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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 42/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कुरुसुतिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४२
    2

    वाच॑म॒ष्टाप॑दीम॒हं नव॑स्रक्तिमृत॒स्पृश॑म्। इन्द्रा॒त्परि॑ त॒न्वं ममे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वाच॒म् । अ॒ष्टाऽप॑दीम् । अ॒हम् । नव॑ऽस्रक्तिम् । ऋ॒त॒ऽस्पृश॑म् ॥ इन्द्रा॑त् । परि॑ । त॒न्व॑म् । म॒मे॒ ॥४२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वाचमष्टापदीमहं नवस्रक्तिमृतस्पृशम्। इन्द्रात्परि तन्वं ममे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वाचम् । अष्टाऽपदीम् । अहम् । नवऽस्रक्तिम् । ऋतऽस्पृशम् ॥ इन्द्रात् । परि । तन्वम् । ममे ॥४२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 42; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अष्टापदीम्) आठ पद [छोटाई, हलकाई, प्राप्ति, स्वतन्त्रता, बड़ाई, ईश्वरपन, जितेन्द्रियता और सत्य सङ्कल्प, आठ ऐश्वर्य] प्राप्त करानेवाली, (नवस्रक्तिम्) नौ [मन, बुद्धि सहित दो कान, दो नथने, दो आँखें और एक मुख] से प्राप्त योग्य, (ऋतस्पृशम्) सत्य नियम की प्राप्ति करानेवाली, (तन्वम्) विस्तीर्ण [वा सूक्ष्म] (वाचम्) वेदवाणी को (इन्द्रात्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] से (अहम्) मैंने (परि ममे) नापा है ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने अपनी वेदवाणी सबके हित के लिये दी है, उसके द्वारा मनुष्य इन्द्रियों की स्वस्थता से [अणिमा लघिमा प्राप्तिः प्राकाम्यं महिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वं च तथा कामावसायिता ॥१॥] यह आठ ऐश्वर्य पाता है। हम लोग उचित प्रबन्ध से उसे विचार कर अपना जीवन सुधारें ॥१॥

    टिप्पणी

    इस मन्त्र का मिलान करो-अथर्व० १३।१।४२। यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।७६ [सायणभाष्य ६]। १२, ११, १० और कुछ भेद से सामवेद-उ० ३।२। तृच ९ ॥ १−(वाचम्) वेदवाणीम् (अष्टापदीम्) अ० १३।१।४२। अणिमा लघिमा प्राप्तिः प्राकाम्यं महिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वं च तथा कामावसायिता ॥१॥ इत्यष्टैश्वर्याणि पदानि प्राप्तव्यानि यया ताम् (अहम्) उपासकः (नवस्रक्तिम्) स्रक् स्रकि गतौ-क्तिन्। मनोबुद्धिसहितैः सप्तशीर्षण्यच्छिद्रैः प्राप्तव्याम्। नवपदीम्-अ० १३।१।४२। (ऋतस्पृशम्) ऋतस्य सत्यनियमस्य स्पर्शयित्रीं प्रापयित्रीम् (इन्द्रात्) परमैश्वर्ययुक्तात् परमेश्वरात् (तन्वम्) विस्तृतां सूक्ष्मां वा (परि ममे) परिमापितवानस्मि। सर्वतो ज्ञातवानस्मि ॥

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    विषय

    अष्टापदी वाक्

    पदार्थ

    १. प्रभु का स्तवन करता हुआ कुरुसुति कहता है कि (अहम्) = मैं (इन्द्रात्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु से (वाचम्) = वाणी को (परिममे) = अपने अन्दर निर्मित करता हूँ। उस वेदवाणी को जोकि (अष्टापदीम्) = कर्ता, कर्म आदि के पद से आठ पदोंवाली है। (नवस्त्रक्तिम्) = जो हमारे जीवन का स्तुत्य [नु स्तुती] निर्माण करती है और (ऋतस्पृशम्) = सब सत्य विद्याओं के स्पर्शवाली है। २. यह कुरुसुति ज्ञान की वाणी का अपने अन्दर निर्माण करता हुआ (तन्वम्) = शक्तियों के विस्तार को अपने अन्दर निर्मित करता है।

    भावार्थ

    हम प्रभु के उपासन के द्वारा अपने अन्दर सत्य-ज्ञान की वाणियों का निर्माण करते हुए शक्तियों का विस्तार करनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (अष्टापदीम्) आठ प्रकार के पदोंवाली, (नवस्रक्तिम्) नौ प्रकार के मुख्य अलंकारोंवाली, (ऋतस्पृशम्) सत्य नियमों का वर्णन करनेवाली, (तन्वम्) विस्तृत (वाचम्) वेदवाणी को, (अहम्) मैंने (इन्द्रात्) परमेश्वर से (परिममे) प्राप्त किया है, और उसके रहस्यों को जाना है।

    टिप्पणी

    [अष्टापदीम्१—वेदमन्त्र ८ प्रकार के पदोंवाले हैं। नाम, आख्यात, उपसर्ग, निपात ये चार मुख्य विभाग हैं पदों के। नाम दो प्रकार के हैं, जातिवाचक तथा व्यक्तिवाचक। जातिवाचक, यथा—वृक्ष, नदी, पर्वत आदि। व्यक्तिवाचक, यथा—ओ३म् हिरण्यगर्भ, विराट् आदि। आख्यात दो प्रकार के हैं—परस्मैपद तथा आत्मनेपद। उपसर्ग एक प्रकार के, तथा निपात तीन प्रकार के हैं। यथा—उपमार्थ, कर्मोपसंग्रहार्थ, तथा पदपूरण (निरु০ १.२.४)। नवस्रक्तिम्—नौ या नये-नये अलंकारोंवाली। यथा —उपमा, रूपक आदि। [तन्वम्=तनु विस्तारे। वेदवाणी ऋग्वेदादि के मन्त्रों में अधिक विस्तृत है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, lord of the universe, rising with your might and majesty, protect and energise both heaven and earth and promote the soma of life’s vitality created in both heaven and earth by nature and humanity by yajna.

