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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 60/ मन्त्र 1
    ऋषिः - सुतकक्षः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६०
    2

    ए॒वा ह्यसि॑ वीर॒युरे॒वा शूर॑ उ॒त स्थि॒रः। ए॒वा ते॒ राध्यं॒ मनः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । हि । असि॑ । वी॒र॒ऽयु: । ए॒व । शूर॑: । उ॒त । स्थि॒र: ॥ ए॒व । ते॒ । राध्य॑म् । मन॑: ॥६०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा ह्यसि वीरयुरेवा शूर उत स्थिरः। एवा ते राध्यं मनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव । हि । असि । वीरऽयु: । एव । शूर: । उत । स्थिर: ॥ एव । ते । राध्यम् । मन: ॥६०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 60; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे पुरुष !] तू (एव) निश्चय करके (हि) ही (वीरयुः) वीरों का चाहनेवाला, (एव) निश्चय करके (शूरः) शूर (उत) और (स्थिरः) दृढ़ (असि) है, (एव) निश्चय करके (ते) तेरा (मनः) मन [विचारसामर्थ्य] (राध्यम्) बड़ाई योग्य है ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य धार्मिक सत्य सङ्कल्पों की पूर्ति के लिये सदा दृढ़ प्रयत्न करे ॥१॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १-३ ऋग्वेद में हैं-८।९२ [सायणभाष्य ८१]।२८-३०। सामवेद-उ० २।१। तृच १८; मन्त्र १-पू० ३।४।१० ॥ १−(एव) निश्चयेन (हि) अवधारणे (असि) (वीरयुः) वीर-क्यच्। उप्रत्ययः वीरान् कामयमानः (एव) (शूरः) (उत) अपि (स्थिरः) दृढः (एव) (ते) तव (राध्यम्) आराधनीयम् (मनः) मननसामर्थ्यम् ॥

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    विषय

    शूर-स्थिर

    पदार्थ

    १. (एवा) = इसप्रकार, अर्थात् गतमन्त्र के अनुसार प्रभु-स्मरणपूर्वक कर्म करने पर तू (हि) = निश्चय से (वीरयः असि) = वीरता की भावना को अपने साथ जोड़नेवाला है। (एवा) = इसप्रकार तु (शूरः) = शत्रुओं को शीर्ण करनेवाला (उत) = और (स्थिर:) = स्थिरवृत्ति का बनता है। २. (एवा) = इसप्रकार (ते) = तेरा (मन:) = मन (राध्यम्) = सिद्धि व सफलता से पूर्ण बनता है [to be successful] अथवा तेरा मन पूर्णता को प्राप्त होता है [to be accomplished], न्यूनताओं से रहित होता है।

    भावार्थ

    प्रभु-स्मरणपूर्वक कर्म करते हुए हम 'वीर, शूर व स्थिर' बनें। हम अपने मनों को न्यूनताओं से रहित कर पाएँ।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! आप (वीरयुः एव) धर्मवीरों को ही चाहते (असि) हैं, (हि) यह निश्चित है। (शूरः) आप पराक्रमशील हैं, (उत) और आप (एव) ही (स्थिरः) सदा रहनेवाले कूटस्थ हैं। (ते) आपका (एव) ही (मनः) दिया हुआ मन है, जो कि (राध्यम्) आराधना द्वारा सिद्ध किया जाने योग्य है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    You love and honour the brave, you are brave yourself, you are definite in intention and undisturbed in attitude. You are now ripe for the perfection of mind to experience the soul’s beatitude in divine presence.

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    Translation

    Thus you are the friend of heroes. O king, you are hold and strong too. Thus, your mind is Praiseworthy.

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    Translation

    Thus you are the friend of heroes. O king, you are bold and strong too. Thus, your mind is praiseworthy.

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    Translation

    O Mighty Lord or king, Thou art truly the accomplice of the brave. Thou art chivalrous and steady indeed. Verily Thy Real Self is worthy to be worshipped.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र १-३ ऋग्वेद में हैं-८।९२ [सायणभाष्य ८१]।२८-३०। सामवेद-उ० २।१। तृच १८; मन्त्र १-पू० ३।४।१० ॥ १−(एव) निश्चयेन (हि) अवधारणे (असि) (वीरयुः) वीर-क्यच्। उप्रत्ययः वीरान् कामयमानः (एव) (शूरः) (उत) अपि (स्थिरः) दृढः (एव) (ते) तव (राध्यम्) आराधनीयम् (मनः) मननसामर्थ्यम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে পুরুষ !] তুমি (এব) নিশ্চিতরূপে (হি)(বীরয়ুঃ) বীরদের কামনাকারী, (এব) নিশ্চিতরূপে (শূরঃ) বীর (উত) এবং (স্থিরঃ) দৃঢ়তা (অসি) হও, (এব) নিশ্চিতরূপে (তে) তোমার (মনঃ) মন [বিচারসামর্থ্য] (রাধ্যম্) প্রশংসাযোগ্য ॥১॥

    भावार्थ

    মনুষ্য ধার্মিক সত্য সঙ্কল্প সমূহের পূর্তির জন্য সদা দৃঢ় প্রচেষ্টা করে/করুক ॥১॥ মন্ত্র ১-৩ ঋগ্বেদে আছে-৮।৯২ [সায়ণভাষ্য ৮১]।২৮-৩০। সামবেদ-উ০ ২।১। তৃচ ১৮; মন্ত্র ১-পূ০ ৩।৪।১০ ॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! আপনি (বীরয়ুঃ এব) ধর্মবীর কামনাকারী (অসি) হন, (হি) ইহা নিশ্চিত। (শূরঃ) আপনি পরাক্রমশীল, (উত) এবং আপনি (এব)(স্থিরঃ) সদা বর্তমান কূটস্থ। (তে) আপনার (এব)(মনঃ) প্রদত্ত মন, যা (রাধ্যম্) আরাধনা দ্বারা সিদ্ধ যোগ্য।

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