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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 104 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 104/ मन्त्र 1
    ऋषिः - प्रशोचन देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    1

    आ॒दाने॑न सं॒दाने॑ना॒मित्रा॒ना द्या॑मसि। अ॑पा॒ना ये चै॑षां प्रा॒णा असु॒नासू॒न्त्सम॑च्छिदन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒ऽदाने॑न । स॒म्ऽदाने॑न । अ॒मित्रा॑न् । आ । द्या॒म॒सि॒ । अ॒पा॒ना: । ये । च॒ । ए॒षा॒म् । प्रा॒णा: । असु॑ना । असू॑न् । सम् । अ॒च्छि॒द॒न् ॥१०४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदानेन संदानेनामित्राना द्यामसि। अपाना ये चैषां प्राणा असुनासून्त्समच्छिदन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽदानेन । सम्ऽदानेन । अमित्रान् । आ । द्यामसि । अपाना: । ये । च । एषाम् । प्राणा: । असुना । असून् । सम् । अच्छिदन् ॥१०४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 104; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं के हराने का उपदेश।

    पदार्थ

    (आदानेन) आकर्षणपाश से और (सन्दानेन) बन्धनपाश से (अमित्रान्) अपने शत्रुओं को (आ द्यामसि) हम बाँधते हैं। (च) और (एषाम्) इनके (ये) जो (अपानाः) अपान वायु और (प्राणाः) प्राण वायु हैं। (असून्) उनके प्राणों को (असुना) अपनी बुद्धि से (सम् अच्छिदन्) उन [हमारे वीरों] ने छिन्न-भिन्न कर दिया है ॥१॥

    भावार्थ

    शूरवीर धावा करके अपने अस्त्र-शस्त्रों से शत्रुओं को जीवन से हताश करके निर्बल करें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(आदानेन) आदीयते आबध्यते अनेन। आकर्षणपाशेन (सन्दानेन) बन्धनपाशेन (अमित्रान्) शत्रून् (आद्यामसि) बध्नीमः (अपानाः) बहिर्गमनशीलाः श्वासवृत्तयः (ये) (च) (एषाम्) शत्रूणाम् (प्राणाः) अन्तर्गमनाः श्वासाः (असुना) स्वप्रज्ञया−निघ० ३।९। (असून्) शत्रुप्राणान् (सम्) सम्यक् (अच्छिदन्) छिदिर् द्वैधीकरणे। छिन्नवन्तः शूराः ॥

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    विषय

    आदान-सन्दान

    पदार्थ

    १. (आदानेन) = [आदीयते आबध्यते अनेन इति] पाश-यन्त्रविशेष से (सन्दानेन) = बन्धन के द्वारा (अमित्रान्) = शत्रुओं को (आद्यामसि) = हम समन्तात् बद्ध करते हैं। २. (ये च) = और जो (एषाम्) = इनके (अपाना: प्राणा:) = अन्तर्मुख प्राणवृत्तिवाले और बहिर्मुख श्वासवृत्तिवाले (असून्) = प्राण हैं, उन्हें (असुना समच्छिदन) = प्राण से काट डालते हैं-गलगत पाशयन्त्र से प्राणापान की गति को रोककर उन्हें नष्ट कर डालते हैं।

    भावार्थ

    गलगत पाशयन्त्र द्वारा हम शत्रुओं के प्राणों का उच्छेद करते हैं।

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    भाषार्थ

    (आदानेन) पकड़ने [arrest] द्वारा, (संदानेन) और बान्धने [Binding] द्वारा (अमित्रान्) शत्रुओं को (आ द्यामसि) हम [विजेता] बान्ध लेते हैं। (च) और (एषाम्) इन अमित्रों के (ये) जो (अपाना: प्राणा:) प्राणापान हैं, श्वासप्रश्वास हैं (तान् असून) उन प्राणापानों को (असुना) प्राणवान् अर्थात् बलवान् वधक के द्वारा (समच्छिदन्) हमने काट दिया है [गले काट कर उन के श्वास प्रश्वासों की गति रोक दी है]।

    टिप्पणी

    [युद्धस्थल में शत्रुओं को पकड़ कर उन के सामयिक बन्धन कर दिये हैं, तत्पश्चात् प्रधानमन्त्री की आज्ञा द्वारा उन्हें स्थिर१ रूप में बान्ध दिया है। असुना= लक्षणा द्वारा असुना का अर्थ है असुमता, प्राणवता, बलवता पुरुषेण, वधकेन]। [१. बन्धीकृत कर दिया है, जेल में बन्द कर दिया है।]

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    विषय

    शत्रुओं का पराजय और बन्धन।

    भावार्थ

    हम वीर लोग (आ-दानेन) शत्रु को पकड़ लेने के उपाय और (सं-दानेन) बाँध लेने के उपाय से (अमित्रान्) शत्रु लोगों को (आ द्यामसि) अपने वश कर लेते हैं। और वीर भट (ये च) जो भी (एषाम्) इनके (अपानाः) अपान और (प्राणाः) प्राण हैं उन (सब असून्) प्राणवृत्तियों को (असुना) मुख्य जीवनशक्ति के द्वारा (समच्छिदन्) काट डालें। अथवा (ये च एषां प्राणाः) जो इन शत्रुओं के प्राणरूप मुख्य नेता लोग और (अपानाः) अपानरूप निम्न पदाधिकारी हैं उन सबको (आ द्यामसि) हम वश करलें और जिस प्रकार (असुना) मुख्य प्राण से प्राणित (असून्) शेष प्राण इन्द्रियगण को काट कर विनाश कर दिया जाता है उसी प्रकार इन मुख्य लोगों को भी (सम् अच्छिदन्) काट गिराया जाय। अर्थात् मुख्य मुख्य नेता लोगों को पकड़ कर कैद में डाल दिया जाय और शेषों को काट डाला जाय।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रशोचन ऋषिः। इन्द्राग्नी उत बहवो देवताः। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Conquest of Enemies

    Meaning

    By taking over and with control we hold up the enemies. Their prana and apana energies, we dissever, and we devitalise their life energy with life energy itself. (We pay the enemies in their own coin by depleting their energies, powers and forces.)

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    Subject

    Indrani : Soma : Indra

    Translation

    With fetters and ropes we bind up our foes. In-breaths and out- breaths of them, I cut off their lives with life.

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    Translation

    I, the King bind our enemies with a bond that binds them close and holds them fast and I dissever their breaths and respiration and their lives from life.

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    Translation

    We bind our foemen by capturing and subduing them. I dissever their breath and respiration. I cut to pieces their organs with my wisdom.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(आदानेन) आदीयते आबध्यते अनेन। आकर्षणपाशेन (सन्दानेन) बन्धनपाशेन (अमित्रान्) शत्रून् (आद्यामसि) बध्नीमः (अपानाः) बहिर्गमनशीलाः श्वासवृत्तयः (ये) (च) (एषाम्) शत्रूणाम् (प्राणाः) अन्तर्गमनाः श्वासाः (असुना) स्वप्रज्ञया−निघ० ३।९। (असून्) शत्रुप्राणान् (सम्) सम्यक् (अच्छिदन्) छिदिर् द्वैधीकरणे। छिन्नवन्तः शूराः ॥

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