अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 55/ मन्त्र 1
तमिन्द्रं॑ जोहवीमि म॒घवा॑नमु॒ग्रं स॒त्रा दधा॑न॒मप्र॑तिष्कुतं॒ शवां॑सि। मंहि॑ष्ठो गी॒र्भिरा च॑ य॒ज्ञियो॑ व॒वर्त॑द्रा॒ये नो॒ विश्वा॑ सु॒पथा॑ कृणोतु व॒ज्री ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । इन्द्र॑म् । जो॒ह॒वी॒मि॒ । म॒घऽवा॑नम् । उ॒ग्रम् । स॒त्रा । दधा॑नम् । अप्र॑तिऽस्कुतम् । शवां॑सि ॥ मंहि॑ष्ठ । गी॒ऽभि: । आ । च॒ । य॒ज्ञिय॑: । व॒वर्त॑त् । रा॒ये । न॒: । विश्वा॑ । सु॒ऽपथा॑ । कृ॒णो॒तु॒ । व॒ज्री ॥५५.१॥
स्वर रहित मन्त्र
तमिन्द्रं जोहवीमि मघवानमुग्रं सत्रा दधानमप्रतिष्कुतं शवांसि। मंहिष्ठो गीर्भिरा च यज्ञियो ववर्तद्राये नो विश्वा सुपथा कृणोतु वज्री ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । इन्द्रम् । जोहवीमि । मघऽवानम् । उग्रम् । सत्रा । दधानम् । अप्रतिऽस्कुतम् । शवांसि ॥ मंहिष्ठ । गीऽभि: । आ । च । यज्ञिय: । ववर्तत् । राये । न: । विश्वा । सुऽपथा । कृणोतु । वज्री ॥५५.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(मघवानम्) अत्यन्त धनी, (उग्रम्) प्रचण्ड, (सत्रा) सच्चे (शवांसि) बलों के (दधानम्) धारण करनेवाले (अप्रतिष्कुतम्) बे-रोक गतिवाले (तम्) उस (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] को (जोहवीमि) मैं बार-बार पुकारता हूँ। (मंहिष्ठः) वह अत्यन्त उदार (यज्ञिय) पूजा योग्य (च) और (वज्री) वज्रधारी [अस्त्र-शस्त्र वाला] (गीर्भिः) हमारी वाणियों से (नः) हमको (राये) धन के लिये (आ) सब प्रकार (ववर्तत्) वर्तमान करे और (विश्वा) सब कर्मों को (सुपथा) सुन्दर मार्गवाला (कृणोतु) बनावे ॥१॥
भावार्थ
राजा प्रजा की पुकार सुनकर उन्हें सुमार्ग में चलाकर धन प्राप्त करावे ॥१॥
टिप्पणी
यह तृच ऋग्वेद में है-८।९८ [सायणभाष्य ८६]।१३, १, २ मन्त्र १ सामवेद-पू० ।८।४। और मन्त्र २ पू० ३।७।२ ॥ १−(तम्) प्रसिद्धम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं राजानम् (जोहवीमि) अ० २।१२।३। ह्वेञ् आह्वाने, यङ्लुगन्तात्-लट्। पुनः पुनराह्वयामि (मघवानम्) बहुधनवन्तम् (उग्रम्) प्रचण्डम् (सत्रा) सत्यानि (दधानम्) धारयन्तम् (अप्रतिष्कुतम्) अ० २०।४१।१। अप्रतिगतम् (शवांसि) बलानि (मंहिष्ठः) दातृतमः (गीर्भिः) अस्माकं वाणीभिः (आ) समन्तात् (च) (यज्ञियः) पूजार्हः (ववर्तत्) वर्ततेर्ण्यन्तस्य चङि रूपं लिङर्थे। वर्तयेत। (राये) धनाय (नः) अस्मान् (विश्वा) सर्वाणि कर्माणि (सुपथा) सुपथानि। सुमार्गयुक्तानि (कृणोतु) करोतु (वज्री) शस्त्रास्त्रधारकः ॥
विषय
राये विश्वा सुपथा कृणोतु
पदार्थ
