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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 17
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - यक्ष्मनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६
    9

    अ॒क्षीभ्यां॑ ते॒ नासि॑काभ्यां॒ कर्णा॑भ्यां॒ छुबु॑का॒दधि॑। यक्ष्मं॒ शीर्ष॒ण्यं म॒स्तिष्का॑ज्जि॒ह्वाया॒ वि वृ॑हामि ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒क्षीभ्या॑म् । ते॒ । नासि॑काभ्याम् । कर्णा॑भ्याम् । छुबु॑कात् । अधि॑ ॥ यक्ष्म॑म् । शी॒र्ष॒ण्य॑म् । म॒स्तिष्का॑त् । जि॒ह्वाया॑: । वि । वृ॒हा॒मि॒ । ते॒ ॥९६.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अक्षीभ्यां ते नासिकाभ्यां कर्णाभ्यां छुबुकादधि। यक्ष्मं शीर्षण्यं मस्तिष्काज्जिह्वाया वि वृहामि ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अक्षीभ्याम् । ते । नासिकाभ्याम् । कर्णाभ्याम् । छुबुकात् । अधि ॥ यक्ष्मम् । शीर्षण्यम् । मस्तिष्कात् । जिह्वाया: । वि । वृहामि । ते ॥९६.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    शारीरिक विषय में शरीररक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे प्राणी !] (ते) तेरी (अक्षीभ्याम्) दोनों आँखों से, (नासिकाभ्याम्) दोनों नथनों से, (कर्णाभ्याम्) दोनों कानों से, (छुबुकात् अधि=चुबुकात् अधि) ठोड़ी में से, (ते) तेरे (मस्तिष्कात्) भेजे से और (जिह्वायाः) जिह्वा से (शीर्षण्यम्) शिर में के (यक्ष्मम्) क्षयी [क्षयी रोग] को (वि वृहामि) मैं उखाड़े देता हूँ ॥१७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में शिर के अवयवों का वर्णन है। जैसे सद्वैद्य उत्तम औषधों से रोगों की निवृत्ति करता है, ऐसे ही मनुष्य अपने आत्मिक और शारीरिक दोषों को विचारपूर्वक नाश करे ॥१७॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १७-२३ आ चुके हैं-अ० २।३३।१-७ ॥ १७-२३−व्याख्याताः-अ० २।३३।१-७ ॥

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    विषय

    शीर्षण्य दोष का निराकरण

    पदार्थ

    १. हे रूण पुरुष। मैं विवहा काश्यप' (ते) = तेरी (अक्षीभ्याम्) = आँखों से (नासिकाभ्याम्) = नासिका छिद्रों से, (कर्णाभ्याम्) = कानों से (छुबुकादधि) = ठोडी से (यक्ष्मम्) = रोग को विवृहामि उखाड़ फेंकता हूँ-इन अंगों से रोग का समूलोन्मूलन किये देता हूँ। २. (शीर्षण्यम्) = सिर में बैठे रोग को दूर करता हूँ। (मस्तिष्कात्) = शिर के अन्त:स्थित मांस विशेष से तथा (जिह्वाया:) = जिह्वा से (ते) = तेरे इस रोग को विनष्ट करता हूँ। इसप्रकार तेरे शिरोभाग को निर्दोष बनाता हूँ।

    भावार्थ

    ज्ञानी वैद्य सिर के सब रोगों का निराकरण करता है।

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    भाषार्थ

    हे रोगी! (ते) तेरी (अक्षीभ्याम्) दोनों आँखों से, (नासिकाभ्याम्) दोनों नासा-छिद्रों से, (कर्णाभ्याम्) दोनों कानों से, (छुबुकात् अधि) निचले जबाड़े से, (मस्तिष्कात् अधि) मस्तिष्क से (जिह्वाया:) जिह्वा से (ते) तेरे (शीर्षण्यं यक्ष्मम्) शिरःसंस्थान सम्बन्धी यक्ष्मरोग को (वि वृहामि) मैं चिकित्सक निकालता हूँ।

    टिप्पणी

    [छुबुक=चिबुक। चिबुक-यक्ष्मा=निचले जबाड़े का गल जाना, नर्म पड़ जाना। इन अंगों के यक्ष्मा को “शीर्षण्य-यक्ष्म” कहा है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    I remove and uproot the worst cancer and consumption from your eyes, nostrils, ears, chin, brain and tongue related to the head area.

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    Translation

    O patient, I, the physician drive away disease from your eyes, from your nostrils; from your ears, from your chin, from your head and brain and tongue.

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    Translation

    O patient, I, the physician drive away disease from your eyes, from your nostrils; from your ears, from your chin, from your head and brain and tongue.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र १७-२३ आ चुके हैं-अ० २।३३।१-७ ॥ १७-२३−व्याख्याताः-अ० २।३३।१-७ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মন্ত্রাঃ ১৭-২৩-শারীরিকবিষয়ে শরীররক্ষোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে প্রাণী] (তে) তোমার (অক্ষীভ্যাম্) দুই চোখ থেকে, (নাসিকাভ্যাম্) দুই নাসারন্ধ্র থেকে (কর্ণাভ্যাম্) দুই কান থেকে, (ছুবুকাৎ=চুবকাৎ অধি) চিবুক থেকে, (তে) তোমার (মস্তিষ্কাৎ) মস্তিষ্ক থেকে এবং (জিহ্বায়াঃ) জিহ্বা থেকে (শীর্ষণ্যম্) মাথার (যক্ষ্মম্) ক্ষয়ী [যক্ষ্মা] রোগকে (বি বৃহামি) আমি উৎখাত করে দিই ॥১৭॥

    भावार्थ

    এই মন্ত্রে মাথার অবয়বের বর্ণনা হয়েছে। যেমন সদ্বৈদ্য উত্তম ঔষধ দ্বারা রোগের নিবৃত্তি করে, এভাবেই মনুষ্য নিজের আত্মিক ও শারীরিক দোষের বিচারপূর্বক নাশ করুক ॥১৭॥

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    भाषार्थ

    হে রোগী! (তে) তোমার (অক্ষীভ্যাম্) দুই চক্ষু থেকে, (নাসিকাভ্যাম্) দুই নাসা-ছিদ্র থেকে, (কর্ণাভ্যাম্) দুই কান থেকে, (ছুবুকাৎ অধি) নীচের চোয়াল থেকে, (মস্তিষ্কাৎ অধি) মস্তিষ্ক থেকে (জিহ্বায়াঃ) জিহ্বা থেকে (তে) তোমার (শীর্ষণ্যং যক্ষ্মম্) শিরঃসংস্থান সম্বন্ধীয় যক্ষ্মারোগ (বি বৃহামি) আমি চিকিৎসক নিষ্কাশিত করি।

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