अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 46/ मन्त्र 1
प्र॑णे॒तारं॒ वस्यो॒ अच्छा॒ कर्ता॑रं॒ ज्योतिः॑ स॒मत्सु॑। सा॑स॒ह्वांसं॑ यु॒धामित्रा॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒ऽने॒तार॑म् । वस्य॑: । अच्छ॑ । कर्ता॑रन् । ज्योति॑: । स॒मत्ऽसु॑ । स॒स॒ऽह्वांस॑म् । यु॒धा । अ॒मित्रा॑न् ॥४६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रणेतारं वस्यो अच्छा कर्तारं ज्योतिः समत्सु। सासह्वांसं युधामित्रान् ॥
स्वर रहित पद पाठप्रऽनेतारम् । वस्य: । अच्छ । कर्तारन् । ज्योति: । समत्ऽसु । ससऽह्वांसम् । युधा । अमित्रान् ॥४६.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सेनापति के लक्षण का उपदेश।
पदार्थ
(वस्यः) श्रेष्ठ धन की ओर (प्रणेतारम्) ले चलनेवाले (समत्सु) संग्रामों में (ज्योतिः) प्रकाश (कर्तारम्) करनेवाले (युधा) युद्ध से (अमित्रान्) पीड़ा देनेवाले वैरियों को (सासह्वांसम्) हरानेवाले [सेनापति] को (अच्छ) पाकर [हम बर्तें] ॥१॥
भावार्थ
जो मनुष्य प्रजा को धन प्राप्त करावे और संग्रामों में वैरियों को जीते, वह सेनापति होवे ॥१॥
टिप्पणी
यह तृच ऋग्वेद में है-८।१६।१०-१२ ॥ १−(प्रणेतारम्) प्रापयितारम् (वस्यः) अ० २०।१४।३। प्रशस्यं धनम् (अच्छ) अच्छाभेराप्तुमिति शाकपूणिः-निरु० ।२८। प्राप्य (कर्तारम्) कारकम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (समत्सु) सङ्ग्रामेषु (सासह्वांसम्) षह अभिभवे-क्वसु, अभ्यासस्य दीर्घश्छान्दसः। अभिभवितारम् (युधा) युद्धेन (अमित्रान्) पीडकान्। शत्रून् ॥
विषय
"प्रशस्त मन तथा ज्योति' के कर्ता प्रभु
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार हम अपने अन्दर प्रभु से प्रेरणा का वर्धन करनेवाले हों जो हमें (वस्य:) = प्रशस्त धन को अच्छा-ओर (प्रणेतारम्) = ले-चलनेवाले हैं तथा (समत्सु) = संग्रामों में (ज्योति:) = हमारे लिए ज्ञान का प्रकाश कारम् करनेवाले हैं। इस ज्ञान के प्रकाश में ही तो शत्रुभूत वासनाओं के अन्धकार का विलय होता है। २. उन प्रभु को ही हम बढ़ाएँ जोकि (युधा) = युद्ध के द्वारा (अमित्रान्) = हमारे सब शत्रुओं को (सासहांसम्) = कुचल देनेवाले हैं।
भावार्थ
प्रभु हमारे लिए प्रशस्त धन देते हैं। काम-क्रोध आदि शत्रुओं के साथ संग्राम में हमारे लिए ज्ञानज्योति प्राप्त कराते हैं। इन शत्रुओं के साथ युद्ध में उन्हें ज्ञानाग्नि में भस्म कर डालते हैं।
भाषार्थ
(युधा) निज प्रहार द्वारा (अमित्रान्) अस्नेही काम आदि का (सासह्वांसम्) पराभव करनेवाले, (समत्सु) देवासुर-संग्रामों में (ज्योतिः कर्तारम्) ज्योति प्रदान करनेवाले, (वस्यः) सर्वश्रेष्ठधन मोक्ष (प्रणेतारम्) प्राप्त करानेवाले महानेता को (अच्छ) हम स्वाभिमुख करते हैं।
विषय
आत्मा और राजा।
भावार्थ
