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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्याप्रतिहरणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
    1

    यां ते॑ च॒क्रुरा॒मे पात्रे॒ यां च॒क्रुर्मि॒श्रधा॑न्ये। आ॒मे मां॒से कृ॒त्यां यां च॒क्रुः पुनः॒ प्रति॑ हरामि॒ ताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । ते॒ । च॒क्रु: । आ॒मे । पात्रे॑ । याम् । च॒क्रु: । मि॒श्रऽधा॑न्ये । आ॒मे । मां॒से । कृ॒त्याम् । याम् । च॒क्रु: । पुन॑: । प्रति॑ । ह॒रा॒मि॒ । ताम् ॥३१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां ते चक्रुरामे पात्रे यां चक्रुर्मिश्रधान्ये। आमे मांसे कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । ते । चक्रु: । आमे । पात्रे । याम् । चक्रु: । मिश्रऽधान्ये । आमे । मांसे । कृत्याम् । याम् । चक्रु: । पुन: । प्रति । हरामि । ताम् ॥३१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 31; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे राजन्] (याम्) जिस [हिंसा] को (ते) तेरे (आमे) भोजन में, वा (पात्रे) पानी में (चक्रुः) उन्होंने [हिंसकों ने] किया है, (याम्) जिसको [तेरे] (मिश्रधान्ये) एकट्ठे किये धान्य में (चक्रुः) उन्होंने किया है। (याम्) जिस (कृत्याम्) हिंसा को [तेरे] (आमे) चलने में वा (मांसे) ज्ञान वा काल वा मांस में (चक्रुः) उन्होंने किया है, (ताम्) उसको (पुनः) अवश्य मैं (प्रति) उलटा (हरामि) मिटाता हूँ ॥१॥

    भावार्थ

    राजा दुष्कर्मी विघ्नकारियों को सदा दण्ड देता रहे ॥१॥ इस मन्त्र का मिलान अ० ४।१७।४। से करो ॥

    टिप्पणी

    १−(याम्) कृत्याम् (ते) तव (चक्रुः) कृतवन्तः शत्रवः (आमे) अम गतिभोजनादिषु−घञ्। भोजने (पात्रे) अ० ४।१७।४। पानीये। जलभोजने (मिश्रधान्ये) एकत्रीकृतान्ने (आमे) गमने (मांसे) अ० ४।१७।४। ज्ञाने काले मांसे वा (कृत्याम्) अ० ४।९।५। हिंसाम् (पुनः) अवधारणे (प्रति) प्रत्यक्षं प्रतिकूलं वा (हरामि) नाशयामि (ताम्) कृत्याम् ॥

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    विषय

    आमे पात्रे, मिश्रधान्ये, आमे मांसे

    पदार्थ

    १. (यां कृत्याम्) = जिस हिंसा के कार्य को (ते) = वे हमारे शत्रु (आमे पात्रे) = कच्चे पात्र में [विलेप लगाकार अपने शत्रुओं के घर दूध आदि बेच आने के द्वारा] (चक्रुः) = करते हैं। (याम्) = जिस हिंसा कार्य को (मिश्रधान्ये) = मिले-जुले अन्नों में विषैली बूटी के दाने मिलाकर (चक्रुः) = करते हैं। २. (आमे मांसे) = कच्चे फल के गूदे में [विषधारा छोड़ देने के द्वारा] यां कृत्याम्-जिस हिंसन-कार्य को चकु:-करते हैं, ताम् उस कृत्या को पुनः-फिर प्रतिहरामि-उन्हीं के प्रति प्राप्त कराता हूँ।

    भावार्थ

    घातक प्रयोग करनेवालों को उन्हीं घातक प्रयोगों द्वारा समाप्त कर दिया जाए। वे घातक प्रयोग ही उनके लिए दण्ड हों।

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    भाषार्थ

    [हे राष्ट्रपतिः] (ते१ आमे) तेरे गृह्य (पात्रे) खानपान, रक्षा तथा त्राण के साधन में (याम् कृत्याम्) जिस छेदन क्रिया को ( चक्रु:) शत्रुओं ने किया है, (याम्) जिसे (मिश्रधान्ये) मिश्रित-धान्यों में (चक्रु: ) किया है, (आमे) गृह्य (मांसे) फलों के गुद्दे में (याम्) जिस छेदन-क्रिया को (चक्रुः) किया है, (ताम् ) उस प्रकार की छेदन-क्रिया [हिंस्र क्रिया] को (पुनः) फिर (प्रति) प्रतिक्रिया रूप में (हरामि) शत्रु के प्रति मैं [सम्राट् ] ले-जाता हूँ, पहुँचाता हूँ, या वापस करता हूँ।]

