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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शुक्रः देवता - अपामार्गो वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त
    1

    उ॒तो अ॒स्यब॑न्धुकृदु॒तो अ॑सि॒ नु जा॑मि॒कृत्। उ॒तो कृ॑त्या॒कृतः॑ प्र॒जां न॒डमि॒वा च्छि॑न्धि॒ वार्षि॑कम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒तो इति॑ । अ॒सि॒ । अब॑न्धुऽकृत् । उ॒तो इति॑ । अ॒सि॒ । नु । जा॒मि॒ऽकृत् । उ॒तो इति॑ । कृ॒त्या॒ऽकृत॑: । प्र॒ऽजाम् । न॒डम्ऽइ॑व । आ । छि॒न्धि॒ । वार्षि॑कम् ॥१९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उतो अस्यबन्धुकृदुतो असि नु जामिकृत्। उतो कृत्याकृतः प्रजां नडमिवा च्छिन्धि वार्षिकम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उतो इति । असि । अबन्धुऽकृत् । उतो इति । असि । नु । जामिऽकृत् । उतो इति । कृत्याऽकृत: । प्रऽजाम् । नडम्ऽइव । आ । छिन्धि । वार्षिकम् ॥१९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 19; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे राजन्] तू (अबन्धुकृत्) अबन्धुओंका काटनेवाला (उतो) भी (असि) है, (नु) और (जामिकृत्) बन्धुओं का बनानेवाला (उतो) भी (असि) है। (उतो) इससे (कृत्याकृतः) हिंसा करनेवालों और (प्रजाम्) उनके सेवकों को (आ छिन्धि) काट डाल, (इव) जैसे (वार्षिकम्) वर्षा में उत्पन्न (नडम्) नरकट घास को ॥१॥

    भावार्थ

    राजा अपने उत्तम शासन से हिंसक दुष्टों का नाश करके इष्ट मित्रों में मेल बढ़ावे ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(उतो) अपि च (असि) (अबन्धुकृत्) कृती छेदने-क्विप्। अबन्धूनां शत्रूणां कर्तकश्छेदकः (नु) अनुनये (जामिकृत्) जामि इति व्याख्यातम्-अ० २।७।२। जामिः, बन्धुः-यथा सायणः-ऋ० १।७५।३। करोतेः क्विप्। बन्धूनां कर्ता सम्पादकः (कृत्याकृतः) हिंसाकर्तॄन् (प्रजाम्) तेषां जनान् भृत्यादीन् च (नडम्) नल बन्धे=पचाद्यच्। लस्य डत्वम्। सुच्छेद्यं तृणविशेषम् (इव) यथा (आ समन्तात् (छिन्धि) भिन्धि। विदारय (वार्षिकम्) छन्दसि ठञ्। पा० ४।३।१९। इति वर्षा-ठञ्। वर्षाकालोद्भवम् ॥

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    विषय

    अबन्धुकृत् जामिकृत्

    पदार्थ

    १. हे अपामार्ग! तू (उत उ) = निश्चय से ही (अबन्धु-कृत्) = [शत्रूणां कर्तक:] शत्रुभूत रोगों का छेदन करनेवाला (असि) = है और (नु) = अब (उत उ) = निश्चय ही (जामिकृत् असि) = [जामय: सहजाः] जन्म के साथ होनेवाले रोगों का भी छेदन करनेवाला है। सहज व असहज [कृत्रिम्] सभी रोगों का यह अपामार्ग विनाशक है। २. (उत उ) = निश्चय से (कृत्याकृत:) = हिंसन को पैदा करनेवाले कृमियों की (प्रजाम्) = सन्तानों को इसप्रकार से (छिन्धि) = नष्ट कर डाल (इव) = जैसे (वार्षिकं नडम्) = वर्षाऋतु में उत्पन्न हो जानेवाले तृणविशेषों को छिन्न किया जाता है।

    भावार्थ

    अपामार्ग औषधि सहज व कृत्रिम सभी दोषों को दूर करती है और रोगकृमियों के वंश को ही समाप्त कर देती है।

     

