Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 103 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 103/ मन्त्र 1
    ऋषिः - उच्छोचन देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    1

    सं॒दानं॑ वो॒ बृह॒स्पतिः॑ सं॒दानं॑ सवि॒ता क॑रत्। सं॒दानं॑ मि॒त्रो अ॑र्य॒मा सं॒दानं॒ भगो॑ अ॒श्विना॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒म्ऽदान॑म् । व॒: । बृह॒स्पति॑: । स॒म्ऽदान॑म् । स॒वि॒ता । क॒र॒त् । स॒म्ऽदान॑म् । मि॒त्र: । अ॒र्य॒मा । स॒म्ऽदान॑म् । भग॑: । अ॒श्विना॑ ॥१०३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    संदानं वो बृहस्पतिः संदानं सविता करत्। संदानं मित्रो अर्यमा संदानं भगो अश्विना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्ऽदानम् । व: । बृहस्पति: । सम्ऽदानम् । सविता । करत् । सम्ऽदानम् । मित्र: । अर्यमा । सम्ऽदानम् । भग: । अश्विना ॥१०३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 103; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं के हराने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे शत्रु लोगो !] (बृहस्पतिः) बड़े-बड़े सैनिकों का स्वामी (वः) तुम्हारा (संदानम्) खण्डन, (सविता) प्रेरणा करनेवाला सेनाध्यक्ष (सन्दानम्) तुम्हारा बन्धन, (मित्रः) सब का मित्र (अर्यमा) न्यायाधीश (सन्दानम्) तुम्हारा खण्डन, (अश्विना) सूर्य चन्द्रमा के समान नियमवाला (भगः) ऐश्वर्यवान् राजा (सन्दानम्) तुम्हारा बन्धन (करत्) करे ॥१॥

    भावार्थ

    रणक्षेत्र में सब सेनापति लोग अपनी-अपनी सेना से शत्रुओं को मारें और बाँधें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(सन्दानम्) दो अवखण्डने−ल्युट्। सम्यग् बन्धनं खण्डनं वा (वः) युष्माकम् (बृहस्पतिः) बृहतां सैनिकानां स्वामी, सेनापतिः (सविता) सर्वप्रेरकः। सेनाध्यक्षः (करत्) कुर्य्यात् (मित्रः) सर्वसखा (अर्यमा) अ० ३।१४।२। न्यायाधीशः (भगः) ऐश्वर्यवान् (अश्विना) सूर्यचन्द्रवद् नियमवान् पुरुषः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    शत्रु-नियमन

    पदार्थ

    १. हे शत्रुओ! (बृहस्पति:) = ज्ञान का स्वामी प्रभु (वः) = तुम्हारा (सन्दानम्) = बन्धन करे। सविता सर्वप्रेरक प्रभु (सन्दानं करत्) = तुम्हें बन्धन में डाले। ज्ञान के स्वामी, प्रेरक प्रभु से उत्तम प्रेरणा प्राप्त करके स्वाध्याय में निरत हम लोग काम-क्रोध आदि को वश में करनेवाले हों। २. (मित्र:) = सबके प्रति स्नेहवाला, (अर्यमा) = [अरीन् यच्छति] ईर्ष्या-द्वेष आदि का नियमन करनेवाला प्रभु (सन्दानम्) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं का बन्धन करे। हम सबके प्रति स्नेह की साधना करते हुए शत्रुओं का नियमन करनेवाले बनें। (भगः) = वह ऐश्वर्य का पुञ्ज प्रभु (सन्दानम्) = शत्रुओं का बन्धन करे। भग का स्मरण करते हुए हम सब ऐश्वयों के स्वामी प्रभु को जानें और इसप्रकार काम क्रोध आदि को वशीभूत करें तथा विषयों में फंसने से बचें। (अश्विना) = प्राणापान शत्रुओं का बन्धन करें। प्राणसाधना हमें काम-क्रोध आदि को वश में करने में सहायक हो।

