ট হয়ে যায়।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top