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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शत्रु सेनासंमोहन सूक्त
    1

    अ॒ग्निर्नो॑ दू॒तः प्र॒त्येतु॑ वि॒द्वान्प्र॑ति॒दह॑न्न॒भिश॑स्ति॒मरा॑तिम्। स चि॒त्तानि॑ मोहयतु॒ परे॑षां॒ निर्ह॑स्तांश्च कृणवज्जा॒तवे॑दाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नि: । न॒: । दू॒त: । प्र॒ति॒ऽएतु॑ । वि॒द्वान् । प्र॒ति॒ऽदह॑न् । अ॒भिऽश॑स्तिम् । अरा॑तिम् ।स: । चि॒त्तानि॑ । मो॒ह॒य॒तु॒ । परे॑षाम् । नि:ऽह॑स्तान् । च॒ । कृ॒ण॒व॒त् । जा॒तऽवे॑दा: ॥२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निर्नो दूतः प्रत्येतु विद्वान्प्रतिदहन्नभिशस्तिमरातिम्। स चित्तानि मोहयतु परेषां निर्हस्तांश्च कृणवज्जातवेदाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नि: । न: । दूत: । प्रतिऽएतु । विद्वान् । प्रतिऽदहन् । अभिऽशस्तिम् । अरातिम् ।स: । चित्तानि । मोहयतु । परेषाम् । नि:ऽहस्तान् । च । कृणवत् । जातऽवेदा: ॥२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सेनापति के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्निः) अग्नि [के समान तेजस्वी] (दूतः) अग्रगामी वा तापकारी (विद्वान्) विद्वान् राजा (नः) हमारेलिये (अभिशस्तिम्) मिथ्या अपवाद और (अरातिम्) शत्रुता को (प्रतिवहन्) सर्वथा भस्म करता हुआ (प्रत्येतु) चढ़ाई करे। (सः) वह (जातवेदाः) प्रजाओं का जाननेवाला [सेनापति] (परेषाम्) शत्रुओं के (चित्तानि) चित्तों को (मोहयतु) व्याकुल कर देवे (च) और [उनको] (निर्हस्तान्) निहत्था (कृणवत्) कर डाले ॥१॥

    भावार्थ

    राजा सेनादि से ऐसा प्रबन्ध रक्खे कि प्रजा गण आपस में मिथ्या कलङ्क न लगावें और न वैर करें और दुराचारियों को दण्ड देता रहे कि वे शक्तिहीन होकर सदा दबे रहें, जिससे श्रेष्ठों को सुख मिले और राज्य बढ़ता रहे ॥१॥ यह मन्त्र इसी काण्ड के सूक्त १ मन्त्र १ में कुछ भेद से है ॥

    टिप्पणी

    १−(दूतः)। अ० १।७।६। दु गतौ-यद्वा, टुदु उपतापे-क्त। अग्रेसरः। उपतापकः (चित्तानि)। अन्तःकरणानि। अन्यद् व्याख्यातम्-सू० १ म० १ ॥

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    विषय

    निर्हस्तीकरण

    पदार्थ

    १. (न:) = हमारे राष्ट्र का यह (अग्नि:) = अग्रणी-राष्ट्र का प्रमुख नेता-राष्ट्रपति (दूत:) = शत्रुओं को सन्तप्त करनेवाला है। यह (विद्वान्) = शत्रुओं की गतिविधि से पूर्ण परिचित होता हुआ (प्रतिएतु) = शत्रुओं पर आक्रमण करनेवाला हो। यह (अभिशस्तिम्) = नाश करनेवाले (अरातिम्) = शत्रु को (प्रति दहन्) = एक-एक करके दग्ध करनेवाला हो। २. (सः) = वह (परेषाम्) = शत्रुओं के (चित्तानि) = चित्तों को (मोहयतु) = मोह में डाल दे। उन्हें कर्तव्याकर्तव्य की सूझ ही न रहे (च) = और यह (जातवेदा:) = शत्रुओं की प्रत्येक गतिविधि-को जाननेवाला (निहस्तान् कृणवत्) = शत्रुओं को आयुधग्रहण में असमर्थ हाथोंवाला कर दे।

    भावार्थ

    राष्ट्रपति शत्रुओं पर ऐसा प्रबल आक्रमण करे कि उन शत्रुओं में आयुधग्रहण का सामर्थ्य ही न रहे।

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    भाषार्थ

    (नः) हमारा (विद्वान्) युद्धविद्याविज्ञ (दूतः) शत्रुओं का उपतापक (अग्निः) अग्रणी प्रधानमंत्री (प्रत्येतु) शत्रुओं के प्रतिमुख आए, (अभी शस्तिम्) अभिमुख होकर हिंसा करनेवाले, (अरातिम्) दानभावनारहित अतः शत्रु को (प्रतिदहन्) प्रतिकूल रूप में युद्ध करता हुआ। (सः) वह (परेषाम्) शत्रुओं के (चित्तानि) चित्तों को (मोहयतु) कर्त्तव्याकर्तव्य के ज्ञान से रहित करे, (च) और (जातवेदा:) नवजात परिस्थितियों का वेत्ता अग्रणी (निर्हस्तान् कृणवत्) उन्हें निहत्त्थे कर दे। [निर्हस्तान् (अथर्व ०१।१)]

