अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 29/ मन्त्र 1
पु॒रस्ता॑द्यु॒क्तो व॑ह जातवे॒दोऽग्ने॑ वि॒द्धि क्रि॒यमा॑णं॒ यथे॒दम्। त्वं भि॒षग्भे॑ष॒जस्या॑सि क॒र्ता त्वया॒ गामश्वं॒ पुरु॑षं सनेम ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒रस्ता॑त् । यु॒क्त: । व॒ह॒ । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । अग्ने॑ । वि॒ध्दि । क्रि॒यमा॑णम् । यथा॑ । इ॒दम् । त्वम् । भि॒षक् । भे॒ष॒जस्य॑ । अ॒सि॒ । क॒र्ता । त्वया॑ । गाम् । अश्व॑म् । पुरु॑षम् । स॒ने॒म॒ ॥२९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरस्ताद्युक्तो वह जातवेदोऽग्ने विद्धि क्रियमाणं यथेदम्। त्वं भिषग्भेषजस्यासि कर्ता त्वया गामश्वं पुरुषं सनेम ॥
स्वर रहित पद पाठपुरस्तात् । युक्त: । वह । जातऽवेद: । अग्ने । विध्दि । क्रियमाणम् । यथा । इदम् । त्वम् । भिषक् । भेषजस्य । असि । कर्ता । त्वया । गाम् । अश्वम् । पुरुषम् । सनेम ॥२९.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रुओं और रोगों के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(जातवेदः) हे विद्या में प्रसिद्ध (अग्ने) विद्वान् पुरुष ! (युक्तः) योग्य होकर तू (पुरस्तात्) हमारे आगे (वह) प्राप्त हो, (यथा) जिस से (इदम्) इस (क्रियमाणम्) किये जाते हुए कर्म को (विद्धि) तू जान ले। (त्वम्) तू (भिषक्) वैद्य (भेषजस्य) औषध का (कर्ता) करनेवाला (असि) है। (त्वया) तेरे साथ (गाम्) गौ, (अश्वम्) घोड़ा (पुरुषम्) पुरुष को (सनेम) हम सेवन करें ॥१॥
भावार्थ
राजा आदि प्रधान प्रबन्ध करें कि सब मनुष्य गौओं, घोड़ों और पुरुषों से यथावत् उपकार लेवें ॥१॥
टिप्पणी
१−(पुरस्तात्) अग्रतः (युक्तः) योग्यः। उद्युक्तः (वह) प्राप्नुहि, गच्छ (जातवेदः) हे प्रसिद्धविद्य (अग्ने) विद्वन् (विद्धि) जानीहि (क्रियमाणम्) अनुष्ठीयमानं कर्म (यथा) येन प्रकारेण (इदम्) (त्वम्) (भिषक्) अ० २।९।३। चिकित्सकः (भेषजस्य) औषधस्य (असि) (कर्ता) अनुष्ठाता (त्वया) (गाम्) गोजातिम् (अश्वम्) अश्वजातिम् (पुरुषम्) पुरुषसमूहम् (सनेम) षण सम्भक्तौ सम्भजेम ॥
विषय
भिषक् [भेषजस्यासि कर्ता]
पदार्थ
१. हे (जातवेदः अग्ने) = सर्वज्ञ अग्रणी प्रभो! (पुरस्तात्) = हमारे जीवन-शकट के आगे (युक्तः) = युक्त हुए-हुए आप (वह) = हमारे जीवन की गाड़ी को ले-चलिए [भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया]। (यथा) = जैसे (इदम्) = यह (क्रियमाणम्) = किया जाना है, उसे विद्धि-आप ही जानिए। हमारे जीवन-शकट को लक्ष्य पर कैसे पहुँचाना है-यह तो आपको ही पता है। २. (त्वम् भिषक्) = आप ही वैद्य हैं (भेषजस्य कर्ता असि) = औषध करनेवाले हैं। जीवन-यात्रा में अयुक्त आहार-विहार से उत्पन्न हो जानेवाले रोगों को आपको दूर करना है। हे प्रभो! (त्वया) = आपसे हम (गाम्) = उत्तम ज्ञानेन्द्रियों को, (अश्वम्) = उत्तम कर्मेन्द्रियों को तथा (पुरुषम्) = उत्तम वीर सन्तानों को सनेम-प्राप्त करें [यह पुरुषोऽसत्]।
भावार्थ
हमारे जीवन-रथ के सारथि प्रभ हैं। वे ही जानते हैं कि यह यात्रा कैसे पूर्ण होनी है। सब रोगों के चिकित्सक वे ही हैं। वे ही उत्तम ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों व वीर सन्तानों को प्राप्त कराते हैं।
भाषार्थ
(जातवेदः अग्ने) हे जातप्रज्ञ अग्नि! (पुरस्तात् युक्तः) पूर्वेदिशा में सम्बद्ध तू (वह) जगत् का वहन कर और (विद्धि) जान ( यथा) जिस प्रकार कि (इदम् ) यह [पिशाच हनन कर्म] (क्रियमाणम्) किया जा रहा है। (त्वम्) तू (भिषक) चिकित्सक (भेषजस्य ) औषध का ( कर्ता असि) करनेवाला है, (त्वया) तुझ द्वारा [स्वस्थ] ( गाम् अश्वम्, पुरुषम् ) गौ, अश्व और पुरुष को (सनेम) हम प्राप्त करें।
टिप्पणी
