अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 139/ मन्त्र 1
आ नू॒नम॑श्विना यु॒वं व॒त्सस्य॑ गन्त॒मव॑से। प्रास्मै॑ यच्छतमवृ॒कं पृथु छ॒र्दिर्यु॑यु॒तं या अरा॑तयः ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नू॒नम् । अ॒श्वि॒ना॒ । यु॒वम् । व॒त्सस्य॑ । ग॒न्त॒म् । अव॑से । प्र । अस्मै॑ । य॒च्छ॒त॒म् । अ॒वृ॒कम् । पृ॒थु । छ॒र्दि: । यु॒यु॒तम् । या: । अरा॑तय: ॥१३९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नूनमश्विना युवं वत्सस्य गन्तमवसे। प्रास्मै यच्छतमवृकं पृथु छर्दिर्युयुतं या अरातयः ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नूनम् । अश्विना । युवम् । वत्सस्य । गन्तम् । अवसे । प्र । अस्मै । यच्छतम् । अवृकम् । पृथु । छर्दि: । युयुतम् । या: । अरातय: ॥१३९.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
गुरुजनों के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(अश्विना) हे दोनों अश्वी [चतुर माता-पिता, अथवा राजा और मन्त्री] (युवाम्) तुम दोनों (वत्सस्य) निवास करनेवाले [प्रजा जन] की (अवसे) रक्षा के लिये (नूनम्) अवश्य (आ गन्तम्) आओ। और (अस्मै) उसको (अवृकम्) बिना भेड़ियेवाला [भेड़िये के समान चोर डाकू के बिना], (पृथु) चौड़ा (छर्दिः) घर (प्र यच्छतम्) दो और (या) जो (अरातयः) कर न देनेवाली प्रजाएँ हैं, [उन्हें] (युयुतम्) अलग करो ॥१॥
भावार्थ
चतुर माता-पिता तथा राजा और मन्त्री सब गुरुजन प्रजा की रक्षा करें और शत्रुओं को हटावें ॥१॥
टिप्पणी
चार सूक्त १३९-१४२ के २१ मन्त्र ऋग्वेद में हैं-८।९।१-२१ ॥ यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।९।१- ॥ १−(आ गन्तम्) आगच्छतम् (नूनम्) अवश्यम् (अश्विना) अथ० २।२९।६। अश्विनौ राजानौ पुण्यकृतावित्यैतिहासिकाः-निरु० १२।१। हे चतुरमातापितरौ राजामात्यौ वा (युवम्) युवाम् (वत्सस्य) अथ० २०।१३८।१। वस निवासे-सप्रत्ययः। निवासशीलस्य प्रजाजनस्य (अवसे) रक्षणाय (प्र यच्छतम्) प्रदत्तम् (अस्मै) प्रजाजनाय (अवृकम्) अथ० ४।३।१। वृको हिंस्रजन्तुविशेषः, तद्रहितम्। वृकसमानचौरादिरहितम् (पृथु) विस्तीर्णम् (छर्दिः) गृहम् (युयुतम्) पृथक्कुरुतम् (याः) (अरातयः) अथ० १।२९।२। अदानशीलाः शत्रुभूताः प्रजाः ॥
विषय
'अवृकं पृथु' छर्दिः
पदार्थ
१. हे (अश्विना) = प्राणापानो! (युवम्) = आप (नूनम्) = निश्चय से (वत्सस्य) = ज्ञान व स्तुति-वाणियों का उच्चारण करनेवाले इस अपने प्रिय साधक के (अवसे) = रक्षण के लिए (आगन्तम्) = आइए। प्राणापान ही हमें रोगों व वासनाओं के आक्रमण से बचाते हैं। २. (अस्मै) = इस वत्स के लिए (छर्दिः) = ऐसे शरीर-गृह को (प्रयच्छतम्) = दीजिए, जोकि (अवृकम्) = बाधक शत्रुओं से रहित है तथा (पृथु) = विशाल है, अर्थात् जिस शरीर-गृह में वासनाओं व रोगों का प्रवेश नहीं तथा जो विस्तृत शक्तियोंवाला है। ऐसे शरीर-गृह को प्राप्त कराने के लिए (या:) = जो (अरातयः) = शत्रु हैं, उन्हें (युयुतम्) = पृथक् कीजिए।
भावार्थ
प्राणापान हमारा रक्षण करें। हमें रोगों की बाधाओं से रहित, विस्तृत शक्तिवाले शरीर-गृह को प्राप्त कराएँ। हमारे शत्रुभूत काम, क्रोध, लोभ आदि को हमसे पृथक् करें।
भाषार्थ
(अश्विना) हे नगराधिपति! तथा हे सेनाधिपति! (युवम्) तुम दोनों, (वत्सस्य) राष्ट्र में बसे प्रजाजन की (अवसे) रक्षा के लिए (नूनम्) अवश्य (आ गन्तम्) प्रजाजनों में आया-जाया करो। (अस्मै) इस प्रजाजन के लिए (छर्दिः) निवास-योग्य गृहों की (प्र यच्छतम्) व्यवस्था करो, जो गृह कि (पृथु) बड़े-बड़े हों, तथा (अवृकम्) जिन पर चोर-डाकू आक्रमण न कर सकें। और (याः) जो (अरातयः) राष्ट्र के शत्रु हैं, उन्हें (युयुतम्) राष्ट्र से पृथक् कर दिया करो।
टिप्पणी
[वृक=Robber (आप्टे)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
Ashvins, harbingers of light and peace, for sure now come for the protection and progress of your loved people and provide for them a spacious peaceful home free from violence and insecurity and ward off all forces of malice, adversity and enmity.
