अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
ऋषिः - भृगुः
देवता - वनस्पतिः, प्रजापतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - समृद्धि प्राप्ति सूक्त
2
पय॑स्वती॒रोष॑धयः॒ पय॑स्वन्माम॒कं वचः॑। अथो॒ पय॑स्वतीना॒मा भ॑रे॒ऽहं स॑हस्र॒शः ॥
स्वर सहित पद पाठपय॑स्वती: । ओष॑धय: । पय॑स्वत् । मा॒म॒कम् । वच॑: । अथो॒ इति॑ । पय॑स्वतीनाम् । आ । भ॒रे॒ । अ॒हम् । स॒हस्र॒ऽश: ॥२४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
पयस्वतीरोषधयः पयस्वन्मामकं वचः। अथो पयस्वतीनामा भरेऽहं सहस्रशः ॥
स्वर रहित पद पाठपयस्वती: । ओषधय: । पयस्वत् । मामकम् । वच: । अथो इति । पयस्वतीनाम् । आ । भरे । अहम् । सहस्रऽश: ॥२४.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
धान्य बढ़ाने के कर्म का उपदेश।
पदार्थ
(ओषधयः) ओषधियाँ, चावल जौ आदि वस्तुएँ (पयस्वतीः=०-त्यः) सारवाली होवें, और (मामकम्) मेरा (वचः) वचन (पयस्वत्) सारवाला होवे। (अथो) और भी (अहम्) मैं (पयस्वतीनाम्) सारवाली [ओषधियों] का (सहस्रशः) सहस्रों प्रकार से (आ) यथाविधि (भरे) धारण करूँ ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य विद्यापूर्वक अन्न आदि पदार्थों को उत्तम बनावें और दृढ़ सत्य वचन बोलें। ऐसा करने से शारीरिक और आत्मिक उन्नति होती है ॥१॥ मनु महाराज का वचन है−उद्भिजाः स्थावराः सर्वे बीजकाण्डप्ररोहिणः। ओषध्यः फलपाकान्ता बहुपुष्पफलोपगाः ॥ मनु० १।४६ ॥ भूमि को फाड़कर उपजनेवाले, और बीज वा शाखा से उगनेवाले सब वृक्ष हैं, फल पाक के साथ नष्ट होनेवाली और बहुत फूल फलवाली ओषधियाँ [चावल, जौ आदि] हैं ॥१॥
टिप्पणी
१−(पयस्वतीः) पयस्वत्यः। सारवत्यः (ओषधयः) अ० १।२३।१। व्रीहियवाद्याः (पयस्वत्) सारयुक्तम्। (मामकम्) मदीयम्। [वचः] वचनम्। (अथो) अपि च। (पयस्वतीनाम्) कर्मणि षष्ठी। सारवतीनामोषधीनाम्। (आ) समन्तात् (भरे) भरामि। [सहस्रशः] वह्लल्पार्थाच्छस्कारकादन्यतरस्याम्। पा० ५।४।४२। इति सहस्र-शस्। बहुप्रकारेण ॥
विषय
पयस्वती: ओषधयः
पदार्थ
१. (ओषधयः) = व्रीहि-यव [चावल-जौ] आदि ओषधियों (पयस्वती:) = सारवाली हैं। इनके प्रयोग से (मामकं वचः) = मेरा वचन भी (पयस्वत्) = सारवाला हो। २. (अथ उ) = अब निश्चय से (अहम) = मैं (पयस्वतीनाम्) = इन सारभूत ओषधियों का (सहस्रश:) = हज़ारों प्रकार से (आभरे) = भरण करता हूँ।
भावार्थ
व्रीहि-यव आदि ओषधियों सारवाली हैं। इनके विविध प्रकार के प्रयोग से मेरा वचन भी सदा सारवाला होता है।
भाषार्थ
(पयस्वतीः) सारवाली हैं (ओषधयः) ओषधियाँ, (पयस्वत्) सारवाला है (मामकम् वचः) मेरा वचन। (अथो) तथा (पयस्वतीनाम्) सारवाली (सहस्रशः) हजारों ओषधियों को (अहम्) मैं (आ भरे) प्राप्त करूं।
विषय
उत्तम धान्य और औषधियों के संग्रह का उपदेश ।
भावार्थ
गर्भ पालन के निमित्त धान्य और औषधियों के संग्रह करने का उपदेश करते हैं । (ओषधयः) धान्य आदि ओषधियां (पयस्वतीः) शरीर को पुष्ट करने में समर्थ, सार भाग से युक्त हों, ओर (मामकं वचः) मेरा वचन भी (पयस्वत्) सार और रस से पूर्ण हो, (अथो) और (अहं) मैं (सहस्रशः) हजारों (पयस्वतीनाम्) अन्नादि सारभूत पुष्टिकारक पदार्थों से युक्त वनस्पतियों को (आ भरे) अपने घर पर नित्य लाऊं ।
टिप्पणी
(तृ० च०) ‘अपां पयस्वदित्पयस्तेव मासह शुन्धत’ इति ऋ० । (च०) ‘भरेयम्’ इति सायणः । ‘अथो पयस्वतीं पय आहरामि सहस्रशः’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्ऋषिः। वनस्पतिएत प्रजापतिर्देवता। १, ३-७ अनुष्टुभः। २ निचृत्पथ्या पंक्तिः। सप्तर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Samrddhi, Abundance
Meaning
Exuberant succulant are the herbs with honeyed life energy, so sweet and full of life’s essence be my word. And I pray I may bear the honey sweets of the milk of life a thousand ways.
