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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 100 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 100/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गरुत्मान ऋषि देवता - वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विषनिवारण का उपाय
    1

    दे॒वा अ॑दुः॒ सूर्यो॒ द्यौर॑दात्पृथि॒व्यदात्। ति॒स्रः सर॑स्वतिरदुः॒ सचि॑त्ता विष॒दूष॑णम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वा: । अ॒दु॒: । सूर्य॑: । अ॒दा॒त् । द्यौ: । अ॒दा॒त् । पृ॒थि॒वी । अ॒दा॒त् । ति॒स्र: । सर॑स्वती: । अ॒दु॒: । सऽचि॑त्ता: । वि॒ष॒ऽदूष॑णम् ॥१००.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवा अदुः सूर्यो द्यौरदात्पृथिव्यदात्। तिस्रः सरस्वतिरदुः सचित्ता विषदूषणम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवा: । अदु: । सूर्य: । अदात् । द्यौ: । अदात् । पृथिवी । अदात् । तिस्र: । सरस्वती: । अदु: । सऽचित्ता: । विषऽदूषणम् ॥१००.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 100; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवाः) जलदाता मेघों ने (विषदूषणम्) विषनाशक ओषध रूप विज्ञान को (अदुः) दिया है, (सूर्यः) सूर्य ने (अदात्) दिया है, (द्यौः) अन्तरिक्ष ने (अदात्) दिया है, (पृथिवी) पृथिवी ने (अदात्) दिया है। (सचित्ताः) समान ज्ञानवाली (तिस्रः) तीनों (सरस्वतीः) विज्ञानवाली देवियों ने (अदुः) दिया है ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य मेघ सूर्य आदि पदार्थों और विद्याओं से यथावत् उपकार लेकर सुख प्राप्त करें ॥१॥ तीन देवियाँ यह हैं [अ० ५।१२।८] १−भारती, पोषण करनेवाली विद्या, २−इडा, स्तुतियोग्य नीति और ३−सरस्वती, विज्ञानवाली बुद्धि ॥

    टिप्पणी

    १−(देवाः) देवो दानाद्वा दीपनाद्वा द्योतनाद्वा द्युस्थानो भवतीति वा−निरु० ७।१५। जलप्रदा मेघाः (अदुः) दत्तवन्तः (सूर्यः) आदित्यः (अदात्) दत्तवान् (द्यौः) अन्तरिक्षम् (पृथिवी) भूमिः (तिस्रः) त्रिसंख्याकाः (सरस्वतीः) सरस्वत्यः। विज्ञानवत्यो विद्याः, भारती, इडा, सरस्वतीति−अ० ५।१२।८ (सवित्ताः) समानज्ञानाः (विषदूषणम्) विषनिवारकौषधरूपविज्ञानम् ॥

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    विषय

    विषदूषणम्

    पदार्थ

    १. (देवाः) = सब देव-ज्ञानी पुरुष (सचित्ता:) = समान मनवाले होते हुए (विषदूषणम् अदु:) = विषनाशक औषध देते हैं। (सूर्य:) = सबका प्रेरक आदित्य भी विषदूषण औषध (अदात्) = देता है। (द्यौः) = यह प्रकाशमय अन्तरिक्षलोक भी उस औषध को (अदात्) = दे। (पृथिवी अदात्) = यह भूमि देवता भी वह औषध दे। २. (तिस्त्र:) = तीनों (सरस्वती:) = 'इडा, भारती, सरस्वती' नामक देवताएँ इस विषनाशक औषध को अदुः देती हैं।

    भावार्थ

    सब समझदार देवपुरुष, तीनों लोक तथा 'इडा, भारती, सरस्वती' नामक तीनों देवताएँ हमारे जीवनों से ईर्ष्या-द्वेष आदि विषों को दूर करें।

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    भाषार्थ

    (देवाः अदुः) देवों ने दिया है, (सूर्य: अदात्) सूर्य ने दिया है, (द्योः अदात्) द्युलोक ने दिया है, (पृथिवी अदात्) पृथिवी ने दिया है, (तिस्रः सरस्वतीः) तीन सरस्वतियों ने (सचित्ताः) एकचित्त हो कर (अदुः) दिया है (विषदूषणम्) विषनिवारक औषध।