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    Translation

    I, the seer measure out (receive) the speech which has eight cases (7 cases inclunding vacative Case as eighth) and which bears, nine branches of knowledge (Phonetic application of Mantras in ritualstic Procedures: grammar, etymology; science of metre, Astranomy; six science of sentence, logic and philosophy and is very flexible and comprehensive from Almighty God.

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    Translation

    I, the seer measure out (receive) the speech which has eight cases (7 cases including vocative case as eighth) and which bears nine branches of knowledge (Phonetic application of Mantras in ritualistic procedures; grammar, etymology; science of metres, Astranomy; six science of sentence, logic and philosophy and is very flexible and comprehensive from Almighty God.

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    Translation

    I, the devotee, fully understand the vast Vedic lore, having eight parts, nine kinds of composition, full of truth, from the Greatest Guru, the God.

    Footnote

    8 padas 4 Vedas and 4 up-Vedas; 9 sraktis: Shiksha, Kalpa, Vigyana, Nighantu, Nirukta, Jyotish, Chhandas, Dharmashastra and Mimansa (Pt. Jaidev

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस मन्त्र का मिलान करो-अथर्व० १३।१।४२। यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।७६ [सायणभाष्य ६]। १२, ११, १० और कुछ भेद से सामवेद-उ० ३।२। तृच ९ ॥ १−(वाचम्) वेदवाणीम् (अष्टापदीम्) अ० १३।१।४२। अणिमा लघिमा प्राप्तिः प्राकाम्यं महिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वं च तथा कामावसायिता ॥१॥ इत्यष्टैश्वर्याणि पदानि प्राप्तव्यानि यया ताम् (अहम्) उपासकः (नवस्रक्तिम्) स्रक् स्रकि गतौ-क्तिन्। मनोबुद्धिसहितैः सप्तशीर्षण्यच्छिद्रैः प्राप्तव्याम्। नवपदीम्-अ० १३।१।४२। (ऋतस्पृशम्) ऋतस्य सत्यनियमस्य स्पर्शयित्रीं प्रापयित्रीम् (इन्द्रात्) परमैश्वर्ययुक्तात् परमेश्वरात् (तन्वम्) विस्तृतां सूक्ष्मां वा (परि ममे) परिमापितवानस्मि। सर्वतो ज्ञातवानस्मि ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকৃত্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অষ্টাপদীম্) অষ্ট পদ [ক্ষুদ্রতা, লঘুতা, প্রাপ্তি, স্বতন্ত্রতা, বৃদ্ধি, ঈশ্বর বিশ্বাস, জিতেন্দ্রিয়তা ও সত্যসঙ্কল্প, আট ঐশ্বর্য] প্রদানকারী, (নবস্রক্তিম্) নয় [মন, বুদ্ধি সহিত দুই কান, দুই নাসারন্ধ্র, দুই চোখ ও এক মুখ] দ্বারা প্রাপ্তযোগ্য, (ঋতস্পৃশম্) সত্যনিয়ম প্রদানকারী, (তন্বম্) বিস্তীর্ণ [বা সূক্ষ্ম](বাচম্) বেদবাণীকে (ইন্দ্রাৎ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান পরমাত্মা] হতে (অহম্) আমি (পরি মমে) পরিমাপ করেছি ॥১॥

    भावार्थ

    পরমাত্মা নিজের বেদবাণী সকলের হিতের জন্য প্রদান করেছেন, তা দ্বারা মনুষ্য ইন্দ্রিয়-সমূহের সুস্থতা দ্বারা [অণিমা লঘিমা প্রাপ্তিঃ প্রাকাম্যং মহিমা তথা।ঈশিত্বং চ বশিত্বং চ তথা কামাবসায়িতা॥১॥] এই আট ঐশ্বর্য প্রাপ্ত হয় । আমরা সঠিকভাবে তা বিচার করে নিজের জীবন সংশোধন করি ॥১॥ এই মন্ত্র মেলাও-অথর্ব০ ১৩।১।৪২। এই সূক্ত ঋগ্বেদে আছে-৮।৭৬ [সায়ণভাষ্য ৬]। ১২, ১১, ১০ এবং কিছুটা আলাদাভাবে সামবেদ-উ০ ৩।২। তৃচ ৯ ॥

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    भाषार्थ

    (অষ্টাপদীম্) আট প্রকারের পদযুক্ত, (নবস্রক্তিম্) নয় প্রকারের মুখ্য অলঙ্কারযুক্ত, (ঋতস্পৃশম্) সত্য নিয়ম বর্ণনাকারী, (তন্বম্) বিস্তৃত (বাচম্) বেদবাণী, (অহম্) আমি (ইন্দ্রাৎ) পরমেশ্বর থেকে (পরিমমে) প্রাপ্ত করেছি, এবং উহার রহস্য জ্ঞাত হয়েছি।

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