अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 99/ मन्त्र 1
अ॒भि त्वा॑ पू॒र्वपी॑तय॒ इन्द्र॒ स्तोमे॑भिरा॒यवः॑। स॑मीची॒नास॑ ऋ॒भवः॒ सम॑स्वरन्रु॒द्रा गृ॑णन्त॒ पूर्व्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । त्वा॒ । पू॒र्वऽपी॑तये । इन्द्र॑ । स्तोमे॑भि: । आ॒यव॑: ॥ स॒म्ऽई॒ची॒नास॑: । ऋ॒भव॑: । सम् । अ॒स्व॒र॒न् । रु॒द्रा: । गृ॒ण॒न्त॒ । पूर्व्य॑म् ॥९९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि त्वा पूर्वपीतय इन्द्र स्तोमेभिरायवः। समीचीनास ऋभवः समस्वरन्रुद्रा गृणन्त पूर्व्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । त्वा । पूर्वऽपीतये । इन्द्र । स्तोमेभि: । आयव: ॥ सम्ऽईचीनास: । ऋभव: । सम् । अस्वरन् । रुद्रा: । गृणन्त । पूर्व्यम् ॥९९.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्र) हे इन्द्र ! [परम ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (पूर्वपीतये) पहिले [मुख्य] भोग के लिये, (समीचीनासः) साधु, (ऋभवः) बुद्धिमान्, (रुद्राः) स्तुति करनेवाले (आयवः) मनुष्यों ने (स्तोमेभिः) स्तोत्रों से (पूर्व्यम्) प्राचीन (त्वाम्) तुझको (सम्) मिलकर (अभि) सब प्रकार (अस्वरन्) आलापा है और (गृणन्त) गाया है ॥१॥
भावार्थ
सब बुद्धिमान् लोग परमेश्वर के गुणों को जानकर अपनी उन्नति करें ॥१॥
टिप्पणी
दोनों मन्त्र ऋग्वेद में हैं-८।३।७, ८; सामवेद-उ० ७।३।१; मन्त्र १ साम० पू० ३।७।४ ॥ १−(अभि) अभितः (त्वा) त्वाम् (पूर्वपीतये) प्रथमपानाय। मुख्यभोगाय (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (स्तोमेभिः) स्तोत्रैः (आयवः) मनुष्याः-निघ० २।३। (समीचीनासः) संगताः। साधवः (ऋभवः) मेधाविनः (सम्) संगत्य (अस्वरन्) स्वृ शब्दोपतापयोः। अस्तुवन् (रुद्राः) स्तोतारः-निघ० ३।१६। (गृणन्त) स्तुतवन्तः (पूर्व्यम्) प्राचीनम् ॥
विषय
चारों आश्रमों में प्रभु-स्तवन
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो! (पूर्वपीतये) = जीवन के पूर्वभाग में सोम-रक्षण के लिए (त्वा अभि) = आपका लक्ष्य करके ही (समस्वरन्) = स्तुति-शब्दों का ही उच्चारण करते हैं-आपका स्तवन ही वासनाओं के विनाश के द्वारा हमें सोम-रक्षण के योग्य बनाता है। २. (आयवः) = संसार के व्यवहारों में चलनेवाले गृहस्थ पुरुष भी (स्तोमेभिः) = स्तुति समूहों के द्वारा आपको ही स्तुत करते हैं। आपका स्तवन ही उन्हें भोगविलास में फंसने से बचाकर आगे बढ़ानेवाला होता है। ३. गृहस्थ से ऊपर उठकर (समीचीनास:) = प्रभु के साथ मिलकर गति करनेवाले [सम् अञ्च] प्रभु-स्मरणपूर्वक सब कार्यों को करनेवाले (ऋभव:) = ज्ञानदीप्त व्यक्ति आपके ही [समस्वरन्-] स्तुतिशब्दों का उच्चारण करते हैं और ४. अन्त में (रुद्रा:) = [रुत् र] ज्ञानोपदेश करनेवाले ये परिव्राजक लोग भी (पूर्व्यम्) = पालन व पूरण करनेवालों में उत्तम आपको ही (गृणन्त) = स्तुत करते हैं। आपका स्तवन ही उन्हें आसक्ति से ऊपर उठाता है।
भावार्थ
प्रभु-स्मरण ही ब्रह्मचारी को सोम-रक्षण के योग्य बनाता है। प्रभु-स्मरण से ही गृहस्थ भोगप्रसक्त नहीं होता। यह प्रभु-स्मरण ही वनस्थ को स्वाध्याय-प्रवृत्त करके दीप्त जीवनवाला बनाता है। यह स्मरण ही संन्यस्त को सब कमियों से दूर रहने में समर्थ करता है।
भाषार्थ
(इन्द्र) हे परमेश्वर! (पूर्वपीतये) भक्तिरस के या आनन्दरस के प्राथमिक पान के लिए, (आयवः) उपासक-जन (स्तोमेभिः) सामगानों द्वारा (त्वा) आपकी (अभि) प्रत्यक्षरूप में (गृणन्त) स्तुतियाँ करते हैं; (समीचीनासः) सम्यक्रूप से शिल्प-कार्यों का सम्पादन करनेवाले (ऋभवः) दिव्य कारीगर (सम्) मिलकर (पूर्व्यम्) आप अनादि देव का (अस्वरन्) स्वरपूर्वक गान करते हैं। (रुद्राः) शत्रुओं को रुलानेवाले क्षत्रिय अनादि देव आपका स्वरपूर्वक गान करते हैं।
