अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 81/ मन्त्र 1
यद्द्याव॑ इन्द्र ते श॒तं श॒तं भूमी॑रु॒त स्युः। न त्वा॑ वज्रिन्त्स॒हस्रं॒ सूर्या॒ अनु॒ न जा॒तम॑ष्ट॒ रोद॑सी ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । द्याव॑: । इ॒न्द्र॒ । ते॒ । श॒तम् । भूमी॑: । उ॒त । स्युरिति॒ । स्यु: ॥ न । त्वा॒ । व॒ज्रि॒न् । स॒हस्र॑म् । सूर्या॑: । अनु॑ । न । जा॒तम् । अ॒ष्ट॒ । रोद॑सी॒ इति॑ ॥८१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्द्याव इन्द्र ते शतं शतं भूमीरुत स्युः। न त्वा वज्रिन्त्सहस्रं सूर्या अनु न जातमष्ट रोदसी ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । द्याव: । इन्द्र । ते । शतम् । भूमी: । उत । स्युरिति । स्यु: ॥ न । त्वा । वज्रिन् । सहस्रम् । सूर्या: । अनु । न । जातम् । अष्ट । रोदसी इति ॥८१.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (यत्) जो (शतम्) सौ (द्यावः) अन्तरिक्ष [वायुलोक], (उत) और (शतम्) सौ (भूमीः) भूमिलोक (न) तेरे [सामने] (स्युः) होवें, [न तो वे सब] और (न) न (सहस्रम्) सहस्र (सूर्या) सूर्यलोक और (रोदसी) दोनों अन्तरिक्ष और भूमिलोक [मिल कर] और (न) न (जातम्) उत्पन्न हुआ जगत्, (वज्रिन्) हे दण्डधारी ! [परमात्मन्] (त्वा) तुझको (अनु) निरन्तर (अष्ट) पा सके हैं ॥१॥
भावार्थ
सब असंख्य लोक और पदार्थ अलग-अलग होकर अथवा सब मिलकर परमात्मा की महिमा का पार नहीं पा सकते ॥१॥
टिप्पणी
यह दोनों मन्त्र ऋग्वेद में हैं-८।७० [सायणभाष्य ९]।, ६। सामवेद-उ० २।२।११, और आगे हैं-अथ० २०।९२।२०, २१। मन्त्र १ सा०-पू० २।९।६ ॥ कठोपनिषद् का वचन है-वल्ली श्लोक १ [न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः। तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति] उस पर न सूर्य चमकता है, न चन्द्रमा और तारे, न ये बिजुलियाँ चमकती हैं, [फिर] यह अग्नि कहाँ, उस ही चमकते हुए के पीछे सब चमकता है, उसकी चमक से यह सब विविध प्रकार चमकता है ॥ १−(यत्) यदि (द्यावः) अन्तरिक्षलोकाः। वायुलोकाः (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (ते) तवाग्रे (शतम्) बहुसंख्याकाः (शतम्) (भूमीः) भूमयः (उत) अपि च (स्युः) भवेयुः (न) निषेधे (त्वा) त्वाम् (वज्रिन्) दण्डधारिन्। शासनकर्तः परमात्मन् (सहस्रम्) अगणिताः (सूर्याः) सूर्यलोकाः (अनु) निरन्तरम् (न) निषेधे (जातम्) उत्पन्नं जगत् (अष्ट) अशू व्याप्तौ-लुङ्, अडभावः, बहुवचनस्यैकवचनम्। आष्ट। आक्षत। व्याप्तवन्तः (रोदसी) अन्तरिक्षभूमी ॥
विषय
ज्यायान् एभ्यः लोकेभ्यः
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (यद्) = यदि (द्याव:) = ये द्युलोक (शतं स्युः) = सैकड़ों हों तो भी ये (ते) = तेरा (न) = [अश्नुवन्ति]-व्यापन नहीं कर सकते। (उत) = और (शतं भूमी:) = सैकड़ों भूमियाँ भी तेरा व्यापन नहीं कर सकती। २. हे (वज्रिन्) = वज्रहस्त प्रभो! (त्वा) = आपको (सहस्त्रं सूर्या:) = हजारों भी सूर्य न-प्रकाशित नहीं कर पाते। [न तत्र सूर्यो भाति]। (जातम्) = सृष्टि से पहले ही, सदा से प्रादुर्भूत हुए-हुए आपको (रोदसी) = ये द्यावापृथिवी न अनु आष्ट व्याप्त करनेवाले नहीं होते।
भावार्थ
प्रभु को हजारों घुलोक, पृथिवीलोक व सूर्य भी व्याप्त नहीं कर पाते। प्रभु इनसे महान् हैं।
भाषार्थ
(वज्रिन्) हे दण्डधारी (इन्द्र) परमेश्वर! (यद्) यदि (ते शतं द्यावः) आप के सैकड़ों द्युलोक हों, (उत) और (शतं भूमीः) सैकड़ों भूमियाँ (स्युः) हों, (सहस्रं सूर्याः) हजारों सूर्य हों, (रोदसी) या हजारों द्युलोक और भूलोक हों, ये सब मिल कर भी, (त्वा) आप की विभुता का (अनु अष्ट) मुकाबिला (न) नहीं कर सकते, (न) नहीं कर सकते, जब कि आप (जातम्) विभुरूप में प्रकट होते हैं।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Indra, lord of thunder, if there were a hundred heavens, and if there were a hundred earths, they would not be able to rival you. Not a thousand suns, nor heavens, earths and skies together would match you at the rise in manifestation.
