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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 137 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 137/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वीतहव्य देवता - नितत्नीवनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - केशवर्धन सूक्त
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    यां ज॒मद॑ग्नि॒रख॑नद्दुहि॒त्रे के॑श॒वर्ध॑नीम्। तां वी॒तह॑व्य॒ आभ॑र॒दसि॑तस्य गृ॒हेभ्यः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । ज॒मत्ऽअ॑ग्नि:। अख॑नत् । दु॒हि॒त्रे । के॒श॒ऽवर्ध॑नीम् । ताम् । वी॒तऽह॑व्य: । आ । अ॒भ॒र॒त् । असि॑तस्य । गृ॒हेभ्य॑: ॥१३७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां जमदग्निरखनद्दुहित्रे केशवर्धनीम्। तां वीतहव्य आभरदसितस्य गृहेभ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । जमत्ऽअग्नि:। अखनत् । दुहित्रे । केशऽवर्धनीम् । ताम् । वीतऽहव्य: । आ । अभरत् । असितस्य । गृहेभ्य: ॥१३७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 137; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    केश के बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (केशवर्धनीम्) केश बढ़ानेवाली (याम्) जिस [नितत्नी ओषधि] को (जमदग्निः) जलती अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष ने (दुहित्रे) पूर्ति करनेवाली क्रिया के लिये (अखनत्) खोदा है। (ताम्) उस [ओषधि] को (वीतहव्यः) पाने योग्य पदार्थ का पानेवाला ऋषि (असितस्य) मुक्तस्वभाव महात्मा के (गृहेभ्यः) घरों से (आ अभरत्) लाया है ॥१॥

    भावार्थ

    इस सूक्त में (नितत्नी) पद की अनुवृत्ति गत सूक्त से आती है। जिस प्रकार से वैद्य जनपरम्परा से एक दूसरे के पीछे शिक्षा पाते चले आये हैं, वैसे ही मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते रहें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(याम्) नितत्नीम्−गतसूक्तात् (जमदग्निः) अ० २।३२।३। प्रज्वलिताग्निवत्तेजस्वी (अखनत्) खननेन प्राप्तवान् (दुहित्रे) प्रपूरयित्रीक्रियायै (केशवर्धनीम्) केशवृद्धिकरीम् (ताम्) ओषधिम् (वीतहव्यः) वी गतौ−क्त+हु आदाने यत्। प्राप्तप्राप्तव्यः पुरुषः (असितस्य) षिञ् बन्धने−क्त। अबद्धस्य। मुक्तस्वभावस्य (गृहेभ्यः) गेहेभ्यः सकाशात् ॥

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    विषय

    जमदग्नि वीतहव्य

    पदार्थ

    १. (यां केशनवर्धनीम्) = जिस केशों को बढ़ानेवाली ओषधि को (जमदग्निः) = [जमत् इति ज्वलतिकर्मसु-नि० १.१७, ज्वलन्तः अग्नयो यस्य] जिसके घर में यज्ञाग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, वह जमदग्नि (दुहित्रे अखनत्) = दुहिता के लिए खोदता है, (ताम्) = उस औषधि को (यः वीतहव्यः) = हव्य पदार्थों का ही सेवन करनेवाला (असितस्य गृहेभ्यः) = असित के-कृष्ण केशों के ग्रहण के लिए (आभरत्) = लाता है [आहरत्]।

    भावार्थ

    बालों के प्रपूरण [दुहित्र-दुह प्रपूरणे] के लिए तथा काला रखने के लिए [असितस्य] यह केशवर्धनी ओषधि उपयोगी है। बालों के रोगों को दूर करने के लिए यज्ञशील होना [जमदग्नि] तथा भोजन में हव्य पदार्थों का ही प्रयोग [वीतहव्य] भी आवश्यक है।

