अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 45/ मन्त्र 1
अ॒यमु॑ ते॒ सम॑तसि क॒पोत॑ इव गर्भ॒धिम्। वच॒स्तच्चि॑न्न ओहसे ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । ऊं॒ इति॑ । ते॒ सम् । अ॒त॒सि॒ । क॒पोत॑:ऽइव । ग॒र्भ॒ऽधिम् ॥ वच॑: । तत् । चि॒त् । न॒: । ओ॒ह॒से॒ ॥४५.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अयमु ते समतसि कपोत इव गर्भधिम्। वचस्तच्चिन्न ओहसे ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । ऊं इति । ते सम् । अतसि । कपोत:ऽइव । गर्भऽधिम् ॥ वच: । तत् । चित् । न: । ओहसे ॥४५.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सभापति के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे सेनापति !] (अयम्) यह [प्रजाजन] (ते उ) तेरा ही है, तू [उस प्रजा जन से] (सम् अतसि) सदा मिलता रहता है, (इव) जैसे (कपोतः) कबूतर (गर्भधिम्) गर्भ रखनेवाली कबूतरी से [पालने को मिलता है], (तत्) इसलिये तू (चित्) ही (नः) हमारे (वचः) वचन को (ओहसे) सब प्रकार विचारता है ॥१॥
भावार्थ
जब कबूतरी अण्डे सेवती और बच्चे देती है, कबूतर बड़े प्रेम से उसको चारा लाकर खिलाता है, इसी प्रकार राजा सुनीति से प्रजा का पालन करे और उनकी पुकार सुने ॥१॥
टिप्पणी
यह तृच ऋग्वेद में है-१।३०।४-६; सामवेद-उ० ७।३। तृच १, तथा मन्त्र १-साम० पू० २।९।९ ॥ १−(अयम्) प्रजाजनः (उ) एव (ते) तव (सम्) (अतसि) सततं संगच्छसे (कपोतः) पारावतः (इव) यथा (गर्भधिम्) गर्भ+दधातेः-कि प्रत्ययः। गर्भधारिणीं कपोतीम् (वचः) वचनम् (तत्) तस्मात् कारणात् (चित्) एव (नः) अस्माकम् (ओहसे) आ+ऊह वितर्के। समन्ताद् विचारयसि ॥
विषय
क-पोतः
पदार्थ
१. प्रभु जीव से कहते हैं कि हे जीव! (अयम्) = यह सोम (उ) = निश्चय से ते-तेरा है, तेरे लिए उत्पन्न किया गया है। (सम् अतसि) = तू इसे सम्यक् प्राप्त करता है। यह तेरे लिए (क-पोतः इव) = आनन्द की नाव के समान है। तेरे सारे आनन्दों का निर्भर इसी पर है। २. इस सोम के रक्षण से ही तू (न:) = हमारे (तत् वचः) = उस वेदवाणीरूप ज्ञानवचन को (चित्) = भी (आ ऊहसे) = सम्यक् जाननेवाला होता है जो (गर्भधिम्) = अपने अन्दर सम्पूर्ण सत्य-ज्ञान को धारण करनेवाला है। सोम ही सुरक्षित होकर हमें दीस बुद्धिवाला बनाकर इसके समझने के योग्य बनाता है।
भावार्थ
प्रभु ने हमारी उन्नति के लिए सोम का सम्पादन किया है। यह सुख देनेवाला है। दीस बुद्धि बनाकर हमें ज्ञान की वाणियों के तत्वों को समझाने के योग्य बनाता है।
भाषार्थ
हे परमेश्वर! (अयम्) ये उपासक (उ) निश्चय से (ते) आपका है। (समतसि) इसके साथ संगत हूजिए, (इव) जैसे कि (कपोतः) कबूतर (गर्भधिम्) गर्भधारण की इच्छावाली कबूतरी के साथ संगत होता है। (नः) हमारे (तत् चित्) इन (वचः) प्रार्थना-वचनों को (ओहसे) स्वीकार कीजिए।
टिप्पणी
[जैसे “गर्भधिम्” कबूतरी जब गर्भ धारण की उग्र कामनावाली हो जाती है, तब कबूतर उसके साथ संगत हो जाता है, तो हे परमेश्वर! हम भी तो आपके संगम की उग्र कामनावाले हैं, और आपके ही हैं, तो आप हमारे साथ संगत क्यों नहीं रहे? कृपया संगत हूजिए, दर्शन दीजिए, हमारी उग्र कामना को सफल कीजिए। यह हमारी प्रार्थना है।]
इंग्लिश (4)
Subject
India Devata
Meaning
Indra, light and power of existence, this creation is yours for sure. Just as a pigeon flies into the nest to meet its mate, so do you pervade and impregnate nature to create the world of forms, and listen to our words of praise and prayer.