Translation
O father and mother you both come hither to help and favour your lovely child. You bestow on him a dwelling spacious and secure and keep malignities a far from him.
Translation
O father and mother you both come hither to help and favor your lovely child. You bestow on him a dwelling spacious and secure and keep malignities a far from him.
Translation
O Parents; teacher and preacher; prana and apana; the king and commander; the sun and the moon; air and water; fire and water; electricity and air; electricity and water; etc., let all of you paired groups, come for the [protection of the people, well-settled in the state and devoted to it and [provide them with an ample shelter, free from violence and danger from [thieves or dacoits, and drive away all those, who are troublesome agitators.
Footnote
cf. Rig, 8.9. (1-5). अश्विना two strong forces, working in pairs in the world at large:— father and mother; teacher and preacher; king and commander; the sun and the moon; air and water; air, fire; electricity and water; fire and water; physicians and druggist.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
चार सूक्त १३९-१४२ के २१ मन्त्र ऋग्वेद में हैं-८।९।१-२१ ॥ यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।९।१- ॥ १−(आ गन्तम्) आगच्छतम् (नूनम्) अवश्यम् (अश्विना) अथ० २।२९।६। अश्विनौ राजानौ पुण्यकृतावित्यैतिहासिकाः-निरु० १२।१। हे चतुरमातापितरौ राजामात्यौ वा (युवम्) युवाम् (वत्सस्य) अथ० २०।१३८।१। वस निवासे-सप्रत्ययः। निवासशीलस्य प्रजाजनस्य (अवसे) रक्षणाय (प्र यच्छतम्) प्रदत्तम् (अस्मै) प्रजाजनाय (अवृकम्) अथ० ४।३।१। वृको हिंस्रजन्तुविशेषः, तद्रहितम्। वृकसमानचौरादिरहितम् (पृथु) विस्तीर्णम् (छर्दिः) गृहम् (युयुतम्) पृथक्कुरुतम् (याः) (अरातयः) अथ० १।२९।२। अदानशीलाः शत्रुभूताः प्रजाः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
গুরুজনগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(অশ্বিনা) হে উভয় অশ্বী [চতুর মাতা-পিতা, অথবা রাজা এবং মন্ত্রী] (যুবাম্) তোমরা উভয়ে (বৎসস্য) নিবাসীর [প্রজাদের] (অবসে) রক্ষার জন্য (নূনম্) অবশ্যই (আ গন্তম্) এসো। এবং (অস্মৈ) তাঁদের (অবৃকম্) বৃক বিহীন [শৃগালের মতো চোর ডাকাত রহিত], (পৃথু) বিস্তীর্ণ (ছর্দিঃ) ঘর (প্র যচ্ছতম্) প্রদান করো এবং (যা) যারা (অরাতয়ঃ) কর না দেওয়া প্রজা, [তাঁদের] (যুয়ুতম্) আলাদা করো ॥১॥
भावार्थ
চতুর মাতা-পিতা তথা রাজা এবং মন্ত্রী সব গুরুজন প্রজাদের রক্ষা করুক এবং শত্রুদের দূর করুক ॥১॥ চার সূক্ত ১৩৯-১৪২ এর ২১ মন্ত্র ঋগ্বেদে আথে-৮।৯।১-২১ ॥ এই সূক্ত ঋগ্বেদে আছছ-৮।৯।১-৫ ॥
भाषार्थ
(অশ্বিনা)১ হে নগরাধিপতি! তথা হে সেনাধিপতি! (যুবম্) তোমরা, (বৎসস্য) রাষ্ট্রে স্থিত প্রজাদের (অবসে) রক্ষার জন্য (নূনম্) অবশ্যই (আ গন্তম্) প্রজাদের মধ্যে আসা-যাওয়া করো। (অস্মৈ) এই প্রজাদের জন্য (ছর্দিঃ) নিবাস-যোগ্য গৃহের (প্র যচ্ছতম্) ব্যবস্থা করো, যে গৃহ (পৃথু) বড়ো-বড়ো, তথা (অবৃকম্) যার ওপর চোর-ডাকাত আক্রমণ না করতে পারে। এবং (যাঃ) যে (অরাতয়ঃ) রাষ্ট্রের শত্রু, তাঁদের (যুয়ুতম্) রাষ্ট্র থেকে পৃথক্ করো।
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