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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 83 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 83/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शंयुः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-८३
    1

    इन्द्र॑ त्रि॒धातु॑ शर॒णं त्रि॒वरू॑थं स्वस्ति॒मत्। छ॒र्दिर्य॑च्छ म॒घव॑द्भ्यश्च॒ मह्यं॑ च या॒वया॑ दि॒द्युमे॑भ्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । त्रि॒ऽधातु॑ । श॒र॒णम् । त्रि॒ऽवरू॑थम् । स्व॒स्ति॒ऽमत् ॥ छ॒र्दि: । य॒च्छ॒ । म॒घव॑त्ऽभ्य: । च॒ । मह्य॑म् । च॒ । य॒वय॑ । दि॒द्युम् । ए॒भ्य॒: ॥८३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र त्रिधातु शरणं त्रिवरूथं स्वस्तिमत्। छर्दिर्यच्छ मघवद्भ्यश्च मह्यं च यावया दिद्युमेभ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । त्रिऽधातु । शरणम् । त्रिऽवरूथम् । स्वस्तिऽमत् ॥ छर्दि: । यच्छ । मघवत्ऽभ्य: । च । मह्यम् । च । यवय । दिद्युम् । एभ्य: ॥८३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 83; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (त्रिधातु) तीन [सोना, चाँदी, लोहे] धातुओंवाला, (त्रिवरूथम्) तीन [शीत, ताप और वर्षा ऋतुओं] में उत्तम, (शरणम्) शरण [आश्रय] के योग्य और (स्वस्तिमत्) बहुत सुखवाला (छर्दिः) घर (मघवद्भ्यः) धनवालों को (च) और (मह्यम्) मुझको [अर्थात् एक-एक को] (यच्छ) दे, (च) और (एभ्यः) इन सबके लिये (दिद्युम्) प्रकाश को (यवय) संयुक्त कर ॥१॥

    भावार्थ

    राजा का कर्तव्य है कि मनुष्यों के निवासस्थान और सभास्थान आदि ऐसे उत्तम बनवावे कि जिनमें सबको मिलकर और प्रत्येक पुरुष को आवश्यक पदार्थ सुरक्षित रहने से सब ऋतुओं में सुख मिले और स्वास्थ्य बढ़ने से धन की वृद्धि होवे ॥१॥

    टिप्पणी

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-६।४६।९, १०। मन्त्र १ सामवेद-पू० ३।८।४ ॥ १−(इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (त्रिधातु) त्रिभिः सुवर्णरजतलोहधातुभिर्युक्तम् (शरणम्) आश्रययोग्यम् (त्रिवरूथम्) जॄवृञ्भ्यामूथन्। उ० २।६। वृञ् वरणे-ऊथन्। त्रिषु शीततापवर्षासु वरणीयमुत्तमम् (स्वस्तिमत्) बहुसुखयुक्तम् (छर्दिः) अर्चिशुचिहुसृपिछादिछर्दिभ्य इसिः। २।१०८। छर्द सन्दीपने वमने च-इसि। गृहम्-निघ० ३।४। (यच्छ) देहि (मघवद्भ्यः) धनयुक्तेभ्यः (च) (मह्यम्) राजभक्ताय (च) (यवय) संयोजय (दिद्युम्) अ० १।२।३। द्युत दीप्तौ-क्विप्, तलोपः। प्रकाशम् (एभ्यः) सर्वेभ्यः ॥

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    विषय

    उत्तम गृह

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (मघवदभ्यः) = [मघ मखम्] यज्ञशील पुरुषों के लिए (शरणम्) = गृह (यच्छ) = दीजिए। जो घर (त्रिधातु) = बालक, युवा व वृद्ध तीनों को धारण करनेवाला हो। (त्रिवरूथम्) = 'शीत, आतप व वर्षा' तीनों का निवारण करनेवाला हो। (स्वस्तिमत्) = कल्याणकर हो। (छर्दिः) = [छदिष्यत्]-उत्तम छतवाला हो। २. (च) = और इसप्रकार के गृहों को प्राप्त कराके (मह्यम्) = मेरे लिए (एभ्यः) = इन गृहों से (दिद्युम्) = खण्डनकारिणी विद्युत् को (यावया) = पृथक् कीजिए। इन घरों पर (विद्युत्) = पतन का भय न हो।

    भावार्थ

    हम उत्तम घरों को बनाकर स्वस्थ मन से उनमें निर्भयतापूर्वक रहते हुए उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़नेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (त्रिधातु) तीनों लोकों का धारण करनेवाला, (त्रिवरूथम्) त्रिविध दुःखों का निवारण करनेवाला, (स्वस्तिमत्) तथा कल्याणकारी (शरणम्) अपना आश्रय (यच्छ) हमें प्रदान कीजिए। तथा (मद्यवद्भ्यः) आध्यात्मिक सम्पत्शालियों (च) और (मह्यम्) मुझ उपासक को (छर्दिः) ऐसा शरीर-गृह (यच्छ) प्रदान किजिए, (त्रिधातु) जिसकी घटक तीन धातुएँ, अर्थात् वात, पित्त, कफ या सत्त्व, रजस्, तमस् धारण-पोषण करनेवाले हों तथा (त्रिवरूथम्) जिसके तीन-घेरे अर्थात् स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, कारण शरीररूपी तीन प्रकार के संतापों से रहित हों, तथा जो (स्वस्तिमत्) स्वस्थ हों। हे परमेश्वर! (एभ्यः) इन सब से (दिद्युम्) सब प्रकार के संतापों को (यावया=यावय) पृथक् कीजिए।

    टिप्पणी

    [छर्दिः=गृहनाम (निघं০ ३.४)। वरूथ=Armour, shield (आप्टे)।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    India Devata

    Meaning

    Indra, lord ruler of the wealth of nations, for the men of wealth, power, honour and generosity of heart, and for me too, give a home made of three metals and materials, comfortable in three seasons of summer, winter and rains, a place of rest, peace and security for complete well being. Give the light for them, keep off the blaze from them.

