अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 141/ मन्त्र 1
या॒तं छ॑र्दि॒ष्पा उ॒त नः॑ प॑र॒स्पा भू॒तं ज॑ग॒त्पा उ॒त न॑स्तनू॒पा। व॒र्तिस्तो॒काय॒ तन॑याय यातम् ॥
स्वर सहित पद पाठया॒तम् । छ॒र्दि:ऽपौ । उ॒त । न॒: । प॒र॒:ऽपा । भू॒तम् । ज॒ग॒त्ऽपौ । उ॒त । न॒: । त॒नू॒ऽपा ॥ व॒र्ति: । तो॒काय॑ । तन॑याय । या॒त॒म् ॥१४१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यातं छर्दिष्पा उत नः परस्पा भूतं जगत्पा उत नस्तनूपा। वर्तिस्तोकाय तनयाय यातम् ॥
स्वर रहित पद पाठयातम् । छर्दि:ऽपौ । उत । न: । पर:ऽपा । भूतम् । जगत्ऽपौ । उत । न: । तनूऽपा ॥ वर्ति: । तोकाय । तनयाय । यातम् ॥१४१.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।
पदार्थ
[हे दिन-राति दोनों !] (छर्दिष्पौ) घर के रक्षक होकर (यातम्) आओ, (उत) और (नः) हमारे बीच (परस्पा) पालनीयों के पालक, (जगत्पा) जगत् के रक्षक (उत) और (नः) हमारे (तनूपा) शरीरों के बचानेवाले (भूतम्) होओ, और (तोकाय) सन्तान और (तनयाय) पुत्र के हित के लिये (वर्तिः) [हमारे] घर (यातम्) आओ ॥१॥
भावार्थ
सब मनुष्य घर आदि स्थानों में दिन-रात का सुप्रयोग करके अपने बालक आदि को सुमार्ग में चलावें ॥१॥
टिप्पणी
यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।९।११-१ ॥ १−(यातम्) आगच्छतम् (छर्दिष्पौ) गृहपालकौ (उत) अपि च (नः) अस्माकं मध्ये (परस्पा) पॄ पालनपूरणयोः-असुन्। परसां पालनीयानां पालकौ (भूतम्) भवतम् (जगत्पा) जगतः संसारस्य रक्षकौ (उत) (नः) अस्माकम् (तनूपा) शरीराणां पालकौ (वर्तिः) अर्चिशुचिहु०। उ० २।१०८। वृतु वर्तने-इसि। छर्दिः। गृहम् (तोकाय) सन्तानहिताय (तनयाय) पुत्रहिताय (यातम्) आगच्छतम् ॥
विषय
छर्दिष्या-तनूपा
पदार्थ
१. हे प्राणापानो। आप (छर्दिष्याः) = हमारे शरीर-गृह के रक्षक होते हुए (यातम्) = हमें प्राप्त होओ। (उत) = और (न:) = हमारे लिए (परस्पा:) = अतिशयेन रक्षक व शत्रुओं से रक्षा करनेवाले (भूतम्) = होओ। (जगत्पा:) = इस संसार के आप रक्षक हों, (उत:) = और (न:) = हमारे (तनुपा:) = शरीरों के आप रक्षक बनें। २. (तोकाय तनयाय) = हमारे पुत्र-पौत्रों के लिए भी (वर्ति:) = रथ-मार्ग को (यातम्) = प्राप्त कराइए, अर्थात् वे सदा सन्मार्ग पर चलनेवाले हों।
भावार्थ
प्राणसाधना हमारा सब प्रकार से रक्षण करनेवाली हो। हमारे पुत्र-पौत्रों को भी यह सन्मार्ग पर ले-चलनेवाली बने।
भाषार्थ
(छर्दिष्पा) हे हमारे गृहों की रक्षा करनेवाले, (उत) तथा (नः) हमारी (परस्पा) पर-राष्ट्रों से रक्षा करनेवाले अश्वियो! (यातम्) आप दोनों हम प्रजाजनों में आया-जाया करो। आप (जगत्पा) अपने राष्ट्र जगत् या राष्ट्र के जङ्गम प्राणियों, (उत) तथा (नः) हम प्रजाजनों के (तनूपा) शरीरों की रक्षा करनेवाले (भूतम्) होओ। आप (तोकाय) हमारे पुत्रों तथा (तनयाय) पौत्र आदि के लिए (वर्तिः) उनकी वृत्तियों अर्थात् वर्तन-व्यवहार और रोजी आदि के साधन हैं, (यातम्) इसलिए आप प्रजाजनों में आया-जाया कीजिए।
टिप्पणी
[भूतम्=भवतम्। वर्तिः=साधनद्रव्यम् (उणादि ४.१४२)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
Come, be protectors of our home and family, be protectors of others too, be protectors of the world and protectors of our body’s health and social structure. Come home to us for the sake of our children and grand children.