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    विषय

    शत्रु सेना के प्रति सेनापति के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    (नः दूतः अग्निः विद्वान् अभिशस्तिम् अरातिम् प्रतिदहन् प्रति एतु) हमारा मुख्य प्रतिनिधि विद्वान् अग्निरूप अग्रणी = सेनापति हम पर चढ़ाई करने वाले शत्रु को संताप देता हुआ शत्रु पर चढ़ाई करे । (सः परेषां चित्तानि मोहयतु) वह शत्रुओं के चित्तों को विमूढ़ करदे। और (जातवेदाः) स्वयं सब का ज्ञान करता हुआ (निर्हस्तान् कृणवत्) शत्रुओं को निहत्था करदे । (देखो व्याख्या अथर्व० ३।१।१॥)

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘प्रत्येतु शत्रुन्’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः । सेनासंमोहनम् । अग्न्यादयो बहवो देवताः । १, ५, ६ त्रिष्टुभः। २-४ अनुष्टुभौ। षडृचं सूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Storm the Enemy

    Meaning

    Let Agni, our brilliant leader and commander, versatile strategist and tactician, march against the enemy destroying the evil curse and misfortune of malignity and adversity. Let him, knowing all his own powers and potential and also the enemy’s, bewilder the mind and morale of the hostile forces and force them to lay down their arms.

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    Subject

    Agni

    Translation

    ‘Let our army Chief moving forward as an envoy, knowing well, go forth burning, against wide-spread violence and misery. Let him, (confound minds of the enemies), the one who knows all, disarm them.

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    Translation

    May Agnih, the Commander who is our representative and wise assail the attacking foes burning them. Let him bewilder the senses of these enemies and having the knowledge of all aspects of battle make them unarmed.

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    Translation

    May the Commander, our wise, chief representative, tormenting ourfoe, who attacks us, march against him. May he bewilder our opponents, senses. May the Commander, the Knower of his subjects render thempowerless.

    Footnote

    In the text the word निर्हस्तान्literally means handless. Liberally interpreted, it means powerless.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(दूतः)। अ० १।७।६। दु गतौ-यद्वा, टुदु उपतापे-क्त। अग्रेसरः। उपतापकः (चित्तानि)। अन्तःकरणानि। अन्यद् व्याख्यातम्-सू० १ म० १ ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (নঃ) আমাদের (বিদ্বান্) যুদ্ধবিদ্যাবিজ্ঞ (দূতঃ) শত্রুদের উপতাপক/তাপকারী (অগ্নিঃ) অগ্রণী প্রধানমন্ত্রী (প্রত্যেতু) শত্রুদের প্রতি আসুক, (অভিশস্তিম্) অভিমুখ হয়ে হিংসাকারীদের, (অরাতিম্) দানভাবনারহিত, অতঃ শত্রুকে (প্রতিদহন্) প্রতিকূলরূপে দগ্ধ করে। (সঃ) সে/তিনি [যুদ্ধবিদ্যাবিজ্ঞ প্রধানমন্ত্রী] (পরেষাম্) শত্রুদের (চিত্তানি) চিত্তকে (মোহয়তু) কর্তব্যাকর্তব্যের জ্ঞানরহিত করুক, (চ) এবং (জাতবেদাঃ) নবজাত পরিস্থিতির বেত্তা অগ্রণী (নির্হস্তান্ কৃণবৎ) তাঁদের নিরস্ত্র করুক।

    टिप्पणी

    [নির্হস্তান্ (অথর্ব০ ৩।১।১)]

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    मन्त्र विषय

    সেনাপতিকৃত্যমুপদিশ্যতেঃ

    भाषार्थ

    (অগ্নিঃ) অগ্নি [এর সমান তেজস্বী] (দূতঃ) অগ্রগামী বা তাপকারী (বিদ্বান্) বিদ্বান্ রাজা (নঃ) আমাদের জন্য (অভিশস্তিম্) মিথ্যা অপবাদ এবং (অরাতিম্) শত্রুতা কে (প্রতিদহন্) সর্বথা ভস্ম করে (প্রত্যেতু) আক্রমণ করুক। (সঃ) তিনি/সেই (জাতবেদাঃ) প্রজাদের সম্পর্কে অবগত [সেনাপতি] (পরেষাম্) শত্রুদের (চিত্তানি) চিত্তকে (মোহয়তু) ব্যাকুল করুক (চ) এবং [তাঁদের] (নির্হস্তান্) নিরস্ত্র (কৃণবৎ) করুক ॥১॥

    भावार्थ

    রাজা সেনাদির মাধ্যমে এমন ব্যবস্থা রাখুক, যাতে প্রজাগণ নিজেদের মধ্যে মিথ্যা কলঙ্ক না প্রয়োগ করে এবং না শত্রুতা করে এবং দুরাচারীদের শাস্তি দিতে থাকুক যাতে তাঁরা শক্তিহীন হয়ে সদা বশীভূত থাকে, যাতে শ্রেষ্ঠগণ সুখ প্রাপ্ত হয় এবং রাজ্য বিস্তৃত হতে থাকে ॥১॥ এই মন্ত্র এই কাণ্ডের সূক্ত ১ মন্ত্র ১ এ কিছুটা আলাদা ॥

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