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    भाषार्थ

    (उतो) चाहे (असि) तू है (अबन्धुकृत्) असम्बन्धी द्वारा की गई, (उतो) चाहे (असि) तू है (नु) निश्चय से (जामिकृत्) जन्म से सम्बन्धी द्वारा की गई, (उतो) चाहे [अन्य किसी द्वारा की गई] तू (कृत्याकृतः) हिंस्रक्रिया करनेवाले की (प्रजाम्) प्रजा को (आच्छिन्धि) काट दे, (इव) जैसे (वार्षिकम्) वर्षाकालोद्धव (नडम्) नड को आसानी से काट दिया जाता है।

    टिप्पणी

    [वर्षाकालोद्भूत नड यतः गोला होता है अतः आसानी से काटा जा सकता है। जामि पद जन्म से सम्बन्धी का वाचक है। यथा “जामये भगिन्यै” (निरुक्त ३।१।६)। मन्त्र में कृत्या को सम्बोधित किया है, कृत्या है हिंस्रक्रिया। शत्रु द्वारा की गई हिंस्त्रक्रिया के परिशोध में तत्सदृश हिंस्रक्रिया करने का अनुमोदन किया है।]

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    विषय

    अपामार्ग-विधान का वर्णन।

    भावार्थ

    अपामार्ग विधान को और भी स्पष्ट करते हैं। हे अपामार्ग ! राष्ट्र के अपकारियों के नाशकारी विधान ! (उत) चाहे तू (अवन्धुकृत्) उन दुष्ट पुरुषों को राजा का अबन्धु-शत्रु बनाने वाला है और (उतो नु जामि-कृत् असि) चाहे उनको राजा का मित्र बना देता है, अथवा (उतो अबन्धुकृत् असि) हे अपामार्ग विधान ! तू शत्रुओं का नाशक है और (उतो नु जामि-कृत् असि) तू सहज शत्रुओं का भी विनाशक हैं। (उतो) और तो भी (कृत्या-कृतः) गुप्त रूप से घात करने हारे पुरुषों की (प्र-जाम्) आगे आने वाली सन्तति को (वार्षिकम् नडम्-इव) वर्षा-काल में पैदा हुए नड़ = तृण के समान (आ च्छिन्धि) काट ही डालता है। कण्टक शोधन के विद्याग करने पर बहुत से राजा के शत्रु हो जाते हैं और बहुत से मित्र हो जाते हैं तो भी उसके प्रयोग से और क्षणिक अनर्थकारी लोगों के षड्यन्त्र होने बन्द हो जाते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। अपामार्गो वनस्पतिर्देवता। २ पथ्यापंक्तिः, १, ३-८ अनुष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Apamarga:

    Meaning

    Apamarga, as you are destroyer of deadly and dread diseases and also of the dearest dearly related addictions, pray destroy all violent negativities and their after effects, uproot them like the weeds of the rainy season.

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    Subject

    Apamargah Vanaspatih

    Translation

    O herb, whether you have been applied by an enemy or you have been applied by a kinsman; may you cut off the; progeny of the violent evil-doers like a reed that grows in rainy season.

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    Translation

    This Apamarga is the destroyer of the diseases which are local or unhereditary and the destroyer of the diseases which are hereditary. Let it exterminate the off shoots of that disease which is terrible in effect like rainy reed.

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    Translation

    O King, thou art the extirpator of enemies, and the creator of friends. Uproot the violent and their followers, like a reed that grows in the rains.

    Footnote

    A king has been described as a medicine. Just as medicine uproots diseases, so does the king destroy his enemies.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(उतो) अपि च (असि) (अबन्धुकृत्) कृती छेदने-क्विप्। अबन्धूनां शत्रूणां कर्तकश्छेदकः (नु) अनुनये (जामिकृत्) जामि इति व्याख्यातम्-अ० २।७।२। जामिः, बन्धुः-यथा सायणः-ऋ० १।७५।३। करोतेः क्विप्। बन्धूनां कर्ता सम्पादकः (कृत्याकृतः) हिंसाकर्तॄन् (प्रजाम्) तेषां जनान् भृत्यादीन् च (नडम्) नल बन्धे=पचाद्यच्। लस्य डत्वम्। सुच्छेद्यं तृणविशेषम् (इव) यथा (आ समन्तात् (छिन्धि) भिन्धि। विदारय (वार्षिकम्) छन्दसि ठञ्। पा० ४।३।१९। इति वर्षा-ठञ्। वर्षाकालोद्भवम् ॥

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