अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 84/ मन्त्र 1
इन्द्रा या॑हि चित्रभानो सु॒ता इ॒मे त्वा॒यवः॑। अण्वी॑भि॒स्तना॑ पू॒तासः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । आ । या॒हि॒ । चि॒त्र॒भा॒नो॒ इति॑ चित्रऽभानो । सु॒ता: । इ॒मे । त्वा॒ऽयव॑: ॥ अण्वी॑भि: । तना॑ । पू॒तास॑: ॥८४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रा याहि चित्रभानो सुता इमे त्वायवः। अण्वीभिस्तना पूतासः ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र । आ । याहि । चित्रभानो इति चित्रऽभानो । सुता: । इमे । त्वाऽयव: ॥ अण्वीभि: । तना । पूतास: ॥८४.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सभापति के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(चित्रभानो) हे विचित्र प्रकाशवाले (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले सभापति] (आ याहि) तू आ, (इमे) यह (त्वायवः) तुझको मिलनेवाले [वा तुझे चाहनेवाले], (अण्वीभिः) सूक्ष्म क्रियाओं से (पूतासः) शोधे हुए, (तना) विस्तृत धनवाले (सुताः) सिद्ध किये हुए तत्त्वरस हैं ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य सभापति की आज्ञा में रहकर विज्ञानयुक्त क्रियाओं से उत्तम-उत्तम पदार्थ सिद्ध करें ॥१॥
टिप्पणी
यह तृच ऋग्वेद-१।३।४-६। यजुर्वेद २०।८७-८९। सामवेद-उ० ४।२। तृच ॥ १−(इन्द्र) परमैश्वर्यवन् सभापते (आ याहि) आगच्छ (चित्रभानो) अद्भुतदीप्ते (सुताः) निष्पादिततत्त्वरसाः (इमे) दृश्यमानाः (त्वायवः) अ० २०।१८।४। त्वां प्राप्ताः। त्वां कामयमानाः (अण्वीभिः) अणुशब्दः सूक्ष्मवाचकः। वोतो गुणवचनात्। पा० ४।१।४४। अनेन ङीषि प्राप्ते छान्दसो ङीन्, नित्वादाद्युदात्तः। सूक्ष्माभिः क्रियाभिः (तना) धननाम-निघ० २।१०। विभक्तेराकारः। विस्तृतधनयुक्ताः (पूतासः) शोधिताः ॥
विषय
प्रभु-साक्षात्कार
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (आयाहि) = आप आइए। हे (चित्रभानो) = [चित र] ज्ञान देनेवाली दीप्तिवाले प्रभो! (इमे) = ये (सुता:) = उत्पन्न हुए-हुए सोमकण (त्वायवः) = आपकी कामनावाले हैं। ये सोमकण ज्ञानाग्नि का ईधन बनकर उसे दीप्त कर रहे हैं। इसप्रकार ये सोमकण हमें आपके दर्शन के योग्य बनाते हैं। २. ये सोमकण (अण्वीभिः) = सूक्ष्म बुद्धियों के साथ (तना) = सदा (पूतास:) = पवित्रता को सिद्ध करनेवाले हैं। सोम की रक्षा से जहाँ बुद्धि सूक्ष्म बनती है, वहाँ हृदय भी पवित्र होता है। इसप्रकार ये सोमकण हमें प्रभु-प्राप्ति के योग्य बनाते हैं।
भावार्थ
हे प्रभो। हम सोम की रक्षा के द्वारा बुद्धि को सुक्ष्म बनाएँ। इस सोम-रक्षण से ही हृदयों को भी पवित्र करें। इस प्रकार प्रभु-दर्शन के पात्र बनते हुए प्रभु के अद्भुत प्रकाश का साक्षात्कार करें।
भाषार्थ
(चित्रभानो) विचित्र प्रभावाले (इन्द्र) हे परमेश्वर! (आ याहि) प्रकट हूजिए। (इमे) ये (सुताः) आपके उपासक पुत्र (त्वायवः) आपकी ही कामनावाले हैं। ये (तनाः) आपकी सन्तानें, (अण्वीभिः) उपासनाधन की सूक्ष्म दृष्टियों द्वारा, (पूतासः) पवित्र हो चुकी हैं।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Indra, Lord Supreme of wondrous light and power, come and bless us. All these sacred objects in existence, created, energised and extended over spaces from the subtlest causes by you are sustained in your divine power.
Translation
O Almighty God, you are wonderfully refulgent. These your sons and daughters (the men and woman of the world) pure and clean in deéd, wisdom and word with rare qualities always aré desiours to attain you. You come to them.
Translation
O Almighty God, you are wonderfully refulgent. These your sons and daughters (the men and woman of the world) pure and clean indeed, wisdom and word with rare qualities always are desirous to attain you. You come to them.
Translation
O Almighty God, of Wonderful Radiance thoroughly reveal Thyself, here are these purified, devoted souls desirous of attaining Thee, ever glorified and sanctified by subtle yog-practices and spiritual lights.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह तृच ऋग्वेद-१।३।४-६। यजुर्वेद २०।८७-८९। सामवेद-उ० ४।२। तृच ॥ १−(इन्द्र) परमैश्वर्यवन् सभापते (आ याहि) आगच्छ (चित्रभानो) अद्भुतदीप्ते (सुताः) निष्पादिततत्त्वरसाः (इमे) दृश्यमानाः (त्वायवः) अ० २०।१८।४। त्वां प्राप्ताः। त्वां कामयमानाः (अण्वीभिः) अणुशब्दः सूक्ष्मवाचकः। वोतो गुणवचनात्। पा० ४।१।४४। अनेन ङीषि प्राप्ते छान्दसो ङीन्, नित्वादाद्युदात्तः। सूक्ष्माभिः क्रियाभिः (तना) धननाम-निघ० २।१०। विभक्तेराकारः। विस्तृतधनयुक्ताः (पूतासः) शोधिताः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
সভাপতিকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(চিত্রভানো) হে বিচিত্র প্রকাশযুক্ত (ইন্দ্র) ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান্ সভাপতি] (আ যাহি) তুমি এসো, (ইমে) ইহা (ত্বায়বঃ) তোমার কমনীয় [বা তোমার কামনাকারী], (অণ্বীভিঃ) সূক্ষ্ম ক্রিয়া দ্বারা (পূতাসঃ) শোধিত, (তনা) বিস্তৃত ধনযুক্ত (সুতাঃ) সিদ্ধ কৃত তত্ত্বরস ॥১॥
भावार्थ
মনুষ্য সভাপতির আজ্ঞা পালন করে বিজ্ঞানযুক্ত ক্রিয়ার মাধ্যমে উত্তম-উত্তম পদার্থ সিদ্ধ করে/করুক॥১॥ এই তৃচ ঋগ্বেদ-১।৩।৪-৬। যজুর্বেদ ২০।৮৭-৮৯। সামবেদ-উ০ ৪।২। তৃচ ৫ ॥
भाषार्थ
(চিত্রভানো) বিচিত্র প্রভাযুক্ত (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (আ যাহি) প্রকট হন। (ইমে) এই (সুতাঃ) আপনার উপাসক পুত্র (ত্বায়বঃ) আপনার কামনাকারী/অভিলাষী। এই (তনাঃ) আপনার সন্তানগণ, (অণ্বীভিঃ) উপাসনাধনের সূক্ষ্ম দৃষ্টি দ্বারা, (পূতাসঃ) পবিত্র।
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