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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 134 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 134/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शुक्र देवता - वज्रः छन्दः - परानुष्टुप्त्रिष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    1

    अ॒यं वज्र॑स्तर्पयतामृ॒तस्या॑वास्य रा॒ष्ट्रमप॑ हन्तु जीवि॒तम्। शृ॒णातु॑ ग्री॒वाः प्र शृ॑णातू॒ष्णिहा॑ वृ॒त्रस्ये॑व॒ शची॒पतिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । वज्र॑: । त॒र्प॒य॒ता॒म् । ऋ॒तस्य॑ । अव॑ । अ॒स्य॒ । रा॒ष्ट्रम् । अप॑ । ह॒न्तु॒ । जी॒वि॒तम् । शृ॒णातु॑ । ग्री॒वा: । प्र । शृ॒णा॒तु॒ । उ॒ष्णिहा॑ । वृ॒त्रस्य॑ऽइव । शची॒ऽपति॑: ॥१३४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं वज्रस्तर्पयतामृतस्यावास्य राष्ट्रमप हन्तु जीवितम्। शृणातु ग्रीवाः प्र शृणातूष्णिहा वृत्रस्येव शचीपतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । वज्र: । तर्पयताम् । ऋतस्य । अव । अस्य । राष्ट्रम् । अप । हन्तु । जीवितम् । शृणातु । ग्रीवा: । प्र । शृणातु । उष्णिहा । वृत्रस्यऽइव । शचीऽपति: ॥१३४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 134; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं के शासन का उपदेश।

    पदार्थ

    (अयम्) यह (वज्रः) वज्र [दण्ड] (ऋतस्य) सत्य धर्म की (तर्पयताम्) तृप्ति करे, (अस्य) इस [शत्रु] के (राष्ट्रम्) राज्य को (अव=अवहत्य) नाश करके [उसके] (जीवितम्) जीवन को (अप हन्तु) नाश कर देवे, (ग्रीवाः) गले की नाड़ियों को (शृणातु) काटे और (उष्णिहा) गुद्दी की नाड़ियों को (प्रशृणातु) तोड़ डाले, (इव) जैसे (शचीपतिः) कर्म्मों वा बुद्धियों का पति [मनुष्य] (वृत्रस्य) अपने शत्रु के [ग्रीव आदि] को ॥१॥

    भावार्थ

    राजा यथावत् शासन से शत्रुओं को नाश करके प्रजापालन करे ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(अयम्) (वज्रः) दण्डः। शासनम् (तर्पयताम्) तृप्तिं कुर्यात् (ऋतस्य) सत्यस्य धर्मस्य (अव) अवहत्य (अस्य) शत्रोः (राष्ट्रम्) राज्यम् (अपहन्तु) विनाशयतु (जीवितम्) जीवनम् (शृणातु) हिनस्तु (ग्रीवाः) अ० २।३३।२। कन्धरावयवान् (प्रशृणातु) प्रच्छिनत्तु (उष्णिहा) अ० २।३३।२। बहुवचनस्यैकवचनम्। उत्स्नाता धमनीः (वृत्रस्य) शत्रोः (इव) यथा (शचीपतिः) अ० ३।१०।१२। कर्मणां प्रज्ञानां वा पालकः पुरुषः ॥

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    विषय

    वन का प्रयोजन

    पदार्थ

    १. (अयं वन:) = यह पापों का वर्जन करनेवाला दण्ड (ऋतस्य तर्पयताम्) = सत्य-व्यवस्था का प्रीणन करे और (अस्य) = इस शत्रुभूत राजा के (राष्ट्रम् अवहन्तु) = राष्ट्र को सुदूर नष्ट करे, (जीवितम् अप) = [हन्तु]-इसके जीवन को भी नष्ट करनेवाला हो। २. (इव) = जैसे (शचीपतिः) = शक्तियों का स्वामी सूर्य (वृत्रस्य) = आच्छादक मेघ के आवरण को छिन्न-भिन्न कर देता है, उसी प्रकार यह वज दुष्ट पुरुषों की (ग्रीवाः शृणातु) = गर्दनों को काट डाले और (उष्णिहा: प्रशृणातु) = गुद्दी की नाड़ियों को भी काट दे।

    भावार्थ

    हम शक्तिशाली बनें। हमारा वज्र शत्रुभूत राजा के राष्ट्र व जीवन को नष्ट करनेवाला हो। यह वज्र ऋत का प्रीणन करे।