    भावार्थ

    हम प्रभु को 'बृहस्पति, सविता, मित्र, अर्यमा व भग' के रूप में स्मरण करते हुए तथा प्राणसाधना में प्रवृत्त होकर काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नियमन करेंगी।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (व:) हे शत्रुओं ! तुम्हारा (संदानम्) बन्धन (बृहस्पतिः) साम्राज्य की बड़ी सेना का पति (करत्) करे, (संदानम्) बन्धन (सविता) सेना का प्रेरक सेनाध्यक्ष करे (मित्रः) सब का मित्रभूत (अर्यमा) न्यायाधीश (सन्दानम्) बन्धन करे, (भगः) कोषाध्यक्ष तथा (अश्विना) दो अश्वी (संदानम्) बन्धन करें।

    टिप्पणी

    [युद्ध में परास्त हुए शत्रुओं का बन्धन विजयी राज्य का कोई भी अधिकारी निज आज्ञा द्वारा कर सकता है। अश्विनौ दो अधिकारी हैं अश्वारोहियों के तथा रथारोहियों के अश्वों के। संदानम्= "संपूर्वो द्यतिर्बन्धने वर्तते" (सायण)]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राष्ट्र-रक्षा और शत्रु दमन।

    भावार्थ

    (बृहस्पतिः) बृहस्पति (वः) तुम्हारा (संदानम्) बन्धन (करत) करे, (सविता संदानं करत्) सविता तुम्हारा बन्धन करे, (अर्यमा संदानम्) अर्यमा तुम्हारा बन्धन करे, (भगः अश्विनौ) भग और अश्वी दोनों तुम्हारा बन्धन करें। बृहस्पति, सविता, मित्र, अर्यमा, भग, अश्वी ये सब राष्ट्र के अधिकारी लोग हैं। संग्राम छिड़ जाने पर सभी अधिकारी शत्रु के आदमियों पर विशेष विशेष बन्धन रोक टोक रक्खें, उन्हें पूरा पूरा वश में रक्खें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उच्छोचन ऋषिः। इन्द्राग्नी उत बहवो देवताः। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Conquest of Enemies

    Meaning

    O enemies of life, spirit and the nation, may Brhaspati, lord of the expansive universe, the sagely scholar of the Vedas and the commander of total forces of the nation control, bind and eliminate you all. Let Savita, lord of life and life energy, bind and deplete you of your power. Let Mitra, spirit of love, and Aryama, lord of judgement, bind you in fetters and deal with you. Let the Ashvins, the people, and Bhaga, lord all potent of prosperity and nation’s power, bind, control and eliminate you.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject

    Brhaspati etc.

    Translation

    May the Lord supreme bind you; may the impeller Lord bind you. May the friendly Lord and the Lord of justice bind; may the Lord of wealth and glory (bhaga) and the twins divine bind you fast.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let Brihaspati, the learned statesman bind you fast, O enemies! let Savitar, the incharge of production fasten you, let Mitra, the allied King and Aryaman, the incharge of justice bind you, let Bhaga, the powerful commanding officer and Asvinau the ruler and Prime minister bind you.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O foemen, may the Commander of big forces, capture ye. May the General urging his soldiers to attack, capture ye. May the justice-loving head of the army, the friend of all capture ye. May the prosperous king, law-abiding like the Sun and Moon capture ye!.

    Footnote

    Capture ye: Take the enemies as prisoners of war. Some commentators interpret Brihaspati, Savita, Mitra, Aryamā, Bhaga and Ashwins as different officials of the state. Griffith interprets them as different deities.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(सन्दानम्) दो अवखण्डने−ल्युट्। सम्यग् बन्धनं खण्डनं वा (वः) युष्माकम् (बृहस्पतिः) बृहतां सैनिकानां स्वामी, सेनापतिः (सविता) सर्वप्रेरकः। सेनाध्यक्षः (करत्) कुर्य्यात् (मित्रः) सर्वसखा (अर्यमा) अ० ३।१४।२। न्यायाधीशः (भगः) ऐश्वर्यवान् (अश्विना) सूर्यचन्द्रवद् नियमवान् पुरुषः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top