    टिप्पणी

    [देवा=साध्याः, ऋषयश्च। यथा "तेन देवाऽअयजन्त साध्याऽऋषयश्च ये" (यजु० ३१।९)। साध्याः है योगसाधनाओं से सम्पन्न योगी और ऋषयः हैं मन्त्रद्रष्टा या मन्त्रार्थद्रष्टा। ये दोनों मनोबल तथा अध्यात्म शक्ति के द्वारा रोगों का विनाश कर सकते हैं, और विष का भी। इन की इन शक्तियों को विदुषण-औषध कहा है। हस्त स्पर्श द्वारा ये महानुभाव रोगी में शक्ति का संचार कर उस के रोग का निवारण कर सकते हैं। हस्तस्पर्श चिकित्सा के लिये देखो (अथर्व० ३।११।२, ८); (अथर्व० २०।९६।७); (अथर्व० ४।१३।६,७) आदि। सूर्यः= सूर्य की सप्तविध रश्मियों द्वारा "रश्मिचिकित्सा" विषदूषण है। द्यौः= द्युलोक असंख्य नानाविध शक्तियों वाले सूर्यों से भरा हुआ है। इन की शक्तियों के प्रयोगों को विषदूषण आदि में उपयुक्त करने का निर्देश किया है। तिस्रः सरस्वतीः= सायणाचार्य के अनुसार ये तीन "त्रयी" रूपा हैं, ऋक्, यजुः, सामरूपा। यह त्रयी मानो एकचित्त होकर, परस्पर अविरोध रूप में विषदूषण के उपायों का ज्ञान देती है। पृथिवी= पृथिवी तो औषधों का भण्डार है, जिस द्वारा समग्र रोगों का उपचार हो रहा है। बिच्छू, भिड, सांप आदि ने जहां काटा है वहां मिट्टी के प्रलेप द्वारा भी विषदूषण किया जा सकता है]।

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    विषय

    विष चिकित्सा।

    भावार्थ

    (देवाः) विद्वान् लोग या दिव्य पदार्थ (विष-दूषणम्) विष का निवारण करने का उपाय (स चित्ताः) एक चित्त होकर (अदुः) सबको प्रदान करते हैं, क्योंकि (सूर्यः) सूर्य अपना प्रकाश (अदात्) देता है और उससे विषैले जन्तु नष्ट हो जाते हैं और विष का नाश होता है। (द्यौः) यह प्रकाशमान आकाश (अदात्) प्रकाश तथा स्वच्छ वायु प्रदान करता है वह भी विषका शमन करता है। (पृथिवी अदात्) पृथिवी भी अपनी शक्ति (अदात्) देती है जिससे मिट्टी का लेप भी विष का नाश करता है। और (तिस्रः सरस्वतीः) तीनों सरस्वतीएं, तीनों वेदवाणियां भी (अदुः) समानरूप से विष के नाश का उपदेश करती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गरुत्मान् ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Antidote to Poison

    Meaning

    Brilliancies of nature and the clouds gave, the sun gave, the heavenly regions gave, the earth gave, and three Sarasvatis, that is, Ila, Sarasvati, Bharati, i.e., the mystical, universal and local herbs and talents, of equal quality, have contributed and given the antidote to poison.

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    Subject

    Vanaspatih

    Translation

    The bounties of Nature have given; the sun has given; the sky has given; the earth has given; and the three ladies, Ida, Bharti, and Sarasvati in full accord have given this antidote to poison.

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    Translation

    The learned persons give method and medicine of removing poison, the Sun has given the medicine of treating poison with its light, the heavenly region through rain gives the medicine to treat poison, the earth provides medicine of treating poison and the three vedic speeches accomplished with Knowledge give the method and knowledge of treating poison.

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    Translation

    The learned, with full accord, give us the antidote to poison. The sun sheds his luster and kills poisonous germs. Heaven gives pure air which kills poison, Earth lends its power to eradicate poison. The three kinds of Vedic knowledge instruct us how to undo the effect of poison.

    Footnote

    The dust besmeared on the body nullifies the effect of the poison. Three kinds: The physical, moral and spiritual teachings of the Vedas.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(देवाः) देवो दानाद्वा दीपनाद्वा द्योतनाद्वा द्युस्थानो भवतीति वा−निरु० ७।१५। जलप्रदा मेघाः (अदुः) दत्तवन्तः (सूर्यः) आदित्यः (अदात्) दत्तवान् (द्यौः) अन्तरिक्षम् (पृथिवी) भूमिः (तिस्रः) त्रिसंख्याकाः (सरस्वतीः) सरस्वत्यः। विज्ञानवत्यो विद्याः, भारती, इडा, सरस्वतीति−अ० ५।१२।८ (सवित्ताः) समानज्ञानाः (विषदूषणम्) विषनिवारकौषधरूपविज्ञानम् ॥

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