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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 115 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 115/ मन्त्र 1
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - विश्वे देवाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापनाशन सूक्त
    1

    यद्वि॒द्वांसो॒ यदवि॑द्वांस॒ एनां॑सि चकृ॒मा व॒यम्। यू॒यं न॒स्तस्मा॑न्मुञ्चत॒ विश्वे॑ देवाः सजोषसः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । वि॒द्वांस॑: । यत् । अवि॑द्वांस: । एनां॑सि । च॒कृ॒म । व॒यम् । यू॒यम् । न॒: । तस्मा॑त् । मु॒ञ्च॒त॒ । विश्वे॑ ।दे॒वा॒: । स॒ऽजो॒ष॒स॒: ॥११५.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्विद्वांसो यदविद्वांस एनांसि चकृमा वयम्। यूयं नस्तस्मान्मुञ्चत विश्वे देवाः सजोषसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । विद्वांस: । यत् । अविद्वांस: । एनांसि । चकृम । वयम् । यूयम् । न: । तस्मात् । मुञ्चत । विश्वे ।देवा: । सऽजोषस: ॥११५.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 115; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पाप से मुक्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) यदि (विद्वांसः) जानते हुए, (यत्) यदि (अविद्वांसः) न जानते हुए (वयम्) हम ने (एनांसि) पाप कर्म (चकृम) किये हैं। (विश्वे देवाः) हे सब विद्वानो ! (सजोषसः) समान प्रीति युक्त (यूयम्) तुम (नः) हमें (तस्मात्) उस [अपराध] से (मुञ्चत) मुक्त करो ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य सब प्रकार के पापों को छोड़ कर सदा उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(यत्) यदि (विद्वांसः) जानन्तः (यत्) यदि (अविद्वांसः) अजानानाः (एनांसि) अ० २।१०।८। अपराधान् (चकृम) कृतवन्तः (वयम्) (यूयम्) (नः) अस्मान् (तस्मात्) अपराधात् (मुञ्चत) (विश्वे) (देवाः) (सजोषसः) अ० ३।२२।१। समानप्रीतयः ॥

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    विषय

    जाने व अनजाने हो जानेवाले पाप

    पदार्थ

    २. (यत्) = जिस पाप-निमित्त को (विद्वांसः) = जानते हुए और (यत्) = जिस पापनिमित्त को (अविद्वांसः) = न जानते हुए, अर्थात् ज्ञान से वा अज्ञान से (वयम्) = हम (एनासि) = जिन भी पापों को (चकृम) = कर बैठते हैं, हे (विश्वेदेवा:) = देववृत्ति के सब पुरुषो! (यूयम्) = आप (सजोषस:) = समानरूप से प्रीतिबाले होते हुए (न:) = हमें (तस्मात् मुञ्चत) = उस पाप से छुड़ाइए।

    भावार्थ

    देवों से उचित प्रेरणा प्राप्त करते हुए हम अशुभ कर्मों से बचें।

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    भाषार्थ

    (यद्) जिस पाप को (विद्वांसः) जानते हुए, (यद्) जिस पाप को (अबिद्विांसः) न जानते हुए, (वयम्) हम ने (चकृम) किया है, (एनांसि) उन सब पापों को (विश्वे देवाः) हे सब देवों ! (सजोषस:) हमारे साथ प्रीति करने वाले (यूयम्) तुम, (नः) हमें (तस्मात्) उस पाप से (मुञ्चत) छुड़ा दो।

    टिप्पणी

    [विश्वे देवा:= देखो सूक्त ११४ मन्त्र ३ की टिप्पणी। मुञ्चत= हमें सदुपदेशों द्वारा भविष्य में ऐसे पापों के करने से बचाओ।]

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    विषय

    पाप मोचन और मोक्ष।

    भावार्थ

    (वयम्) हम (यद्) जब जब (विद्वांसः) ज्ञानवान् होकर या (अविद्वांसः) विना जाने हुए (एनांसि) अपराध या पापकर्म (चकृम) करें, हे (विश्वे देवाः) समस्त विद्वान् पुरुषों ! आप लोग (स-जोषसः) एक मत सप्रेम होकर (तस्मात्) उस पाप से (नः) हमें (मुञ्चत) मुक्त कराओ, छुड़ाओ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। विश्वे देवा देवता:। अनुष्टुप्॥ तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Sin

    Meaning

    O Vishvedevas, sages and learned people, whatever sin and evil we have committed whether consciously or unconsciously, pray release us from that sin and evil, united as you are with us in harmony.

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    Subject

    Visvedevah

    Translation

    Knowing or unknowing, whatever sins we have committed, O all the enlightened ones, may you free us from that with friendly unanimity.

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    Translation

    Whatever wrong we commit or have desire to commit ignorantly or knowingly do ye keep away, from us, O learned men! in one accord.

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    Translation

    Whatever sin we wittingly or in our ignorance have done, do ye deliver us there from. O all ye learned persons, of one accord.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(यत्) यदि (विद्वांसः) जानन्तः (यत्) यदि (अविद्वांसः) अजानानाः (एनांसि) अ० २।१०।८। अपराधान् (चकृम) कृतवन्तः (वयम्) (यूयम्) (नः) अस्मान् (तस्मात्) अपराधात् (मुञ्चत) (विश्वे) (देवाः) (सजोषसः) अ० ३।२२।१। समानप्रीतयः ॥

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