Subject
Vanaspah
Translation
May the plants (osadhayah) be full of substantial sap (payasvati).May my words be full of substance.May I procure thousand times of grain of the plants full of substance.
Translation
The herbaceous plants are succulent and full of succulence are our words. Let me take advantage of the thousands of succulent plants, corns, and roots.
Translation
The plants of earth are rich in milk, and rich in sweetness is this my word. So, from the rich plants I bring thousand-fold profit hitherward.
Footnote
Milk: here used in its figurative sense of beneficial virtue.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(पयस्वतीः) पयस्वत्यः। सारवत्यः (ओषधयः) अ० १।२३।१। व्रीहियवाद्याः (पयस्वत्) सारयुक्तम्। (मामकम्) मदीयम्। [वचः] वचनम्। (अथो) अपि च। (पयस्वतीनाम्) कर्मणि षष्ठी। सारवतीनामोषधीनाम्। (आ) समन्तात् (भरे) भरामि। [सहस्रशः] वह्लल्पार्थाच्छस्कारकादन्यतरस्याम्। पा० ५।४।४२। इति सहस्र-शस्। बहुप्रकारेण ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(পয়স্বতীঃ) সারযুক্ত হলো (ওষধয়ঃ) ঔষধি-সমূহ (পয়স্বৎ) সারযুক্ত হলো (মামকম্ বচঃ) আমার বচন। (অথো) তথা (পয়স্বতীনাম্) সারযুক্ত (সহস্রশঃ) সহস্র ঔষধি-সমূহ যেন (অহম্) আমি (আ ভরে) প্রাপ্ত করি।
मन्त्र विषय
ধান্যসমৃদ্ধিকর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(ওষধয়ঃ) ঔষধি-সমূহ, চাল, যব ইত্যাদি বস্তু (পয়স্বতীঃ=০-ত্যঃ) সারযুক্ত হোক, এবং (মামকম্) আমার (বচঃ) বচন (পয়স্বৎ) সারযুক্ত হোক। (অথো) এবং (অহম্) আমি (পয়স্বতীনাম্) সারযুক্ত [ঔষধিসমূহের] (সহস্রশঃ) সহস্র প্রকারে (আ) যথাবিধি (ভরে) ধারণ করি ॥১॥
भावार्थ
মনুষ্য বিদ্যাপূর্বক অন্নাদি পদার্থ, উত্তম করুক এবং দৃঢ় সত্য বচন বলুক। এমনটা করলে শারীরিক ও আত্মিক উন্নতি হয় ॥১॥ মনু মহারাজের বচন - উদ্ভিজাঃ স্থাবরাঃ সর্বে বীজকাণ্ডপ্ররোহিণঃ। ওষধ্যঃ ফলপাকান্তা বহুপুষ্পফলোপগাঃ ॥ মনু০ ১।৪৬ ॥ ভূমিকে ভেদ করে উৎপাদিত, এবং বীজ বা শাখা থেকে উৎপাদিত সব বৃক্ষ, ফল এর সাথে নাশবান ও অনেক ফুল ফলযুক্ত ঔষধি [চাল, যব আদি]॥১॥
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