    टिप्पणी

    [आमे=अमा गृहनाम (निघं० ३।४); आमे= गृह-सम्बन्धी गृह्य । पात्रे=पा पाने (भ्वादिः), पा रक्षणे (अदादिः), त्रैङ् पालने ( भ्वादिः ) । कृत्याम् = कृती छेदने (तुदादिः) तथा (रुधादिः) शत्रु जैसी कृत्या हिंस्रक्रिया करे उसके प्रति प्रतिक्रिया या प्रतीकार में उसी प्रकार की कृत्या हिंस्रक्रिया करनी चाहिए। मांसे =The fleshy part of fruit (आप्टे), अर्थात् फल का गुद्दा। [१. मन्त्रों में 'ते' द्वारा राष्ट्रपति के प्रति उक्ति और 'हरामि' द्वारा सम्राट् की उक्ति अभिप्रेत है (मन्त्र १२ में 'इन्द्र' है, सम्राट्)।]

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    विषय

    गुप्त हिंसा के प्रयोग करने वालों का दमन।

    भावार्थ

    (गाम्) जिस आपत्तिजनक कार्य को (ते) वे तेरे शत्रु लोग (आमे पात्रे) कच्चे बर्तनों में (चक्रुः) प्रयोग करते हैं (याम्) और जिस दुष्प्रयोग को (मिश्र-धान्ये) मिलेजुले धान्य, अन्नों में करते हैं और (यां कृत्यां) जिस विपत्तिजनक करतूत को वे (आमे मांसे) कच्चे मांस या फल के गूदे में (चक्रुः) करते हैं (ताम्) उसी दुःखदायी प्रयोग को दण्ड के रूप में (पुनः) फिर (प्रति-हरामि) उनको ही भुगतवा दूं। कच्चे पात्र में विष का लेप लगा कर अपने दुश्मनों के घर दूध आदि बेच आना, अनाज़ में विषैली बूंटी के दाने मिलाकर पर-राष्ट्र में बेच देना, कच्चे मांस या फल के गूदे में रोगकारी कीटों और विष की धारा छोड़ देना, इत्यादि जनघातक लीला करने वालों को वैसा ही दण्ड होना चाहिये।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १-१० अनुष्टुभः। ११ बुहती गर्भा। १२ पथ्याबृहती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Refutation of Evil

    Meaning

    O man, O ruler, whatever mischief, pollution or poison, negative elements of nature or antisocial elements of society have done in respect of food and water, and whatever such they have done in various food grains or in raw fleshy fruits and other foods, all that I counter, render ineffective, and return to the mischief maker. (In certain interpretations this mantra, in fact the whole sukta has been made to appear as a magic spell. But looked at carefully and scientifically, it reads like a report of the department of food control, water resources and vigilance.)

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    Subject

    Fatal Contrivance and taking it away

    Translation

    What fatal contrivance they have put for you in unbaked vessel, what they-have put in the mixed food-grains, and what they have put in raw meat, that I hereby take away and send it back again.

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    Translation

    O King! I return on them their harmful artificial device which they use to hurt you in unbaked dish, which they use in the mixed cerial preparation, which they in oury flesh.

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    Translation

    The deadly poison, the enemies mix in food, thy drinkable water, mingled meal, or administer it in the marrow of raw fruits the same do I remove.

    Footnote

    Thy refers to the king. Enemies are liable to mix poison in the food, water and meals of a king and his subjects. They mix the seeds of poisonous drugs in corn and fruits, and export them for consumption to another country. Such mischief-mongers should. Be punished. ‘I’ may refer to a physician or king.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(याम्) कृत्याम् (ते) तव (चक्रुः) कृतवन्तः शत्रवः (आमे) अम गतिभोजनादिषु−घञ्। भोजने (पात्रे) अ० ४।१७।४। पानीये। जलभोजने (मिश्रधान्ये) एकत्रीकृतान्ने (आमे) गमने (मांसे) अ० ४।१७।४। ज्ञाने काले मांसे वा (कृत्याम्) अ० ४।९।५। हिंसाम् (पुनः) अवधारणे (प्रति) प्रत्यक्षं प्रतिकूलं वा (हरामि) नाशयामि (ताम्) कृत्याम् ॥

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