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    Translation

    O Almighty God, you have given me and the men of riches that comfortable home, the body which possesses three supporting parts head, middle part and legs, which has three powers—the meatal, intellectual and corporeal. O Lord of all Yajnas you unite me and these men with light and knowledge.

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    Translation

    O Almighty God, you have given me and the men of riches that comfortable home, the body which possesses three supporting parts head, middle part and legs, which has three powers—the mental, intellectual and corporeal. O Lord of all Yajnas you unite me and these men with light and knowledge.

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    Translation

    O Mighty Protector, grant a peaceful and comfortable shelter, made of three sustaining forces and capable of warding off three kinds of evils or difficulties, to the rich people and myself, and keep away the burning missile or anger from these.

    Footnote

    (i) त्रिधातु- consisting of gold, silver and iron, three-storied; Bat, Pit and Kuf or Pran, Apan and Udan. (ii) त्रिवस्थाम्- capable of warding off Adhyatmik, Adhibhautik and Adhidaivik calamities; or mental", vocal and bodily pains or drawbacks; or cold, heat and rain. ]

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-६।४६।९, १०। मन्त्र १ सामवेद-पू० ३।८।४ ॥ १−(इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (त्रिधातु) त्रिभिः सुवर्णरजतलोहधातुभिर्युक्तम् (शरणम्) आश्रययोग्यम् (त्रिवरूथम्) जॄवृञ्भ्यामूथन्। उ० २।६। वृञ् वरणे-ऊथन्। त्रिषु शीततापवर्षासु वरणीयमुत्तमम् (स्वस्तिमत्) बहुसुखयुक्तम् (छर्दिः) अर्चिशुचिहुसृपिछादिछर्दिभ्य इसिः। २।१०८। छर्द सन्दीपने वमने च-इसि। गृहम्-निघ० ३।४। (यच्छ) देहि (मघवद्भ्यः) धनयुक्तेभ्यः (च) (मह्यम्) राजभक्ताय (च) (यवय) संयोजय (दिद्युम्) अ० १।२।३। द्युत दीप्तौ-क्विप्, तलोपः। प्रकाशम् (एभ्यः) सर्वेभ्यः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [বিশাল ঐশ্বর্যযুক্ত রাজন্] (ত্রিধাতু) ত্রিধাতু [সোনা, রূপা, লোহা] যুক্ত, (ত্রিবরূথম্) তিনের [শীত, গ্রীষ্ম এবং বর্ষা ঋতুতে] উত্তম, (শরণম্) শরণ [আশ্রয়] নেওয়ার যোগ্য এবং (স্বস্তিমৎ) বহু সুখকর (ছর্দিঃ) নিবাস (মঘবদ্ভ্যঃ) ধনবানদের (চ)(মহ্যম্) আমাকে [অর্থাৎ প্রত্যেককে] (যচ্ছ) প্রদান করুন, (চ) এবং (এভ্যঃ) এই সকলের জন্য (দিদ্যুম্) প্রকাশ (যবয়) সংযুক্ত করুন ॥১॥

    भावार्थ

    রাজার কর্তব্য হল, মনুষ্যগণের নিবাসস্থান ও সভাস্থান আদি এমন উত্তমরূপে নির্মাণ করা যেখানে সকলে একত্রে মিলিত হতে পারে এবং প্রত্যেকের আবশ্যক পদার্থ সুরক্ষিত থাকে ও সর্বদা সকল ঋতুতে সুখ প্রাপ্ত হয় এবং মনুষ্য স্বাস্থ্য লাভ করে ধন-সম্পদ বৃদ্ধি করে ॥১॥ এই সূক্ত ঋগ্বেদে রয়েছে -৬।৪৬।৯, ১০। মন্ত্র ১ সামবেদ-পূ০ ৩।৮।৪ ॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (ত্রিধাতু) ত্রিলোকের ধারণকারী/ধারক, (ত্রিবরূথম্) ত্রিবিধ দুঃখের নিবারণকারী/নিবারক, (স্বস্তিমৎ) তথা কল্যাণকারী (শরণম্) নিজের আশ্রয় (যচ্ছ) আমাদের প্রদান করুন। তথা (মদ্যবদ্ভ্যঃ) আধ্যাত্মিক সম্পদশালীদের (চ) এবং (মহ্যম্) আমাকে [উপাসককে] (ছর্দিঃ) এমন শরীর-গৃহ (যচ্ছ) প্রদান করুন, (ত্রিধাতু) যার ঘটক তিনটি ধাতু, অর্থাৎ বাত, পিত্ত, কফ বা সত্ত্ব, রজস্, তমস্ ধারণ-পোষণকারী তথা (ত্রিবরূথম্) যা তিনটি-বেষ্টন অর্থাৎ স্থূল শরীর, সূক্ষ্ম শরীর, কারণ শরীররূপী তিন প্রকারের সন্তাপ রহিত, তথা যা (স্বস্তিমৎ) সুস্থ। হে পরমেশ্বর! (এভ্যঃ) এই সবকিছু থেকে (দিদ্যুম্) সব প্রকারের সন্তাপ (যাবয়া=যাবয়) পৃথক্ করুন।

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