     

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    भाषार्थ

    (अयम् वज्रः) यह वज्र (ऋतस्य राष्ट्रम्) सत्य पर आश्रित राष्ट्र को (तर्पयताम्) तृप्त करे, और (अस्य) इस शत्रु के (राष्ट्रम्) राष्ट्र को (अव हन्तु) नष्ट करे, (जीवितम्) और इसके जीवन को (अप इन्तु) नष्ट करे। (ग्रीवा:) शत्रु की ग्रीवा की अस्थियों को (शृणतु) काट दे, (उष्णिहाः) और रक्तस्नात नाड़ियों को (प्र शृणातु) काट दे, (इव) जैसे (शचीपतिः) इन्द्र [अर्थात् विद्युत्] (वृत्रस्य) अन्तरिक्ष को घरे हुए मेघ के अवयवों को काटता है। [उष्णिहाः = उत्स्नातास्तत्र धमनीः (सायण)।]

    टिप्पणी

    [सूक्त में वज्रपद द्वारा वज्रवत् कठोर या वज्रधारी सेनापति का वर्णन, अथवा कविता में वज्र का ही वर्णन जानना चाहिये। ऋतम् सत्यनाम (निघं० ३।१०)।]

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    विषय

    वज्र द्वारा शत्रु का नाश।

    भावार्थ

    पापनाशक दण्ड का वर्णन करते हैं—(भयं वज्रः) यह वज्र पापों का वर्जन करनेवाला दण्ड, (ऋतस्य तर्पयताम्) सत्य व्यवस्था को पूर्ण करे, और (अस्य) इस अत्याचारी दुष्ट राजा के (राष्ट्रम्) राष्ट्र का (अप हन्तु) नाश करे, और (जीवितम्) जीवन का भी (अव हन्तु) विनाश करे। (शचीपतिः) समस्त शक्तियों का स्वामी सूर्य जिस प्रकार (वृत्रस्य इव) मेघ के आवरण को छिन्न भिन्न कर देता है उसी प्रकार यह दण्ड दुष्ट पुरुषों के (ग्रीवाः शृणातु) गर्दनों को काट डाले और (उष्णिहाः प्र शृणातु) धमनियों को भी काट डाले।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवता वज्रो देवता। १ परानुष्टुप त्रिष्टुप्। २ भुरिक् त्रिपदा गायत्री। ३ अनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Destruction of Enemies

    Meaning

    May this Vajra, thunderbolt of law, justice and dispensation within, and the defence forces against enemies from outside fulfil the needs of the rule of law, truth and justice. May it eliminate the strongholds of enemies and the very life and existence of negative and destructive forces. Let it snap their activities and block the life flow of their system just like Indra, thunder and lightning breaking the dark clouds.

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    Subject

    Vajra ; A lamantine Bolt

    Translation

    May this thunder-bolt support the right. May this over-throw his (enemy's) kingdom, and take away his life. May this tear the necks and tear the napes, as the Lord of actions tears those of the nescience.

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    Translation

    Let this thunder bolt fully serve the Purpose of truth, let it overthrow the Kingdom of this tyrannous King and destroy his life, let it tear the necks in pieces, rend napes asunder like the Shachipatih, the electricity which tears vritra the cloud.

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    Translation

    Let this administration the averter of crimes, establish Law and Order. Let it scare life away and overthrow the kingdom of the enemy. Let it tear necks of the enemies to pieces, rend their napes asunder, just as the Sun, the Lord of Might rends asunder the neck of the cloud.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(अयम्) (वज्रः) दण्डः। शासनम् (तर्पयताम्) तृप्तिं कुर्यात् (ऋतस्य) सत्यस्य धर्मस्य (अव) अवहत्य (अस्य) शत्रोः (राष्ट्रम्) राज्यम् (अपहन्तु) विनाशयतु (जीवितम्) जीवनम् (शृणातु) हिनस्तु (ग्रीवाः) अ० २।३३।२। कन्धरावयवान् (प्रशृणातु) प्रच्छिनत्तु (उष्णिहा) अ० २।३३।२। बहुवचनस्यैकवचनम्। उत्स्नाता धमनीः (वृत्रस्य) शत्रोः (इव) यथा (शचीपतिः) अ० ३।१०।१२। कर्मणां प्रज्ञानां वा पालकः पुरुषः ॥

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