टिप्पणी
[पूर्वपीतये=उपासनामार्ग का अवलम्बन करने पर, अन्य किसी देवता की भक्ति न करते हुए, प्रारम्भ से ही परमेश्वर की उपानापूर्वक भक्ति करनी चाहिए, और इसके प्रति ही अपने भक्तिरस की भेंट देनी चाहिए।]
इंग्लिश (4)
Subject
India Devata
Meaning
Indra, men in general, learned experts of vision and wisdom, illustrious powers of law and order, and fighting warriors of defence and protection all together, raising a united voice of praise, prayer and appreciation, with songs of holiness and acts of piety, invoke and invite you, ancient, nearest and most excellent lord of power and lustre, to inaugurate their yajnic celebration of the soma session of peaceful and exciting programme of development.
Translation
O Almighty Divinity, the men in general and the men enlightened with understanding possessing all decencies laud you with vedic hymns for their full protection. O strong one, the men of knowledge and strict discipline of celebacy praise and pray you.
Translation
O Almighty Divinity, the men in general and the men enlightened with understanding possessing all decencies laud you with vedic hymns for their full protection. O strong one, the men of knowledge and strict discipline of celibacy praise and pray you.
Translation
The Mighty Lord enhances the peace-showering power in the All-pervading bliss of this created'spiritual enlightenment. Even today the common people praise His Greatness and sublimity as before.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
दोनों मन्त्र ऋग्वेद में हैं-८।३।७, ८; सामवेद-उ० ७।३।१; मन्त्र १ साम० पू० ३।७।४ ॥ १−(अभि) अभितः (त्वा) त्वाम् (पूर्वपीतये) प्रथमपानाय। मुख्यभोगाय (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (स्तोमेभिः) स्तोत्रैः (आयवः) मनुष्याः-निघ० २।३। (समीचीनासः) संगताः। साधवः (ऋभवः) मेधाविनः (सम्) संगत्य (अस्वरन्) स्वृ शब्दोपतापयोः। अस्तुवन् (रुद्राः) स्तोतारः-निघ० ३।१६। (गृणन्त) स्तुतवन्तः (पूर्व्यम्) प्राचीनम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [পরম ঐশ্বর্যবান পরমাত্মা] (পূর্বপীতয়ে) প্রথমে [মূখ্য] ভোগের জন্য, (সমীচীনাসঃ) সাধু, (ঋভবঃ) বুদ্ধিমান/জ্ঞানী, (রুদ্রাঃ) স্তুতিকারী/স্তোতা (আয়বঃ) মনুষ্যগণ (স্তোমেভিঃ) স্তোত্র দ্বারা (পূর্ব্যম্) প্রাচীন (ত্বাম্) তোমাকে (সম্) একত্রে মিলে (অভি) সকল প্রকার (অস্বরন্) স্তুতি করেছে এবং (গৃণন্ত) গান করেছে ॥১॥
भावार्थ
সকল বুদ্ধিমান পরমেশ্বরের গুণসমূহ জেনে নিজের উন্নতি করুক॥১॥ উভয় মন্ত্র ঋগ্বেদে বর্তমান-৮।৩।৭, ৮; সামবেদ-উ০ ৭।৩।১; মন্ত্র ১ সাম০ পূ০ ৩।৭।৪ ॥
भाषार्थ
(ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (পূর্বপীতয়ে) ভক্তিরস বা আনন্দরসের প্রাথমিক পানের জন্য, (আয়বঃ) উপাসকগণ (স্তোমেভিঃ) সামগান দ্বারা (ত্বা) আপনার (অভি) প্রত্যক্ষরূপে (গৃণন্ত) স্তুতি করে; (সমীচীনাসঃ) সম্যক্-রূপে শিল্প-কার্য সম্পাদনকারী (ঋভবঃ) দিব্য কারীগর (সম্) মিলে (পূর্ব্যম্) আপনার অনাদি দেবতার (অস্বরন্) স্বরপূর্বক গান করে। (রুদ্রাঃ) শত্রুদের কষ্টপ্রদায়ী ক্ষত্রিয় অনাদি দেব আপনার স্বরপূর্বক গান করে।
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