अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 1
ऋषिः - शुक्रः
देवता - अपामार्गो वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त
1
ईशा॑णां त्वा भेष॒जाना॒मुज्जे॑ष॒ आ र॑भामहे। च॒क्रे स॒हस्र॑वीर्यं॒ सर्व॑स्मा ओषधे त्वा ॥
स्वर सहित पद पाठईशा॑नाम् । त्वा॒ । भे॒ष॒जाना॑म् । उत्ऽजे॑षे । आ । र॒भा॒म॒हे॒ । च॒क्रे । स॒हस्र॑ऽवीर्यम् । सर्व॑स्मै । ओ॒ष॒धे॒ । त्वा॒ ॥१७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
ईशाणां त्वा भेषजानामुज्जेष आ रभामहे। चक्रे सहस्रवीर्यं सर्वस्मा ओषधे त्वा ॥
स्वर रहित पद पाठईशानाम् । त्वा । भेषजानाम् । उत्ऽजेषे । आ । रभामहे । चक्रे । सहस्रऽवीर्यम् । सर्वस्मै । ओषधे । त्वा ॥१७.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ
[हे राजन् !] (ईशानाम्) समर्थ (भेषजानाम्) भयनिवारक पुरुषों में (त्वा) तेरा (उज्जेषे) [शत्रुओं को] जीतने के लिये (आरभामहे) हम आश्रय लेते हैं। (ओषधे) हे तापनाशक [वा अन्न आदि ओषधि के समान उपकारक !] (सर्वस्मै) सब जनों के लिये (त्वा) तुझे (सहस्रवीर्यम्) सहस्रों सामर्थ्यवाला (चक्रे) उस [परमात्मा] ने बनाया है ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य पुरुषार्थियों में महा पुरुषार्थी पुरुष को अपना प्रधान बनावें और उससे अपनी रक्षा का सहारा लें ॥१॥
टिप्पणी
१−(ईशानाम्) ईश ऐश्वर्ये-क। ईश्वराणां समर्थानाम् (त्वा) त्वां राजानम् (भेषजानाम्) भेष+जि जये-ड। भेषस्य भयस्य जेतॄणां मध्ये (उज्जेषे) तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। इति जि−से प्रत्ययः। उज्जेतुम्। निवारयितुं शत्रून् (आ रभामहे) आङ् पूर्वको रभ स्पर्शे। संस्पृशामः। आश्रयामः (चक्रे) स परमेश्वरः कृतवान् (सहस्रवीर्यम्) अपरिमितसामर्थ्ययुक्तम् (सर्वस्मै) सर्वजनहिताय (ओषधे) हे दाहनाशक ! अन्नाद्योषधिवद् उपकारक (त्वा) त्वाम् ॥
विषय
भेषजों की ईशान
पदार्थ
१. (भेषजानाम्) = ओषधियों की (ईशानाम्) = ईशान-[ईश्वर]-भूत हे अपमार्ग! (त्वाम्) = तुझे (उज्नेषे) = रोगों को पराजित करने के लिए (आरभामहे) = संस्पृष्ट करते हैं। तेरे उचित प्रयोग से हम सब रोगों को दूर करते हैं। २. हे (ओषधे) = दोषों को दग्ध करनेवाली! (त्वा) = तुझे (सर्वस्मै) = सब दोषों की निवृत्ति के लिए प्रभु ने (सहस्त्रबीर्यम् चक्रे) = अपरिमित सामर्थ्ययुक्त बनाया है-तुझमें सब दोषों को दग्ध करने की शक्ति रक्खी है।
भावार्थ
अपामार्ग ओषधि अपरिमित सामर्थ्ययुक्त है। यह सब रोगों को दूर करने में समर्थ है|
भाषार्थ
(उज्जेषे) रोगों पर विजय पाने के लिए (त्वा) तुझ (ईशानाम्, भेषजम्) ऐश्वर्यशाली भेषजों में से सर्वोत्तम भेषज को (आरभामहे) हम प्राप्त करते हैं। (ओषधे) हे औषधि ! दोषों का दहन करनेवाली ! (सर्वस्मै) सब रोगों की निवृत्ति के लिए (त्वा) तुझे (सहस्रवीर्यम्) हजार शक्तियों वाले भेषजरूप में (चक्रे) मैं करता हूँ, या मैंने किया है, माना है।
टिप्पणी
[उज्जेषे= ”तुमर्थे सेसेन” (अष्टा० ३।४।९) द्वारा ‘से’ प्रत्यय। आरभामहे=आ+रभ् (लभ प्राप्तौ); डूलभष् प्राप्तौ (भ्वादिः)। यह भेषज है ‘अपामार्ग’ (मन्त्र ६,७,८)। सहदेवी (सायण, मन्त्र १)।]
विषय
अपामार्ग और अपामार्ग विधान का वर्णन।
भावार्थ
ओषधि को सहस्रगुण वीर्यवान् करने का उपदेश करते हैं। हे ओषधे ! (त्वा) तुझ को (सर्वस्मै) सब प्रकार के रोगों के लिये मैं (सहस्रवीर्यं) सहस्रगुण शक्तिवाला करता हूं। और (भेषजानाम्) सब रोगहारक औषधों में से (ईशानां) सब से अधिक सामर्थ्य वाली (त्वा) तुझको (उत्-जेषे) रोग पीडा़ओं पर विजय और वश करने के लिये (आरभामहे) हम तुझे तैयार करते हैं। औषधि के सहस्रगुण करने के लिये उस वनस्पति को ‘ओषधि’ बना लेना चाहिये। ओष-धि=टिंक्चर उसके सहस्रवीर्य करने का उपाय ‘होमियोपैथी’ चिकित्सा में बतलाया जाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। अपामार्गो वनस्पतिर्देवता। १-८ अनुष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Apamarga Herb
Meaning
O Apamarga, best of herbal sanatives, in order to win our medical objective we take you up for medical treatment and reinforce you to a thousandfold higher efficacy as a cure for all diseases.
Subject
Apámargah - Vanaspatih
Translation
O conquering one , we take hold of you, the queen of healing remedies, O herb, I invest, you with thousands of owers for all and sundry.
Translation
[N.B. Here in this hymn we find the description of Apamarga, a herbaceous plant known as chichida in Hindi. It is Achyranthes Aspera.] We obtain this herb which is the queen of all medicines for conquering diseases. For the advantage of all I make this medicine possessed of thousand potencies.
Translation
O medicine, for eradicating all diseases, I render thee thousand-fold potent. For the healing of a malady, we prepare thee, O queen of medicines!
Footnote
To make a medicine more efficacious, its potency should be enhanced, as is done by homeopaths.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(ईशानाम्) ईश ऐश्वर्ये-क। ईश्वराणां समर्थानाम् (त्वा) त्वां राजानम् (भेषजानाम्) भेष+जि जये-ड। भेषस्य भयस्य जेतॄणां मध्ये (उज्जेषे) तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। इति जि−से प्रत्ययः। उज्जेतुम्। निवारयितुं शत्रून् (आ रभामहे) आङ् पूर्वको रभ स्पर्शे। संस्पृशामः। आश्रयामः (चक्रे) स परमेश्वरः कृतवान् (सहस्रवीर्यम्) अपरिमितसामर्थ्ययुक्तम् (सर्वस्मै) सर्वजनहिताय (ओषधे) हे दाहनाशक ! अन्नाद्योषधिवद् उपकारक (त्वा) त्वाम् ॥
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