१. (तम्) = उस (इन्द्रम्) = सर्वशक्तिमान् व परमैश्वर्यशाली प्रभु को (जोहवीमि) = पुकारता हूँ, जोकि (मघवानम्) = सब ऐश्वर्यों के स्वामी है, (उग्रम्) = तेजस्वी हैं, (सत्रा) = सदा (शवांसि दधानम्) = बलों का धारण करनेवाले हैं, (अप्रतिष्कुतम्) = प्रतिशब्द से रहित हैं-जिनका युद्ध में कोई आह्वान नहीं कर सकता। २. वे प्रभु (मंहिष्ठ:) = सर्वमहान् दाता हैं (च) = और (गीभि:) = ज्ञान की वाणियों से उपासना के योग्य हैं। ये प्रभु (आववर्तत्) = सर्वत्र वर्तमान हैं। (वज्री) = ये वज्रहस्त प्रभु (राये) = ऐश्वर्य के लिए (न:) = हमारे (विश्वा) = सब सुपथा उत्तम मार्गों को (कृणोत) = करें।
भावार्थ
हम उन प्रभु को पुकारें जो ऐश्वर्यशाली-तेजस्वी-बल के धारक व अद्वितीय योद्धा है। हम उस सर्वप्रद प्रभु को पूजें। प्रभु हमें सत्पथ से ऐश्वर्य की ओर ले-चलें।
भाषार्थ
(तम् इन्द्रम्) उस परमेश्वर के प्रति (जोहवीमि) मैं श्रद्धापर्वूक और बार-बार आत्माहुतियाँ करता हूँ, जो कि (मघवानम्) ऐश्वर्यों का स्वामी है, (उग्रम्) शासन में उग्र, और (सत्रा) वास्तव में (शवांसि) नाना बलों को (दधानम्) धारण करता, (अप्रतिष्कुतम्) जो विरोधी शक्तियों द्वारा झुकाया नहीं जा सकता। (मंहिष्ठः) जो पूजनीय और महादानी है, (यज्ञियः) यज्ञों में एकमात्र पूजनीय वह परमेश्वर, (गीर्भिः) स्तुतियों और प्रार्थनाओं द्वारा (आ ववर्तद्) आकृष्ट हो जाता है। (राये) सांसारिक और आध्यात्मिक ऐश्वर्यों की प्राप्ति के लिए वह (नः) हमारे लिए (विश्वा सुपथा) सब मार्गों को सुमार्ग और सुगम (कृणोतु) करे। (वज्री) वह पाप-वृत्रों पर वज्र-प्रहार करता है। [अप्रतिष्कुतः=अ+प्रति+ष्कुञ् (आप्रवणे)+क्त।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
That Indra, ruler of the world, I invoke and address, illustrious, pious and true, wielder of unopposed powers, and I pray may the most generous and adorable lord of thunderous power, in response to our voice, turn to us constantly and clear our paths of advancement for the achievement of wealth, power, honour and excellence of the world.
Translation
I pray again and agian the God Almighty who always holds all the strength, unconqurable, adorable with Praises and Prayers, worshippable object of Yajna and who is pervading every-where. May he, the mighty one, make all our path‘s good for attainment of wealth.
Translation
I pray again and again the God Almighty who always holds all the strength, unconquerable, adorable with praises and prayers, worship-able object of Yajna and who is pervading everywhere. May he, the mighty one, make all our path‘s good for attainment of wealth.
