अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 1
अच्छा॑ म॒ इन्द्रं॑ म॒तयः॑ स्व॒र्विदः॑ स॒ध्रीची॒र्विश्वा॑ उश॒तीर॑नूषत। परि॑ ष्वजन्ते॒ जन॑यो॒ यथा॒ पतिं॒ मर्यं॒ न शु॒न्ध्युं म॒घवा॑नमू॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअच्छ॑ । मे॒ । इन्द्र॑म् । म॒तय॑: । स्व॒:ऽविद॑: । स॒ध्रीची॑: । विश्वा॑: । उ॒श॒ती: । अ॒नू॒ष॒त॒ ॥ परि॑ । स्व॒ज॒न्ते॒ । जन॑य: । यथा॑ । पति॑म् । मर्य॑म् । न । शु॒न्ध्युम् । म॒घऽवा॑नम् । ऊ॒तये॑ ॥१७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अच्छा म इन्द्रं मतयः स्वर्विदः सध्रीचीर्विश्वा उशतीरनूषत। परि ष्वजन्ते जनयो यथा पतिं मर्यं न शुन्ध्युं मघवानमूतये ॥
स्वर रहित पद पाठअच्छ । मे । इन्द्रम् । मतय: । स्व:ऽविद: । सध्रीची: । विश्वा: । उशती: । अनूषत ॥ परि । स्वजन्ते । जनय: । यथा । पतिम् । मर्यम् । न । शुन्ध्युम् । मघऽवानम् । ऊतये ॥१७.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(स्वर्विदः) सुख पहुँचानेवाली, (सध्रीचीः) आपस में मिली हुई, (उशतीः) कामना करती हुई, (विश्वाः) सब (मे) मेरी (मतयः) बुद्धियों ने (इन्द्रम्) इन्द्र [महाप्रतापी राजा] को (अच्छ) अच्छे प्रकार से (अनूषत) सराहा है और (ऊतये) रक्षा के लिये [ऐसे, उसे] (परि ष्वजन्ते) सब ओर घेरती है, (यथा) जैसे (जनयः) पत्नियाँ (पतिम्) [अपने अपने] पति को, और (न) जैसे (शुन्ध्युम्) शुद्ध आचारवाले, (मघवानम्) महाधनी (मर्यम्) मनुष्य को [लोग घेरते हैं] ॥१॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि धर्मात्मा पराक्रमी मनुष्य का आश्रय लेकर रक्षा करें, जैसे स्त्रियाँ अपने पतियों का, और सब लोग सदाचारी कमाऊ जन का आश्रय लेते हैं ॥१॥
टिप्पणी
मन्त्र १-११ ऋग्वेद में है-१०।४३।१-११ ॥ १−(अच्छ) सुष्ठु (मे) मम (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं राजानम् (मतयः) बुद्धयः (स्वर्विदः) सुखस्य लम्भयित्र्यः (सध्रीचीः) अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्, ङीप्। सहाञ्चनाः। परस्परं संगताः (विश्वाः) सर्वाः (उशतीः) कामयमानाः (अनूषत) णु स्तुतौ-लुङ्। आत्मनेपदत्वम् उकारस्य दीर्घत्वं च छान्दसम्। अस्तुवन् (परि) सर्वतः (स्वजन्ते) आलिङ्गन्ति। वेष्टन्ते (जनयः) पत्न्यः (यथा) (पतिम्) स्वस्वभर्तारम् (मर्यम्) मनुष्यम् (न) यथा (शुन्ध्युम्) अ० १३।२।२४। शुन्ध विशुद्धौ-युच्। शुद्धाचारवन्तम् (मघवानम्) महाधनिनम् (ऊतये) रक्षणाय ॥
विषय
'स्वर्विदः सधीची:' मतयः
पदार्थ
१. (मे) = मेरी (मतयः) = मननपूर्वक की गई स्तुतियाँ (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु को (अच्छ) = लक्ष्य करके (अनूषत) = स्तवन करती हैं। ये स्तुतियाँ (स्वर्विदः) = प्रकाश को प्राप्त करानेवाली है, (सधीची:) = [सह अञ्चन्ति] प्रभु के साथ गतिवाली होती हैं। (विश्वाः) = प्रभु में हमारा प्रवेश करानेवाली होती हैं। (उशती:) = प्रभु की कामनावाली होती हैं। २. ये स्तुतियाँ ऊतये रक्षण के लिए (मघवानम्) = ऐश्वर्यशाली प्रभु का परिष्वजन्ते-इसप्रकार आलिंगन करती हैं, (यथा) = जैसेकि (जनयः) = पत्नियाँ [जनयन्ति अपत्यानि] (पतिम्) = अपने पति को तथा (न) = जैसे (शुन्थ्युम) = जीवन को शुद्ध बनानेवाले (मर्यम्) = दूर से आये हुए पिता आदि को पुत्र आदि बन्धुजन आलिंगन करते हैं।
भावार्थ
हम प्रभु का स्तवन करते हैं। ये स्तुतियाँ हमें प्रभु की ओर ले-चलती हैं।
भाषार्थ
(मे) मेरी (विश्वाः) सब प्रकार की (मतयः) मतियों ने (इन्द्रम्) परमेश्वर की (अच्छ) प्रत्यक्ष रूप में (अनूषत) स्तुतियाँ की हैं। मतियाँ जो कि (स्वर्विदः) सुख प्राप्त करातीं, (सध्रीचीः) जो कि परमेश्वर के साथ विचरतीं, (उशतीः) और परमेश्वर की ही कामना करती हैं। मेरी मतियाँ (परिष्वजन्ते) परमेश्वर का आलिङ्गन करती हैं। (यथा) जैसे कि (जनयः) पत्नियाँ (पतिम्) अपने-अपने पति का आलिङ्गन करती हैं। अर्थात् (शुन्ध्युं मर्यं न) शुद्धाचारी मानुष-पति का आलिङ्गन करती हैं, वैसे ही मेरी मतियाँ (मघवानम्) ऐश्वर्यशाली परमेश्वर का आलिङ्गन करती हैं, (ऊतये) ताकि मेरी रक्षा हो सके।
इंग्लिश (4)
Subject
Indr a Devata
Meaning
All my thoughts, words and actions, all together in perfect unison concentrated on the love and light of divinity, ecstatically adore and celebrate lndra, Lord Almighty of existence. Just as wives with love embrace their human lover, protector and husband, so do my prayers centre on Indra, lord of glory, power and purity, for all round protection, promotion and well being. 1. All my thoughts, words and actions, all together in perfect unison concentrated on the love and light of divinity, ecstatically adore and celebrate Indra, lord almighty of existence. Just as wives with love embrace their human lover, protector and husband, so do my prayers centre on Indra, lord of glory, power and purity, for all round protection, promotion and well being.