Translation
These teacher and preacher (Ashvinau) are the protectors of houses, they are the guards of each other, they are the protectors of world and become the protectors of our bodies, and may they come to our house for the good of our children and sons.
Translation
These teacher and preacher (Ashvinau) are the protectors of houses, they are the guards of each other, they are the protectors of world and become the protectors of our bodies, and may they come to our house for the good of our children and sons.
Translation
O Asvins, let you come as protectors of our shelter as well as great defenders of ours. Let you be the protectors of the world as well as of our bodies. Please come to our houses for the sake of our sons and offspring.
Footnote
cf. Rig, 8.9. (11-15).
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।९।११-१ ॥ १−(यातम्) आगच्छतम् (छर्दिष्पौ) गृहपालकौ (उत) अपि च (नः) अस्माकं मध्ये (परस्पा) पॄ पालनपूरणयोः-असुन्। परसां पालनीयानां पालकौ (भूतम्) भवतम् (जगत्पा) जगतः संसारस्य रक्षकौ (उत) (नः) अस्माकम् (तनूपा) शरीराणां पालकौ (वर्तिः) अर्चिशुचिहु०। उ० २।१०८। वृतु वर्तने-इसि। छर्दिः। गृहम् (तोकाय) सन्तानहिताय (तनयाय) पुत्रहिताय (यातम्) आगच्छतम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
অহোরাত্রসুপ্রয়োগোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে দিন-রাত্রি উভয়!] (ছর্দিষ্পৌ) ঘরের রক্ষক হয়ে (যাতম্) এসো, (উত) এবং (নঃ) আমদের মাঝে (পরস্পা) পালনীয়দের পালক, (জগৎপা) জগতের রক্ষক (উত) এবং (নঃ) আমাদের (তনূপা) শরীর রক্ষাকারী (ভূতম্) হও, এবং (তোকায়) সন্তান ও (তনয়ায়) পুত্রের মঙ্গলের জন্য (বর্তিঃ) [আমাদের] ঘরে (যাতম্) এসো ॥১॥
भावार्थ
সব মনুষ্য ঘর আদি স্থানগুলোতে দিবা-রাত্রির সুপ্রয়োগ করে তার বালক আদিকে সুমার্গে চালনা করুক ॥১॥ এই সূক্ত ঋগ্বেদে আছে-৮।৯।১১-১৫
भाषार्थ
(ছর্দিষ্পা) হে আমাদের গৃহের রক্ষাকারী/রক্ষক, (উত) তথা (নঃ) আমাদের (পরস্পা) পর-রাষ্ট্র থেকে রক্ষাকারী অশ্বিগণ! (যাতম্) আপনারা আমাদের প্রজাদের মধ্যে আসা-যাওয়া করো। আপনি (জগৎপা) আপনি রাষ্ট্র জগৎ বা রাষ্ট্রের জঙ্গম প্রাণীদের, (উত) তথা (নঃ) আমাদের প্রজাদের (তনূপা) শরীরের রক্ষক (ভূতম্) হন। আপনি (তোকায়) আমাদের পুত্র তথা (তনয়ায়) পৌত্রাদির জন্য (বর্তিঃ) তাঁদের বৃত্তি অর্থাৎ আচার-ব্যবহার এবং কাজকর্মাদির সাধন, (যাতম্) এইজন্য আপনি প্রজাদের মধ্যে আসা-যাওয়া করুন।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal