अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 128/ मन्त्र 1
ऋषिः - अथर्वाङ्गिरा
देवता - सोमः, शकधूमः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राजा सूक्त
2
श॑क॒धूमं॒ नक्ष॑त्राणि॒ यद्राजा॑न॒मकु॑र्वत। भ॑द्रा॒हम॑स्मै॒ प्राय॑च्छन्नि॒दं रा॒ष्ट्रमसा॒दिति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठश॒क॒ऽधूम॑म् । नक्ष॑त्राणि । यत् । राजा॑नम् । अकु॑र्वत । भ॒द्र॒ऽअ॒हम् । अ॒स्मै॒ । प्र । अ॒य॒च्छ॒न् । इ॒दम् ।रा॒ष्ट्रम् । असा॑त् । इति॑ ॥१२८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
शकधूमं नक्षत्राणि यद्राजानमकुर्वत। भद्राहमस्मै प्रायच्छन्निदं राष्ट्रमसादिति ॥
स्वर रहित पद पाठशकऽधूमम् । नक्षत्राणि । यत् । राजानम् । अकुर्वत । भद्रऽअहम् । अस्मै । प्र । अयच्छन् । इदम् ।राष्ट्रम् । असात् । इति ॥१२८.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आनन्द पाने का उपदेश।
पदार्थ
(यत्) जिस कारण से (नक्षत्राणि) चलनेवाले नक्षत्रों ने (शकधूमम्) समर्थ [सूर्य आदि] लोकों के कँपानेवाले परमेश्वर को (राजानम्) राजा (अकुर्वत) बनाया, और (अस्मै) उसी के लिये (भद्राहम्) शुभ दिन का (प्र अयच्छन्) अच्छे प्रकार समर्पण किया, (इति) इसी कारण से (इदम्) यह जगत् (राष्ट्रम्) उस का राज्य (असात्) होवे ॥१॥
भावार्थ
जिस परमात्मा के वश में सूर्य आदि लोक और सब नक्षत्र हैं, वही जगत्स्वामी हमें सदा आनन्द देता रहे ॥१॥
टिप्पणी
१−(शकधूमम्) शक्लृ शक्तौ−पचाद्यच्+धूञ् कम्पने−मक्। शकानां समर्थानां सूर्यादिलोकानां कम्पकं परमेश्वरम् (नक्षत्राणि) गमनशीलास्तारागणाः (यत्) यतः (राजानम्) शासकम् (अकुर्वत) कृतवन्ति (भद्राहम्) राजाहःसखिभ्यष्टच्। पा० ५।४।९१। भद्र+अहन्−टच्। पुण्याहं शुभदिनम् (अस्मै) परमेश्वराय (प्र) प्रकर्षेण (अयच्छन्) समर्पितवन्ति (इदम्) जगत् (राष्ट्रम्) तस्य राज्यम् (असात्) भवेत् (इति) हेतोः ॥
विषय
'शकधूम' को राजा बनाना
पदार्थ
१. (नक्षत्राणि) = [न क्षत्र त्र] क्षतों से अपना रक्षण न कर सकनेवाली प्रजाएँ (यत्) = जब (शकधूमम्) = शक्तिशाली बनकर शत्रुओं को कम्पित करनेवाले व्यक्ति को (राजानम् अकुर्वत) = राजा बनाती है, तब (अस्मै इदं राष्ट्र प्रायच्छन्) = इसके लिए इस राष्ट्र को सौंप देती हैं, (भद्राहम् असात् इति) = इस कारण से सौंप देती हैं कि सब प्रजाओं के लिए अब दिन मंगलमय हों।
भावार्थ
प्रजा राजा को चुने। उस व्यक्ति को इस पद के लिए चुने जोकि 'शकधूम' हो। चुनने के पश्चात् उसे सर्वाधिकार सौंप दे, जिससे वह अपने रक्षणात्मक कार्य को सम्यक् रूप से कर सके। सीमित शक्तिवाले राजा के लिए यह सम्भव नहीं होता। राजा को सर्वाधिकार सौंप देने पर ही प्रजा सुखमय दिनों का अनुभव करती है।
भाषार्थ
(नक्षत्राणि) नक्षत्रों ने (यद्) जो (शकधूमम्) शक्तिशाली धूम को (राजानम्) अपना राजा (अकुर्वत्) किया तो उन्होंने (अस्मै) इस योगी के लिये (भद्राहम्) सुखदायक और कल्याणकारी दिन मानो (प्रायच्छन्) प्रदान किया, ताकि (इदम्) यह (राष्ट्रम्) राष्ट्र भी (भद्राहम्१) सुखदायक तथा कल्याणकारी दिनों वाला (असात् इति) हो जाय, इसलिये।
टिप्पणी
[मन्त्र का विषय योग साधना का है। यथा “नीहारधूमार्कानलानिलानां खद्योतविद्युत्स्फटिकशशीनाम्। एतानि रूपाणि पुरःसराणि ब्रह्मण्यभिव्यक्तिकराणि योगे॥" (श्वेता उप० अ० २ खण्ड ११)। कोहरा, धूम, सूर्य, अग्नि, वायु, तारे, विद्युत्, स्फटिक, चन्द्रमा,–ये रूप ब्रह्म की अभिव्यक्ति कराने के पूर्वरूप हैं। इनमें खद्योत अर्थात् आकाश के द्युतिमात् तारे नक्षत्र कहे हैं। इन्होंने "धूम" को मित्र राजा माना, क्योंकि इस धूम के प्रकट हो जाने के पश्चात् ही शेष रूप सूर्य आदि प्रकट होते हैं। इन्होंने नीहार अर्थात् कोहरे को राजा नहीं माना। कोहरा तो चक्षु के दबाने पर भी प्रकट हो जाता है। अतः यह योगाभ्यास में अङ्ग नहीं। जिस योगाभ्यासी को "धूम" प्रकट हो जाता है मानो उसके लिये भद्र दिन का उदय हुआ, और उसके राष्ट्र के लिये भी भद्र दिन का उदय हुआ। यह "धूम" "शक" है शक्तिशाली है, क्योंकि अन्य आध्यात्मिक सूर्य आदि के प्रकटीकरण में यह शक्ति रखता है। भद्राहम्= भद्र' च तत् अहश्चेति भद्राहः, समासान्तः टच् (अष्टा० ५।४।९१)।] [१. भदि कल्याणे सुखे च (भ्वादिः)]