Translation
O Almighty Divinity, you are the holder of thunder bold, had there been a hundred heavens and hundred earths and even thousand suns, the whole created world and also the inherent power of electricity (Rodasi) they all would not have matched you in your grandeur.
Translation
O Almighty Divinity, you are the holder of thunder bold, had there been a hundred heavens and hundred earths and even thousand suns, the whole created world and also the inherent power of electricity (Rodasi) they all would not have matched you in your grandeur.
Translation
O Almighty Creator, the hundreds of celestial bodies and hundreds of earths, which are Thine, O Lord of Deadly Weapons like the thunderbolt the thousands of Suns, the universe and the galaxies cannot match Thee.
Footnote
यद्' has been translated by ‘if’ by Pt. Jaidev and Griffith. I don’t see any sense in doubting the ownership of the Creator. It is already His, hence 'यद्' by ‘which.’
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह दोनों मन्त्र ऋग्वेद में हैं-८।७० [सायणभाष्य ९]।, ६। सामवेद-उ० २।२।११, और आगे हैं-अथ० २०।९२।२०, २१। मन्त्र १ सा०-पू० २।९।६ ॥ कठोपनिषद् का वचन है-वल्ली श्लोक १ [न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः। तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति] उस पर न सूर्य चमकता है, न चन्द्रमा और तारे, न ये बिजुलियाँ चमकती हैं, [फिर] यह अग्नि कहाँ, उस ही चमकते हुए के पीछे सब चमकता है, उसकी चमक से यह सब विविध प्रकार चमकता है ॥ १−(यत्) यदि (द्यावः) अन्तरिक्षलोकाः। वायुलोकाः (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (ते) तवाग्रे (शतम्) बहुसंख्याकाः (शतम्) (भूमीः) भूमयः (उत) अपि च (स्युः) भवेयुः (न) निषेधे (त्वा) त्वाम् (वज्रिन्) दण्डधारिन्। शासनकर्तः परमात्मन् (सहस्रम्) अगणिताः (सूर्याः) सूर्यलोकाः (अनु) निरन्तरम् (न) निषेधे (जातम्) उत्पन्नं जगत् (अष्ट) अशू व्याप्तौ-लुङ्, अडभावः, बहुवचनस्यैकवचनम्। आष्ट। आक्षत। व्याप्तवन्तः (रोदसी) अन्तरिक्षभूमी ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমাত্মগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মন্] (যৎ) যে (শতম্) শত (দ্যাবঃ) অন্তরিক্ষ [বায়ুলোক], (উত) এবং (শতম্) শত (ভূমীঃ) ভূমিলোক (ন) আপনার [সম্মুখে] (স্যুঃ) হয়, [না তো সেই সব] এবং (ন) না (সহস্রম্) সহস্র (সূর্যা) সূর্যলোক অথবা (রোদসী) অন্তরিক্ষ ও ভূমিলোক [একত্রে] অথবা (ন) না তো (জাতম্) এই উৎপন্ন জগৎ, (বজ্রিন্) হে দণ্ডধারী ! [পরমাত্মন্] (ত্বা) আপনাকে (অনু) নিরন্তর (অষ্ট) প্রাপ্ত হয় ॥১॥
भावार्थ
অসংখ্য লোক ও পদার্থ পৃথক-পৃথক হয়ে অথবা সকলে একত্রে মিলেও পরমাত্মার মহিমা অতিক্রম করতে পারে না ॥১॥ এই দুই মন্ত্র ঋগ্বেদে আছে -৮।৭০ [সায়ণভাষ্য ৫৯]।৫, ৬। সামবেদ-উ০ ২।২।১১, এবং -অথ০ ২০।৯২।২০, ২১। মন্ত্র ১ সা০-পূ০ ২।৯।৬ ॥ কঠোপনিষদের বচন -বল্লী ৫ শ্লোক ১৫ [ন তত্র সূর্যো ভাতি ন চন্দ্রতারকং নেমা বিদ্যুতো ভান্তি কুতোঽয়মগ্নিঃ। তমেব ভান্তমনুভাতি সর্বং তস্য ভাসা সর্বমিদং বিভাতি] সেই পরমেশ্বরের ওপরে না সূর্য দ্যুতিমান হয় না চন্দ্র এবং তারা, না বিদ্যুৎ চমকিত হয়, [তাহলে] এই অগ্নি কোথায়, সেই দেদীপ্যমান-এর দ্যুতিতেই দীপ্ত হয়, সেই দীপ্তিতেই এই সকল কিছু বিবিধ প্রকারে দেদীপ্যমান হয় ॥
भाषार्थ
(বজ্রিন্) হে দণ্ডধারী (ইন্দ্র) পরমেশ্বর! (যদ্) যদি (তে শতং দ্যাবঃ) আপনার শত দ্যুলোক আছে, (উত) এবং (শতং ভূমীঃ) শত ভূমি (স্যুঃ) আছে, (সহস্রং সূর্যাঃ) সহস্র সূর্য আছে, (রোদসী) বা সহস্র দ্যুলোক এবং ভূলোক আছে, এই সবকিছু মিলেও, (ত্বা) আপনার বিভূতির (অনু অষ্ট) প্রতিদ্বন্দ্বিতা (ন) করতে অক্ষম, (ন) করতে পারে না, যদ্যপি আপনি (জাতম্) বিভুরূপে প্রকট হন।
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