(वस्यः) ऐश्वर्य को (अच्छ) प्राप्त करने के लिये (प्रणेतारम्) उत्तम नायक, (समत्सु) संग्रामों और एक आनन्दोत्सवों में (ज्योतिः कर्त्तारम्) ज्ञान प्रकाश और तेज के दिखाने वाले, (युधा) युद्ध द्वारा (अमित्रान्) शत्रुओं को (सासह्वांसम्) पराजय करने हारे पुरुष को हम (अच्छ) प्राप्त करें। अध्यात्म में—(वस्यः) देह में बसने वाले प्राप्त रूप वस्तुओं में सब से श्रेष्ठ ‘वसीयस’ मुख्य प्राण के प्रणेता आत्मा है, जो अति समाधिरस के अवसरों पर परम आभ्यन्तर ज्योति को उत्पन्न करता है, (युधा) विपक्ष भावना द्वारा राग द्वेषादि शत्रुओं को पराजित करता है उसको (अच्छ) साक्षात् करो। परमेश्वर पक्ष में—समस्त ऐश्वर्यों को प्राप्त कराने वाला, समस्त ज्योतियों का उत्पादक, बाधक शत्रुओं का दलन करता है उसको प्राप्त करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
All people, communities and nations adore and exalt Indra who brings wealth, peace and prosperity to humanity, creates light and hope for their battles of life, and challenges and destroys enemies by fighting them out.
Translation
May we get (as our ruler) the man who leads towards gain of prosperity, who sende light to lead all powers in the battles and who quels the foe-men by fighting them.
Translation
May we get (as our ruler) the man who leads towards gain of prosperity, who send light to lead all powers in the battles and who quels the foe-men by fighting them.
Translation
May he approach well the good leader of the fortunes, showing an enlightened lead and glory in the wars or great festive occasions, and subaruing the foes through war and valour.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह तृच ऋग्वेद में है-८।१६।१०-१२ ॥ १−(प्रणेतारम्) प्रापयितारम् (वस्यः) अ० २०।१४।३। प्रशस्यं धनम् (अच्छ) अच्छाभेराप्तुमिति शाकपूणिः-निरु० ।२८। प्राप्य (कर्तारम्) कारकम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (समत्सु) सङ्ग्रामेषु (सासह्वांसम्) षह अभिभवे-क्वसु, अभ्यासस्य दीर्घश्छान्दसः। अभिभवितारम् (युधा) युद्धेन (अमित्रान्) पीडकान्। शत्रून् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
সেনাপতিলক্ষণোপদেশঃ
भाषार्थ
(বস্যঃ) শ্রেষ্ঠ ধনের দিকে (প্রণেতারম্) প্রেরণকারী (সমৎসু) সংগ্রামে (জ্যোতিঃ) প্রকাশ (কর্তারম্) কারক (যুধা) যুদ্ধ দ্বারা (অমিত্রান্) পীড়া প্রদায়ী শত্রুদের (সাসহ্বাংসম্) পরাজিতকারী সেই [সেনাপতিকে] (অচ্ছ) প্রাপ্ত হই॥১॥
भावार्थ
যে মনুষ্য প্রজাকে ধনপ্রাপ্ত করান এবং সংগ্রামে শত্রুদের জয় করেন, তিনি সেনাপতি হবেন ॥১॥ এই তৃচ ঋগ্বেদে আছে-৮।১৬।১০-১২।
भाषार्थ
(যুধা) নিজ প্রহার দ্বারা (অমিত্রান্) অস্নেহী কামাদির (সাসহ্বাংসম্) পরাভবকারী, (সমৎসু) দেবাসুর-সংগ্রামে (জ্যোতিঃ কর্তারম্) জ্যোতি প্রদানকারী, (বস্যঃ) সর্বশ্রেষ্ঠধন মোক্ষ (প্রণেতারম্) প্রাপ্তিতে সহায়ক মহানেতাকে (অচ্ছ) আমরা স্বাভিমুখ করি।
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