Translation
O mighty ruler, this man is yours. You draw him nearer as the dove goes near his mate. You care for my prayers.
Translation
O mighty ruler, this man is yours. You draw him nearer as the dove goes near his mate. You care for my prayers.
Translation
O king or commander, this national estate is thine. Thou approachest it just as the male pigeon does the female one. Similarly dost thou lovingly listen to our words.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह तृच ऋग्वेद में है-१।३०।४-६; सामवेद-उ० ७।३। तृच १, तथा मन्त्र १-साम० पू० २।९।९ ॥ १−(अयम्) प्रजाजनः (उ) एव (ते) तव (सम्) (अतसि) सततं संगच्छसे (कपोतः) पारावतः (इव) यथा (गर्भधिम्) गर्भ+दधातेः-कि प्रत्ययः। गर्भधारिणीं कपोतीम् (वचः) वचनम् (तत्) तस्मात् कारणात् (चित्) एव (नः) अस्माकम् (ओहसे) आ+ऊह वितर्के। समन्ताद् विचारयसि ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
সভাধ্যক্ষকৃত্যোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে সেনাপতি!] (অয়ম্) এই [প্রজাগণ] (তে উ) তোমারই, তুমি [সেই প্রজাদের সাথে] (সম্ অতসি) সদা মিলেমিশে থাকো, (ইব) যেমন (কপোতঃ) পায়রা (গর্ভধিম্) গর্ভধারিণী পায়রার সাথে [মিলেমিশে থাকে], (তৎ) এজন্য তুমি (চিৎ) ই (নঃ) আমাদের (বচঃ) বচন (ওহসে) সকল প্রকারে বিচার করো॥১॥
भावार्थ
যখন গর্ভধারিণী পায়রা ডিম দেয় এবং তা থেকে বাচ্চা উৎপন্ন হয়, পুরুষ পায়রা অত্যন্ত প্রেমপূর্ণভাব সহিত তাদের খাদ্য এনে দেয়, এভাবে রাজা সুনীতির সাথে প্রজা পালন করে/করুক এবং তাঁদের আহ্বান শ্রবণ করেন/করুক ॥১॥ এ তৃচ ঋগ্বেদে আছে-১।৩০।৪-৬; সামবেদ-উ০ ৭।৩। তৃচ ১, তথা মন্ত্র ১-সাম০ পূ০ ২।৯।৯ ॥
भाषार्थ
হে পরমেশ্বর! (অয়ম্) এই উপাসক (উ) নিশ্চিতরূপে (তে) আপনার। (সমতসি) এর [উপাসকের] সাথে সঙ্গত হন, (ইব) যেমন (কপোতঃ) পায়রা (গর্ভধিম্) গর্ভধারণের কামনাযুক্ত স্ত্রী-পায়রার সাথে সঙ্গত হয়। (নঃ) আমাদের (তৎ চিৎ) এই (বচঃ) প্রার্থনা-বচন (ওহসে) স্বীকার করুন।
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