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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 1
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - एकवृषः छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त
    1

    यद्ये॑कवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । ए॒क॒ऽवृ॒ष: । असि॑ । सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्येकवृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । एकऽवृष: । असि । सृज । अरस: । असि ॥१६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (यदि) जो तू (एकवृषः) एक [परमेश्वर] के साथ ऐश्वर्यवान् (असि) है, [सुख] (सृज) उत्पन्न कर, [नहीं तो] तू (अरसः) निर्बल (असि) है ॥१॥

    भावार्थ

    एक परमात्मा के ज्ञान से मनुष्य संसार का उपकार कर सकता है, ईश्वरज्ञान के विना मनुष्यजन्म व्यर्थ है ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(यदि) पक्षान्तरे (एकवृषः) वृषु प्रजननैश्ययोः−क। एकेन परमेश्वरेण सहैश्वर्य्यवान् (असि) (सृज) उत्पादय सुखम् [नोचेत्] इति शेषः (अरसः) असमर्थः (असि) ॥

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    विषय

    एक से पाँच तक

    पदार्थ

    १. (यदि) = यदि तु (एकवृष:) = एक इन्द्रिय को शक्तिशाली बनानेवाला (असि) = है, तो सज-अभी और शक्ति उत्पन्न कर। केवल एक इन्द्रिय को शक्तिशाली बना लेने पर (अरस: असि) = तू नीरस जीवनवाला ही है। एक इन्द्रिय के सशक्त हो जाने से जीवन रसमय नहीं बन जाता। २. इसीप्रकार (यदि द्विवृषः असि) = यदि तू दो इन्द्रियों को सशक्त बनानेवाला है, तो भी नीरस जीवनवाला ही है, अत: और अधिक शक्ति उत्पन्न कर। ३. (यदि त्रिवृषः असि) = यदि तु तीन इन्द्रियों को भी शक्तिशाली बना पाया है, तो भी और अधिक शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी तेरा जीवन ठीक से सरस नहीं हो पाया है। ४. (यदि चतुर्वषः असि) = जिला, नाणेन्द्रिय, आँख व श्रोत्र-इन चारों को भी तूने शक्तिशाली बनाया है, तो भी और अधिक शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी तू अ-रस ही है। ५. अब (यदि पञ्चवृषः असि) = यदि तू पाँच ज्ञानेन्द्रियों को भी शक्तिशाली बनानेवाला है, तो भी अभी और शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी तू अ-रस ही है।

    भावार्थ

    पाँचों ज्ञानेन्द्रियों के सशक्त होने पर भी कर्मेन्द्रियों की शक्ति के अभाव में जीवन सरस नहीं बन पाता।

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    भाषार्थ

    (यदि एकवृषः असि) यदि तेरी एक इन्द्रिय तुझपर निजविषय की वर्षा करती है, तो (सृज) "ऋतप्रजात ऋतावरी" वृत्ति का सर्जन कर (सूक्त १५), (अरसः) उस ऐन्द्रियिक वर्षा-रस अर्थात् वर्षा-उदक [के प्रभाव] से रहित (असि) तू हो जाएगा।

    टिप्पणी

    [कोशिपसूत्र २९।१५ में पूर्वसूक्त १५ का, सूक्त १६ के साथ विनियोग किया है, अतः इन दोनों में एकवाक्यता होनी चाहिए। तदनुसार ही सूक्त १६ के मन्त्रों के अर्थ किये हैं। मन्त्र ११ में 'अरस:' को 'अपोदकः' कहा है जोकि इन्द्रिय के विषय को उदक-वर्षा के रूप में सूचित करता है।]

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    विषय

    आत्मा की शक्ति वृद्धि करने का उपदेश।

    भावार्थ

    आत्मा देवता। हे आत्मन् ! यदि तू (एकवृषः) एक ही प्राण वाला है तो (सृज) और उत्पन्न कर नहीं तो (अरसः असि) निर्बल ही रहेगा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः। एकवृषो देवता। १, ४, ५, ७-१० साम्न्युष्णिक्। २, ३, ६ आसुरी अनुष्टुप्। ११ आसुरी गायत्री। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Spiritual Strength and Creativity

    Meaning

    If you are your sole strength, the virile spirit, then create something as your contribution to life. Otherwise you are as good as lifeless.

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    Subject

    Eka - Vrsah

    Translation

    If you have one power, then create (more powers). You are powerless.

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    Translation

    If you possess one potential power use it to success otherwise you are of no use.

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    Translation

    O man, if thou art powerful in unison with God alone, enhance thy pleasure, otherwise thou art powerless!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(यदि) पक्षान्तरे (एकवृषः) वृषु प्रजननैश्ययोः−क। एकेन परमेश्वरेण सहैश्वर्य्यवान् (असि) (सृज) उत्पादय सुखम् [नोचेत्] इति शेषः (अरसः) असमर्थः (असि) ॥

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