Translation
I, the devotee, often remember and call that Lord of fortunes equipped with all wealth and riches, Terrible, Unbearable and Bearer of all powers, altogether. He pervades all space, worthy to be worshipped and revered. May He, the Remover of all evils and difficulties make all our paths good for attaining fortunes and riches.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह तृच ऋग्वेद में है-८।९८ [सायणभाष्य ८६]।१३, १, २ मन्त्र १ सामवेद-पू० ।८।४। और मन्त्र २ पू० ३।७।२ ॥ १−(तम्) प्रसिद्धम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं राजानम् (जोहवीमि) अ० २।१२।३। ह्वेञ् आह्वाने, यङ्लुगन्तात्-लट्। पुनः पुनराह्वयामि (मघवानम्) बहुधनवन्तम् (उग्रम्) प्रचण्डम् (सत्रा) सत्यानि (दधानम्) धारयन्तम् (अप्रतिष्कुतम्) अ० २०।४१।१। अप्रतिगतम् (शवांसि) बलानि (मंहिष्ठः) दातृतमः (गीर्भिः) अस्माकं वाणीभिः (आ) समन्तात् (च) (यज्ञियः) पूजार्हः (ववर्तत्) वर्ततेर्ण्यन्तस्य चङि रूपं लिङर्थे। वर्तयेत। (राये) धनाय (नः) अस्मान् (विश्वा) सर्वाणि कर्माणि (सुपथा) सुपथानि। सुमार्गयुक्तानि (कृणोतु) करोतु (वज्री) शस्त्रास्त्रधारकः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজকৃত্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(মঘবানম্) অত্যন্ত ধনী, (উগ্রম্) প্রচণ্ড, (সত্রা) সত্য (শবাংসি) বলের (দধানম্) ধারক (অপ্রতিষ্কুতম্) অপ্রতিরোধ্য (তম্) প্রসিদ্ধ (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যযুক্ত রাজা] কে (জোহবীমি) আমি বারংবার আহ্বান করি। (মংহিষ্ঠঃ) তিনি অত্যন্ত উদার (যজ্ঞিয়) পূজনীয় (চ) এবং (বজ্রী) বজ্রধারী [অস্ত্র-শস্ত্রে সজ্জিত] (গীর্ভিঃ) আমাদের প্রার্থনা শ্রবণ করে (নঃ) আমাদের (রায়ে) ধনের জন্য (আ) সকল প্রকারে (ববর্তৎ) বর্তমান করুন এবং (বিশ্বা) সকল কর্মকে (সুপথা) উত্তম মার্গযুক্ত (কৃণোতু) করুন ॥১॥
भावार्थ
রাজা প্রজাগণের আহ্বান শুনে তাঁদের সুমার্গে প্রেরিত করে ধন-সুখ প্রাপ্ত করায় ॥১॥ এই তৃচ ঋগ্বেদে আছে-৮।৯৮ [সায়ণভাষ্য ৮৬]।১৩, ১, ২ মন্ত্র ১ সামবেদ-পূ০ ৫।৮।৪। এবং মন্ত্র ২ পূ০ ৩।৭।২ ॥
भाषार्थ
(তম্ ইন্দ্রম্) সেই পরমেশ্বরের প্রতি (জোহবীমি) আমি শ্রদ্ধাপর্বূক এবং বার-বার আত্মাহুতি প্রদান করি, যিনি (মঘবানম্) ঐশ্বর্য-সমূহের স্বামী, (উগ্রম্) শাসনে উগ্র, এবং (সত্রা) বাস্তবে (শবাংসি) নানা বল/শক্তি (দধানম্) ধারণ করেন, (অপ্রতিষ্কুতম্) যিনি বিরোধী শক্তি দ্বারা অপ্রতিরুদ্ধ। (মংহিষ্ঠঃ) যিনি পূজনীয় এবং মহাদানী, (যজ্ঞিয়ঃ) যজ্ঞে একমাত্র পূজনীয় সেই পরমেশ্বর, (গীর্ভিঃ) স্তুতি এবং প্রার্থনা দ্বারা (আ ববর্তদ্) আকৃষ্ট হন। (রায়ে) সাংসারিক এবং আধ্যাত্মিক ঐশ্বর্য প্রাপ্তির জন্য তিনি (নঃ) আমাদের জন্য (বিশ্বা সুপথা) সকল মার্গ সুমার্গ এবং সুগম (কৃণোতু) করেন। (বজ্রী) তিনি পাপ-বৃত্রের ওপর বজ্র-প্রহার করেন। [অপ্রতিষ্কুতঃ=অ+প্রতি+ষ্কুঞ্ (আপ্রবণে)+ক্ত।]
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