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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 39/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-३९
    2

    इन्द्रं॑ वो वि॒श्वत॒स्परि॒ हवा॑महे॒ जने॑भ्यः। अ॒स्माक॑मस्तु॒ केव॑लः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । व॒: । वि॒श्वत॑: । परि॑ । हवा॑महे । जने॑भ्य: ॥ अ॒स्माक॑म् । अ॒स्तु॒ । केव॑ल: ॥३९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं वो विश्वतस्परि हवामहे जनेभ्यः। अस्माकमस्तु केवलः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । व: । विश्वत: । परि । हवामहे । जनेभ्य: ॥ अस्माकम् । अस्तु । केवल: ॥३९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 39; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्यो !] (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवान् परमात्मा] को (वः) तुम्हारे लिये और (विश्वतः) सब (जनेभ्यः) प्राणियों के लिये (परि) सब प्रकार (हवामहे) हम बुलाते हैं। वह (अस्माकम्) हमारा (केवलः) सेवनीय (अस्तु) होवे ॥१॥

    भावार्थ

    सब मनुष्य सर्वहितकारी जगदीश्वर की आज्ञा में रहकर आनन्द पावें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।७।१०, सामवेद-उ०८।१।२ और आगे है-अ०२०।७०।१६॥१−(इन्द्रम्) परमेश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (वः) युष्मभ्यम् (विश्वतः) सर्वेभ्यः। सर्वेषां हिताय (परि) सर्वतः (हवामहे) आह्वयामः (जनेभ्यः) प्रादुर्भूतानां प्राणिनां हिताय (अस्माकम्) मनुष्याणाम् (अस्तु) (केवलः) केवृ सेवने-कलच्। सेवनीयः ॥

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    विषय

    केवलः

    पदार्थ

    १. हम (वः इन्द्रम्) = तुम सबके शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभु को (विश्वत:परि) = सब ओर से इन्द्रियों को विषयों से पृथक् करके [परि-वर्जने] (जनेभ्य:) = सब लोगों के हित के लिए (हवामहे) = पुकारते हैं। हम प्रभु-स्तवन करते हैं-प्रभु हमारे अन्दर लोकहित की भावनाओं को भरते हैं। २. वे प्रभु (अस्माकम्) = हमारे (केवल:) = आनन्द में संचार करानेवाले (अस्तु) = हों। [क-सुख, वल संचरणे]।

    भावार्थ

    प्रभु का आराधक लोकहित में प्रवृत्त होता है। प्रभु इसे आनन्दमय जीवनवाला बनाते हैं।

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    भाषार्थ

    (वः जनेभ्यः) तुम सब जनों के सुख के लिए, हम उपासक (विश्वतः परि) विश्वपरिगत अर्थात् विश्वव्यापी (इन्द्रम्) परमेश्वर से (हवामहे) प्रार्थना करते हैं। वह परमेश्वर (अस्माकम्) हम सबका (केवलः) एकमात्र आश्रय (अस्तु) हो।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    lndra Devata

    Meaning

    For the sake of you all of humanity, we invoke and worship Indra, the one lord ruler over the universe, and we pray He may be with us in vision in a state of absolute bliss.

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    Translation

    O men, for you people we invok Almighty God who maintains His supremacy over all. May he alone be our gurd.

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    Translation

    O men, for you people we invok Almighty God who maintains His supremacy overall. May he alone be our gurd.

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    Translation

    We pray to the Lord of fortunes from all sides for you; the general people. May He be our lonely shelter!

    Footnote

    cf. Rig, 1.7. 10, and 8. 14.7-10.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।७।१०, सामवेद-उ०८।१।२ और आगे है-अ०२०।७०।१६॥१−(इन्द्रम्) परमेश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (वः) युष्मभ्यम् (विश्वतः) सर्वेभ्यः। सर्वेषां हिताय (परि) सर्वतः (हवामहे) आह्वयामः (जनेभ्यः) प्रादुर्भूतानां प्राणिनां हिताय (अस्माकम्) मनुष्याणाम् (अस्तु) (केवलः) केवृ सेवने-कलच्। सेवनीयः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে মনুষ্যগণ!] (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান পরমাত্মাকে] (বঃ) তোমার জন্য ও (বিশ্বতঃ) সকল (জনেভ্যঃ) প্রাণীদের জন্য (পরি) সকল প্রকারে (হবামহে) আমরা আহ্বান করি। তিনি (অস্মাকম্) আমাদের (কেবলঃ) সেবনীয় (অস্তু) হবে/হোক॥১॥

    भावार्थ

    সকল মনুষ্য সর্বহিতকারী জগদীশ্বরের আজ্ঞাবহ হয়ে আনন্দ পাবেন॥১॥ এই মন্ত্র ঋগ্বেদে আছে-১।৭।১০, সামবেদ উ০ ৮।১।২ এবং আছে-২০।৭০।১৬।

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    भाषार्थ

    (বঃ জনেভ্যঃ) তোমাদের সকলের সুখের জন্য, আমরা উপাসক (বিশ্বতঃ পরি) বিশ্বপরিগত অর্থাৎ বিশ্বব্যাপী (ইন্দ্রম্) পরমেশ্বরের প্রতি (হবামহে) প্রার্থনা করি। সেই পরমেশ্বর (অস্মাকম্) আমাদের সকলের (কেবলঃ) একমাত্র আশ্রয় (অস্তু) হোক।

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