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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 69 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 69/ मन्त्र 7
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६९
    1

    अक्षि॑तोतिः सनेदि॒मं वाज॒मिन्द्रः॑ सह॒स्रिण॑म्। यस्मि॒न्विश्वा॑नि॒ पौंस्या॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अक्षि॑तऽऊति: । स॒ने॒त् । इ॒मम् । वाज॑म् । इन्द्र॑: । म॒ह॒स्रिण॑म् ॥ यस्मि॑न् । विश्वा॑नि । पौंस्या॑ ॥६९.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अक्षितोतिः सनेदिमं वाजमिन्द्रः सहस्रिणम्। यस्मिन्विश्वानि पौंस्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अक्षितऽऊति: । सनेत् । इमम् । वाजम् । इन्द्र: । महस्रिणम् ॥ यस्मिन् । विश्वानि । पौंस्या ॥६९.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    १-८ पराक्रमी मनुष्य के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (अक्षितोतिः) अक्षय रक्षा वा ज्ञानवाला (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी मनुष्य] (इमम्) इस (सहस्रिणम्) सहस्रों सुखवाले (वाजम्) ज्ञान का (सनेत्) सेवन करें, (यस्मिन्) जिसमें (विश्वानि) सब (पौंस्या) मनुष्यकर्म [वा बल] हैं ॥७॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रतापी होकर सर्वोपकारी कार्य करके सुखी होवे ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(अक्षितोतिः) अक्षीणा वर्धमाना ऊती रक्षा ज्ञानं वा यस्य सः (सनेत्) षण संभक्तौ-विधिलिङ्। सेवेत (इमम्) वक्ष्यमाणम् (वाजम्) विज्ञानम् (इन्द्रः) महाप्रतापी मनुष्यः (सहस्रिणम्) अ० २०।९।२। असंख्यसुखयुक्तम् (यस्मिन्) ज्ञाने (विश्वानि) सर्वाणि (पौंस्या) अ० २०।६७।२। मनुष्यकर्माणि। बलानि ॥

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    विषय

    सात्त्विक अन्न द्वारा बल-वर्धन

    पदार्थ

    १. (अक्षितोति:) = यह न नष्ट हुए-हुए रक्षणवाला-सोम-रक्षण द्वारा अपनी रक्षा करनेवाला (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (इमम्) = इस (सहस्त्रिणम्) = [स+हस्] सदा हास्य व प्रसन्नता देनेवाले वाजम् अन्न का (सनेत्) = सेवन करे । (यस्मिन्) = जिस सात्त्विक अन्न में (विश्वानि पौंस्या) = सब बल हैं। २. हम सात्त्विक अन्नों का सेवन करते हुए अपनी शक्ति का वर्धन करें और सदा अपना रक्षण करनेवाले हों।

    भावार्थ

    हम सात्त्विक अन्न का सेवन करें। इसप्रकार अपने बलों का वर्धन करके अनष्ट रक्षणवाले हों।

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    भाषार्थ

    (अक्षितोतिः) अक्षीण रक्षावाला अर्थात् सदा रक्षक (इन्द्रः) परमेश्वर, (इमं वाजम्) हमें ऐसी शक्ति (सनेत्) प्रदान करे कि हम (सहस्रिणम्) हजारों की सेवा कर सकें। वह परमेश्वर (यस्मिन्) जिसमें कि (विश्वानि) सब प्रकार की (पौंस्या) शक्तियाँ हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, whose omnipotence and protection is infinite and imperishable, may, we pray, bless us with this thousand-fold knowledge and power of science in which are contained all the secrets of nature’s vitality.

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    Translation

    May Almighty Divinity whose succour is inexhaustible bestow us this thousand-fold possession in which all manly powers abide.

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    Translation

    May Almighty Divinity whose succour is inexhaustible bestow us this thousand-fold possession in which all manly powers abide.

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    Translation

    Let the Mighty Lord or king of Indestructible power of protection and defence, in Whom there are all powers and energies shower this wealth of thousands of kinds in the form of food, power, knowledge and renown.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(अक्षितोतिः) अक्षीणा वर्धमाना ऊती रक्षा ज्ञानं वा यस्य सः (सनेत्) षण संभक्तौ-विधिलिङ्। सेवेत (इमम्) वक्ष्यमाणम् (वाजम्) विज्ञानम् (इन्द्रः) महाप्रतापी मनुष्यः (सहस्रिणम्) अ० २०।९।२। असंख्यसुखयुक्तम् (यस्मिन्) ज्ञाने (विश्वानि) सर्वाणि (पौंस्या) अ० २०।६७।२। मनुष्यकर्माणि। बलानि ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-৮ পরাক্রমিলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অক্ষিতোতিঃ) অক্ষয় রক্ষা বা জ্ঞানযুক্ত (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [মহাপ্রতাপী মনুষ্য] (ইমম্) এই (সহস্রিণম্) সহস্র সুখযুক্ত (বাজম্) জ্ঞানের (সনেৎ) সেবন করে/করুক, (যস্মিন্) যার মধ্যে (বিশ্বানি) সকল (পৌংস্যা) মনুষ্যকর্ম [বা বল] বিদ্যমান ॥৭॥

    भावार्थ

    মনুষ্য প্রতাপী হয়ে সর্বোপকারী কার্য করে সুখী হোক ॥৭॥

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    भाषार्थ

    (অক্ষিতোতিঃ) অক্ষীণ রক্ষাকারী অর্থাৎ সদা রক্ষক (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর, (ইমং বাজম্) আমাদের এমন শক্তি (সনেৎ) প্রদান করুক যাতে আমরা (সহস্রিণম্) সহস্রের সেবা করতে পারি। সেই পরমেশ্বর (যস্মিন্) যার মধ্যে (বিশ্বানি) সকল প্রকারের (পৌংস্যা) শক্তি-সমূহ বিদ্যমান।

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