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    भाषार्थ

    (केशवर्धनीम्) केशों को बढ़ाने वाली (याम्) जिस ओषधि को (जमदग्निः) प्रज्वलित अग्नि वाले ने वानप्रस्थी (दुहित्रे) दुहिता सदृश कन्याओं के लिये (अखनत्) खोदा, (ताम्) उस ओषधि (असितस्य) काले सांपों के (गृहेभ्यः) घरों अर्थात् जङ्गलों से, (वीतहव्यः) विगतहविष्क संन्यासी ने, (आ अभरत् = आ अहरत्) प्राप्त किया।

    टिप्पणी

    [काले सांप अति विषैले होते हैं, प्रायः जङ्गलों में होते हैं। वानप्रस्थी भी वनों में रहते हैं। उदारहृदय परोपकारी वानप्रस्थी केशवर्धनी ओषधि को कन्याओं के केश रोग के निवारण के लिये खोद रखते हैं, और परोपकारी संन्यासी जब प्रचारार्थ गृहस्थों के घरों में जाते हैं तो उस ओषधि को कन्याओं में बांट देते हैं। असितस्य= अ + सित (श्वेत), काला सांप। मन्त्र में असितस्य, दुहित्रे, जमदग्निः, वीतहव्यः, –ये जात्येकवचन के प्रयोग हैं। कन्याओं के यदि केश न हों, वे गञ्जी हों तो उनका विवाह नहीं हो सकता। अतः केशवर्धनी ओषधि को खोद कर उसका संग्रह कर रखना, और उसका वितरण करना सामाजिक अत्युपकार है। वानप्रस्थियों के लिये यज्ञ करने की विधि है, संन्यासी वीतहव्य होते हैं, हवियों से विगत होते हैं।]

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    विषय

    केशवर्धन का उपाय।

    भावार्थ

    (जमदग्निः) आयुर्वेद की ज्ञानाग्नि से प्रदीप्त वैद्य (याम्) जिस (केशवर्धनीम्) केशों को बढ़ाने वाली भोषधि को (दुहित्रे) कन्याओं की जाति के निमित्त (अखनत्) खोदता और तय्यार करता है, (ताम्) उसको, (वीतहव्यः) आयुर्वेद का ज्ञाता अन्य विद्वान् पुरुष भी (असितस्य) बन्धन रहित प्रभु के (गृहेभ्यः) बनाये नाना स्थानों से (आ भरत्) प्राप्त करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    केशवर्धनकामो वीतहव्योऽथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। अनुष्टुभौ। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Hair Care

    Meaning

    The herb Nitatni which the brilliant scholar of medicinal yajna discovered and dug out for the growth of girls’ hair for long and luxurious beauty, the seeker of efficacious remedy brings up to the homes of unruly haired.

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    Subject

    Nitatni Vanaspati (spreading down ward)

    Translation

    The hair-lengthening herb, which the sage of burning fires (jamadagni) digs up for her daughter’s locks grow long, that the sage of exhausted supplies teares for the homes of the white haired (asitah) one.

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    Translation

    The performer of yajnas obtains for the houses of the white-haired ones that plant which the expert of medical science digs out for making the girl’s lock grow long.

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    Translation

    The medicine which a learned physician digs and prepares to make the locks of girls grow long, the same another scholar of the science of medicine, brings from different places created by God, free from bondage.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(याम्) नितत्नीम्−गतसूक्तात् (जमदग्निः) अ० २।३२।३। प्रज्वलिताग्निवत्तेजस्वी (अखनत्) खननेन प्राप्तवान् (दुहित्रे) प्रपूरयित्रीक्रियायै (केशवर्धनीम्) केशवृद्धिकरीम् (ताम्) ओषधिम् (वीतहव्यः) वी गतौ−क्त+हु आदाने यत्। प्राप्तप्राप्तव्यः पुरुषः (असितस्य) षिञ् बन्धने−क्त। अबद्धस्य। मुक्तस्वभावस्य (गृहेभ्यः) गेहेभ्यः सकाशात् ॥

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