[जातवेदः द्वारा 'जात प्रज्ञ' अर्थात् चेतन-तत्त्व सम्बोधित हुआ है। यह परमेश्वर है। पुरस्तात् में आदित्य का सम्बन्ध है, यह अग्नि है। इस आदित्य-अग्नि में 'ओ३म् खं ब्रह्म' की सत्ता है (यजु:० ४०। १७ ), यथा "योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम् । ओ३म् खं ब्रह्म"। इसे 'वह' और विद्धि' द्वारा भी निर्दिष्ट किया है । परमेश्वर भिषक् है, चिकित्सक१ है, [भेषजमसि भेषजम्, यजु:० ३।५९) ] वह साक्षात् भेषजरूप है और भेषजों, औषधों का कर्ता है, उत्पादक है।] [१. वेदानुसार आदित्य रश्मियाँ, रोग कीटाणुओं का हनन करती है, मानो आदित्यस्थ परमेश्वर ही इसका हनन करता है, अतः वह चिकित्सक हैं।]
विषय
रोगों का नाश करके आरोग्य होने का उपाय।
भावार्थ
रोगनाशक अग्नि का उपदेश करते हैं। हे (जात-वेदः) समस्त पदार्थों को जानने वाले विद्वन् ! अग्ने ! तू (पुरस्तात्) सब कार्यों के पूर्व ही कार्य में संचालकरूप से (नियुक्तः) नियुक्त होकर (वह) कार्य-भार को अपने ऊपर ले। और (यथा) जिस प्रकार से भी (इदं) यह कार्य (क्रियमाणं) किया जाने योग्य है उसी सब इतिकर्तव्यता को तू स्वयं (विद्धि) जान। तू ही स्वयं (भिषक्) सब रोगों, विघ्नों को दूर करने वाला है क्योंकि तू ही (भेषजस्य) रोग-विनाशक औषधों का (कर्ता असि) बनाने वाला है। (त्वया) तुझ से, तेरी सहायता से (गाम्, अश्वम्, पुरुषम्) गौओं, अश्वों और पुरुषों को स्वस्थरूप में (सनेम) प्राप्त करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
चातन ऋषिः। जातवेदा मन्त्रोक्ताश्व देवताः। १२, ४, ६-११ त्रिष्टुमः। ३ त्रिपदा विराड नाम गायत्री। ५ पुरोतिजगती विराड्जगती। १२-१५ अनुष्टुप् (१२ भुरिक्। १४, चतुष्पदा पराबृहती ककुम्मती)। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Destruction of Germs and Insects
Meaning
O Agni, Jataveda, general physician of comprehensive knowledge of disease and medicine, come as appointed in advance, know what it is now to be done. You are the physician, you are the maker of the medicine. By you, your knowledge and application, let us have a nation of healthy people, fertile cows and fleet horses.
Subject
Játavedàh
Translation
O biological fire, knower of all the born organisms, having been taken care of in advance, may you undertake this. May you know how all this is being done. You are the healer and maker of the curing remedy. Through you, may we get our cow, horse and man (healthy).
Translation
O learned man ! you are the expert of Vedic knowledge and Dexter in preparing the medicines. You appointed in this task previously hold the responsibility there of as you full know whatever is to be done. With your Co-Operation we gain cows, horses and people.
Translation
O learned person, take upon thy shoulders the responsibility of performing effectively all tasks, before they are undertaken. Know well how this taskis to be performed. Thou bringest medicine and healest diseases. Throughthy help, may we get healthykine, horses and people!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(पुरस्तात्) अग्रतः (युक्तः) योग्यः। उद्युक्तः (वह) प्राप्नुहि, गच्छ (जातवेदः) हे प्रसिद्धविद्य (अग्ने) विद्वन् (विद्धि) जानीहि (क्रियमाणम्) अनुष्ठीयमानं कर्म (यथा) येन प्रकारेण (इदम्) (त्वम्) (भिषक्) अ० २।९।३। चिकित्सकः (भेषजस्य) औषधस्य (असि) (कर्ता) अनुष्ठाता (त्वया) (गाम्) गोजातिम् (अश्वम्) अश्वजातिम् (पुरुषम्) पुरुषसमूहम् (सनेम) षण सम्भक्तौ सम्भजेम ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal