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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 138 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 138/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - नितत्नीवनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - क्लीबत्व सूक्त
    1

    त्वं वी॒रुधां॒ श्रेष्ठ॑तमाभिश्रु॒तास्यो॑षधे। इ॒मं मे॑ अ॒द्य पुरु॑षं क्ली॒बमो॑प॒शिनं॑ कृधि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । वी॒रुधा॑म् । श्रेष्ठ॑ऽतमा । अ॒भि॒ऽश्रु॒ता । अ॒सि॒ । ओ॒ष॒धे॒ । इ॒मम् । मे॒ । अ॒द्य । पुरु॑षम् । क्ली॒बम् । ओ॒प॒शिन॑म् । कृ॒धि॒ ॥१३८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं वीरुधां श्रेष्ठतमाभिश्रुतास्योषधे। इमं मे अद्य पुरुषं क्लीबमोपशिनं कृधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । वीरुधाम् । श्रेष्ठऽतमा । अभिऽश्रुता । असि । ओषधे । इमम् । मे । अद्य । पुरुषम् । क्लीबम् । ओपशिनम् । कृधि ॥१३८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 138; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    निर्बलता हटाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (ओषधे) हे ओषधि ! (त्वम्) तू (वीरुधाम्) सब ओषधियों में (श्रेष्ठतमा) अति श्रेष्ठ और (अभिश्रुता) बड़ी विख्यात (असि) है। (मे) मेरे लिये (अद्य) अब (इमम्) इस (क्लीबम्) बलहीन (पुरुषम्) पुरुष को (ओपशिनम्) सब प्रकार उपयोगी (कृधि) बना ॥१॥

    भावार्थ

    वैद्य उत्तम ओषधि द्वारा बलहीन पुरुषों को बलवान् बनावें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(त्वम्) (वीरुधाम्) लतानां मध्ये (श्रेष्ठतमा) अतिशयेन प्रशस्या (अभिश्रुता) सर्वतः प्रख्याता (असि) (ओषधे) (इमम्) (मे) मदर्थम् (अद्य) इदानीम् (पुरुषम्) (क्लीबम्) क्लीबृ अधार्ष्ये−अच्। अधृष्टम्। निवीर्य्यम् (ओपशिनम्) आङ्+उप+शीङ् शयने−ड, इनि। ओपशः=उपशयः=उपयोगः। समन्तादुपयोगिनम्। (कृधि) कुरु ॥

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    विषय

    'श्रेष्ठतमा अभिभुता' वीरुध

    पदार्थ

    १. हे (ओषधे) = दोषों का दहन करनेवाली ओषधे! (त्वम) = तू (वीरुधाम) = सब लताओं में (श्रेष्ठतमा) = सर्वश्रेष्ठ (अभिश्रुता असि) = विख्यात है। तू (मे) = मेरे (इमम्) = इस (क्लीबम् पुरुषम्) = बलहीन पुरुष को (अद्य) = आज (ओपशिनं कृधि) = [ओपश A kind of head ornament] शिरोभूषणवाला कर दे। क्लीबता के कारण यह झुके हुए सिरवाला न होकर, सशक्त बनकर अलंकृत मस्तिष्कवाला हो।

    भावार्थ

    उत्तम औषधि सेवन से यह बलहीन पुरुष सबल बन जाए।

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    भाषार्थ

    (ओषधे) हे औषधि ! (त्वम्) तू (वीरुधाम्) लताओं में (श्रेष्ठतमा) सर्वश्रेष्ठ (अभिश्रुता) प्रसिद्ध (अति) है, (अद्य) आज (मे) मेरे (मम्) इस (पुरुष) व्यभिचारी पुरुष को (क्लीवम्) नपुंसक अर्थात् हिजड़ा, और (ओपशिनम्) ओपश वाला (कृधि) कर।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में ओषधि का नाम नहीं दिया। "अद्य" का अर्थ है आज। ओषधि शीघ्र प्रभावकारिणी है जोकि एक ही दिन में सफलता दे सकती है। ओपश है स्त्रियों के सिर का आभूषण। व्यभिचारी पुरुष के क्लीब हो जाने पर उसे ओपश पहना दिया जाय ताकि सर्वसाधारण को यह ज्ञात हो जाय कि यह व्यभिचारी है, अतः क्लीब कर दिया गया है। यह ओषधि का नाश कर देती है। वीर्य के नाश होने से पौरुष शक्ति वाला पुरुष क्लीब हो जाता है।]

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    विषय

    व्यभिचारी को नपुंसक करने के उपाय।

    भावार्थ

    हे (ओषधे) ओषधे ! (त्वं) तू (वीरुधाम्) सब लताओं में से (श्रेष्ठतमा) सब से अधिक श्रेष्ठ, गुणकारी (अमि-श्रुता) प्रसिद्ध है। (अद्य) शीघ्र ही (इमम्) इस (मे) मुझे सताने वाले (पुरुषम्) व्यभिचारी पुरुष को (क्लीवम्) नपुंसक करे और (ओपशिनम्) हे न्यायाधीश ! इसे स्त्री के योग्य पोशाक से युक्त (कृषि) कर। अर्थात् व्यभिचारी पुरुष को स्त्री की पोशाक पहना कर भी लज्जित करना चाहिये। और व्यभिचारी यदि इस पर भी व्यभिचार न छोड़े तो उसे नपुंसक बना देना चाहिये।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    क्लीवकर्तुकामोऽथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १-२ अनुष्टुभौ। ३ पथ्यापंक्तिः। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure for Impotency

    Meaning

    O Oshadhi, you are the best of herbs, most highly praised and renowned. Please cure this impotent man, this effeminate man, my patient, today, and make him full man.

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    Subject

    Vanaspati (herb)

    Translation

    O herb, you are the best and well renowned of all the plants. May you make this man of mine impotent and female today.

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    Translation

    This medicinal plant is heard to be best of all the herbs. Let this make now my impotent man potent.

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    Translation

    O medicine, thy fame is spread abroad as best of all the herbs that grow. Make for me this imbecile person fit for work!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(त्वम्) (वीरुधाम्) लतानां मध्ये (श्रेष्ठतमा) अतिशयेन प्रशस्या (अभिश्रुता) सर्वतः प्रख्याता (असि) (ओषधे) (इमम्) (मे) मदर्थम् (अद्य) इदानीम् (पुरुषम्) (क्लीबम्) क्लीबृ अधार्ष्ये−अच्। अधृष्टम्। निवीर्य्यम् (ओपशिनम्) आङ्+उप+शीङ् शयने−ड, इनि। ओपशः=उपशयः=उपयोगः। समन्तादुपयोगिनम्। (कृधि) कुरु ॥

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