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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 93 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 93/ मन्त्र 1
    ऋषिः - प्रगाथः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-९३
    2

    उत्त्वा॑ मन्दन्तु॒ स्तोमाः॑ कृणु॒ष्व राधो॑ अद्रिवः। अव॑ ब्रह्म॒द्विषो॑ जहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । त्वा॒ । म॒न्द॒न्तु॒ । स्तोमा॑: । कृ॒णु॒ष्व । राध॑: । अ॒द्रि॒व॒: ॥ अव॑ । ब्र॒ह्म॒ऽद्विष॑: । ज॒हि॒ ॥९३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्त्वा मन्दन्तु स्तोमाः कृणुष्व राधो अद्रिवः। अव ब्रह्मद्विषो जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । त्वा । मन्दन्तु । स्तोमा: । कृणुष्व । राध: । अद्रिव: ॥ अव । ब्रह्मऽद्विष: । जहि ॥९३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 93; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (अद्रिवः) हे अन्नवाले ! [वा वज्रवाले परमेश्वर !] (त्वा) तुझको (स्तोमाः) स्तुति करनेवाले लोग (उत्) अच्छे प्रकार (मदन्तु) प्रसन्न करें, तू [हमारे लिये] (राधः) धन (कृणुष्व) कर, (ब्रह्मद्विषः) वेदद्वेषियों को (अव जहि) नष्ट कर दे ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमात्मा के गुणों को जानकर विद्याधन और सुवर्ण आदि धन बढ़ावें और अधर्मियों का नाश करें ॥१॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १-३ ऋग्वेद में है-८।६४ [सायणभाष्य ३], १-३ और कुछ भेद से सामवेद में हैं-उ० ६।१। तृच ३ और मन्त्र १ साम०-पू० ३।१।१ ॥ १−(उत्) उत्तमतया (त्वा) (मदन्तु) तर्पयन्तु (स्तोमाः) स्तावकाः (कृणुष्व) कुरु (राधः) विद्यासुवर्णादिधनम् (अद्रिवः) अदिशदिभूशुभिभ्यः क्रिन्। उ० ४।६। अद भक्षणे-क्रिन्। हे अन्नवन्। वज्रिन् (अव जहि) विनाशय (ब्रह्मद्विषः) वेदद्वेष्टॄन् ॥

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    विषय

    प्रभु-स्तवन व ज्ञानियों का संग

    पदार्थ

    १. हे (अद्रिवः) = आदरणीय प्रभो! (त्वा) = आपको (स्तोमः) = हमसे की जानेवाली स्तुतियाँ (उत् मन्दन्तु) = उत्कर्षेण आनन्दित करें। ये स्तोत्र हमें आपका प्रिय बनाएँ। आप हमारे लिए (राध: कृणुष्व) = कार्यसाधक धनों को कीजिए, अर्थात् आवश्यक धनों को हमारे लिए दीजिए। २. (ब्रह्मद्विषः) = ज्ञान से अप्रीतिवाले लोगों को (अवजहि) = हमसे दूर कीजिए। हमें ज्ञानी लोगों का ही सम्पर्क प्राप्त हो। मूखों के सम्पर्क से हम सदा दूर रहें।

    भावार्थ

    हम प्रभु-स्तवन करते हुए कार्यसाधक धनों को प्राप्त करें और ज्ञानियों के सम्पर्क में रहें, ज्ञान-प्राप्ति की रुचिवाले बनें।

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    भाषार्थ

    (अद्रिवः) हे अविदीर्ण शक्तियोंवाले परमेश्वर! (स्तोमाः) हमारे स्तुतिगान (त्वा) आपको (उत् मन्दन्तु) प्रसन्न करें, और आप (राधः) आध्यात्मिक-धन (कृणुष्व) हमें प्रदान कीजिए, और (ब्रह्मद्विषः) आप-ब्रह्म सम्बन्धी विरोधी भावनाओं का (अव जहि) हनन कीजिए।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    Indra, Lord Almighty, commander, controller and inspirer of clouds, mountains and great men of generosity, may our hymns of adoration win your pleasure. Pray create and provide means and methods of sustenance and progress in life, and cast off jealousies and enmities against divinity, knowledge and prayer, our bond between human and divine.

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    Translation

    O holder of thunder, may our hymns or set of Praises give great delight. You display your bounty. You drive off them who are opponent of prayer and knowledge.

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    Translation

    O holder of thunder, may our hymns or set of praises give great delight. You display your bounty. You drive off them who are opponent of prayer and knowledge.

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    Translation

    Crush under feet the niggardly people, offering nothing to the Poor and the deserving. Mighty art Thou, none is equal to Thee.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र १-३ ऋग्वेद में है-८।६४ [सायणभाष्य ३], १-३ और कुछ भेद से सामवेद में हैं-उ० ६।१। तृच ३ और मन्त्र १ साम०-पू० ३।१।१ ॥ १−(उत्) उत्तमतया (त्वा) (मदन्तु) तर्पयन्तु (स्तोमाः) स्तावकाः (कृणुष्व) कुरु (राधः) विद्यासुवर्णादिधनम् (अद्रिवः) अदिशदिभूशुभिभ्यः क्रिन्। उ० ४।६। अद भक्षणे-क्रिन्। हे अन्नवन्। वज्रिन् (अव जहि) विनाशय (ब्रह्मद्विषः) वेदद्वेष्टॄन् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অদ্রিবঃ) হে অন্নবান্ ! [বা বজ্রধারী পরমেশ্বর !] (ত্বা) তোমাকে (স্তোমাঃ) স্তোতাগণ (উৎ) উৎকৃষ্ট প্রকারে (মদন্তু) প্রসন্ন করে, তুমি [আমাদের জন্য] (রাধঃ) ধন (কৃণুষ্ব) প্রদান করো, (ব্রহ্মদ্বিষঃ) বেদ-বিদ্বেষীদের (অব জহি) বিনাশ করো ॥১॥

    भावार्थ

    মনুষ্য পরমাত্মার গুণসমূহ জ্ঞাত হয়ে বিদ্যাধন এবং সুবর্ণ আদি ধন বৃদ্ধি করে/করুক এবং অধার্মিকদের বিনাশ করুক॥১॥ মন্ত্র ১-৩ ঋগ্বেদে রয়েছে -৮।৬৪ [সায়ণভাষ্য ৫৩], ১-৩ মন্ত্র সামান্য ভেদে সামবেদে বিদ্যমান -উ০ ৬।১। তৃচ ৩ ও মন্ত্র ১ সাম০-পূ০ ৩।১।১ ॥

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    भाषार्थ

    (অদ্রিবঃ) হে অবিদীর্ণ শক্তিসম্পন্ন পরমেশ্বর! (স্তোমাঃ) আমাদের স্তুতিগান (ত্বা) আপনাকে (উৎ মন্দন্তু) প্রসন্ন করুক, এবং আপনি (রাধঃ) আধ্যাত্মিক-ধন (কৃণুষ্ব) আমাদের প্রদান করুন, এবং (ব্রহ্মদ্বিষঃ) আপনি-ব্রহ্ম সম্বন্ধীয় বিরোধী ভাবনা-সমূহ (অব জহি) হনন করুন।

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