Translation
All the prayers of mine which are used in perfect coincidence and are pregnant with light of thought in a very sound way glorify. Almighty God who is the master of all wealth and perfectness as wives desiring them embrace the men as their bridegrooms handsome and pure of protection.
Translation
All the prayers of mine which are used in perfect coincidence and are pregnant with light of thought in a very sound way glorify. Almighty God who is the master of all wealth and perfectness as wives desiring them embrace the men as their bridegrooms handsome and pure of protection.
Translation
Just as the women, overwhelmed with desire, embrace the beautiful person, as their husband, so do all my yearning devotional praise-songs, full of the light of knowledge, expressive of all desires in perfect unison serve the Adorable God, the Lord of all fortunes.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र १-११ ऋग्वेद में है-१०।४३।१-११ ॥ १−(अच्छ) सुष्ठु (मे) मम (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं राजानम् (मतयः) बुद्धयः (स्वर्विदः) सुखस्य लम्भयित्र्यः (सध्रीचीः) अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्, ङीप्। सहाञ्चनाः। परस्परं संगताः (विश्वाः) सर्वाः (उशतीः) कामयमानाः (अनूषत) णु स्तुतौ-लुङ्। आत्मनेपदत्वम् उकारस्य दीर्घत्वं च छान्दसम्। अस्तुवन् (परि) सर्वतः (स्वजन्ते) आलिङ्गन्ति। वेष्टन्ते (जनयः) पत्न्यः (यथा) (पतिम्) स्वस्वभर्तारम् (मर्यम्) मनुष्यम् (न) यथा (शुन्ध्युम्) अ० १३।२।२४। शुन्ध विशुद्धौ-युच्। शुद्धाचारवन्तम् (मघवानम्) महाधनिनम् (ऊतये) रक्षणाय ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(স্বর্বিদঃ) সুখদায়িনী, (সধ্রীচীঃ) পরস্পরের সাথে সঙ্গত, (উশতীঃ) কামনাকারী, (বিশ্বাঃ) সকল (মে) আমার (মতয়ঃ) বুদ্ধিসমূহ (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [মহাপ্রতাপী রাজা]কে (অচ্ছ) উত্তমরূপে (অনূষত) প্রশংসা করেছে এবং (ঊতয়ে) রক্ষার জন্য [তাঁকে, এমনভাবে] (পরি ষ্বজন্তে) সবদিক থেকে বেষ্টিত/আলিঙ্গন করে, (যথা) যেমন (জনয়ঃ) পত্নীগণ (পতিম্) [নিজেদের] পতিকে, এবং (ন) যেমন (শুন্ধ্যুম্) শুদ্ধ আচরণকারী, (মঘবানম্) মহাধনী (মর্যম্) মনুষ্যকে [লোকজন বেষ্টিত করে]।।১।।
भावार्थ
মনুষ্যদের উচিত, ধর্মাত্মা পরাক্রমশালী মনুষ্যের আশ্রয় গ্রহণ করে রক্ষা করা/পাওয়া, যেমন স্ত্রীগণ তাঁদের স্বামীদের, এবং সকল মনুষ্য সদাচারী উপার্জনশীল ব্যক্তির আশ্রয় গ্রহণ করে।।১।। মন্ত্র ১-১১ ঋগ্বেদে আছে-১০।৪৩।১-১১।
भाषार्थ
(মে) আমার (বিশ্বাঃ) সব প্রকারের (মতয়ঃ) মতি/সম্মতি/বুদ্ধি (ইন্দ্রম্) পরমেশ্বরের (অচ্ছ) প্রত্যক্ষ রূপে (অনূষত) স্তুতি করে। মতি যা (স্বর্বিদঃ) সুখ প্রাপ্ত করায়, (সধ্রীচীঃ) যা পরমেশ্বরের সাথে বিচরণ করে, (উশতীঃ) এবং পরমেশ্বরেরই কামনা করে। আমার মতি (পরিষ্বজন্তে) পরমেশ্বরের আলিঙ্গন করে। (যথা) যেমন (জনয়ঃ) পত্নীরা (পতিম্) নিজ-নিজ পতির আলিঙ্গন করে। অর্থাৎ (শুন্ধ্যুং মর্যং ন) শুদ্ধাচারী মানুষ-পতির আলিঙ্গন করে, তেমনই আমার মতি (মঘবানম্) ঐশ্বর্যশালী পরমেশ্বরের আলিঙ্গন করে, (ঊতয়ে) যাতে আমার রক্ষা হতে পারে।
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