विषय
राजा का राज्यारोहण।
भावार्थ
(नक्षत्राणि) नक्षत्र जिस प्रकार (राजानम्) चन्द्र को अपने में मुख्य बना लेते हैं उसी प्रकार (नक्षत्राणि) नक्षत्र, निर्वीर्य निर्बल प्रजाएं (शकधूमम्) अपनी शक्ति से सब को कंपाने वाले पुरुष को (राजानं) राजा (अकुर्वत) बना लेते हैं, और (अस्मै) उसको (भद्राहम्) ऐसा कल्याणकारी वह शुभ दिवस (प्रायच्छन्) प्रदान करते हैं जिसमें कि (इदम्) यह (राष्ट्रम्) राष्ट्र उसका ही (असात्) हो जाय (इति) ऐसा घोषित करते हैं। अथवा—(इदम् राष्ट्रम् अस्मै प्रायच्छन् इति भद्राहम् असात्) वे इस राष्ट्र को उसको सौप देते हैं इस कारण वह दिन प्रजा के लिये मंगलकारी हो जाता है। अर्थात् प्रजा अपने में शक्तिशाली को राजा बनावे और शुभ दिन में उसका राज्याभिषेक करें। अथवा उसके राज्यारोहण के दिवस को पुण्य मानें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। नक्षत्राणि राजा चन्द्रः सोमः शकधूमश्च देवताः। १-३ अनुष्टुभः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Ruler’s Election
Meaning
The day when the planets accepted the star as the ruler and made him the wielder of power so that the system could be a Rashtra, a self-controlled self- governing social order, that was the auspicious day for them, created for them and given unto themselves and to the ruling star. (This same is the way the ruler of the Rashtra is elected and appointed, the way the constitution is made and adopted.)
Subject
Saka dhumah - Cow dung smoke - Somah
Translation
When the stars (naksatrani) made the cow-dung-smoke (Saka dhumam) the king (of weather forecasting), they gave an auspicious day to it, so that will be his domain (rastra).
Translation
[N.B. In this hymn by the description of Skakdhuma, star which is concerned with weather the King has been praised for the prosperity of the subjects.] As the stars and constellations regard Shakadhuma as the controller of the weather, so the subject of dominion makes Shakadhuma, the king to govern it. Let this Shakadhuma star give us favoring weather and let the King give us good weather so that this dominion be his ruled state.
Translation
Just as heavenly bodies select the Moon as their king, so do the power-less subjects elect as their king a person, who makes all quake with his might. They bring him the auspicious day of coronation, on which they declare that domain to be his.
Footnote
Griffith considers Sakadhama to be an old Brahmin, who, as supposed to have the power of foretelling the weather, was naturally regarded as its controller. This interpretation, is inacceptable as it favours of history of which the Vedas are free. The word means a person who makes all quake with his might. Pt. Khem Karan Das Trivedi interprets Sakadhama as God, Who makes powerful planets like the Sun tremble with His might.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(शकधूमम्) शक्लृ शक्तौ−पचाद्यच्+धूञ् कम्पने−मक्। शकानां समर्थानां सूर्यादिलोकानां कम्पकं परमेश्वरम् (नक्षत्राणि) गमनशीलास्तारागणाः (यत्) यतः (राजानम्) शासकम् (अकुर्वत) कृतवन्ति (भद्राहम्) राजाहःसखिभ्यष्टच्। पा० ५।४।९१। भद्र+अहन्−टच्। पुण्याहं शुभदिनम् (अस्मै) परमेश्वराय (प्र) प्रकर्षेण (अयच्छन्) समर्पितवन्ति (इदम्) जगत् (राष्ट्रम्) तस्य राज्यम् (असात्) भवेत् (इति) हेतोः ॥
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