अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 1
ऋषिः - बभ्रुपिङ्गल
देवता - बलासः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - बलासनाशन सूक्त
1
अ॑स्थिस्रं॒सं प॑रुस्रं॒समास्थि॑तं हृदयाम॒यम्। ब॒लासं॒ सर्वं॑ नाशयाङ्गे॒ष्ठा यश्च॒ पर्व॑सु ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्थि॒ऽस्रं॒सम् । प॒रु॒:ऽस्रं॒सम् । आऽस्थि॑तम् । हृ॒द॒य॒ऽआ॒म॒यम् । ब॒लास॑म् । सर्व॑म् । ना॒श॒य॒ । अ॒ङ्गे॒ऽस्था: । य: । च॒ । पर्व॑ऽसु ॥१४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्थिस्रंसं परुस्रंसमास्थितं हृदयामयम्। बलासं सर्वं नाशयाङ्गेष्ठा यश्च पर्वसु ॥
स्वर रहित पद पाठअस्थिऽस्रंसम् । परु:ऽस्रंसम् । आऽस्थितम् । हृदयऽआमयम् । बलासम् । सर्वम् । नाशय । अङ्गेऽस्था: । य: । च । पर्वऽसु ॥१४.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रोग के नाश का उपदेश।
पदार्थ
[हे वैद्य !] (अस्थिस्रंसम्) हड्डियाँ गला देनेवाले, (परुस्रंसम्) जोड़ों के ढीला कर देनेवाले (आस्थितम्) स्थिर (हृदयामयम्) हृदयरोग, अर्थात् (सर्वम्) सब (बलासम्) बल गिरा देनेवाले क्षयरोग [खाँसी, कफ़ आदि] को (नाशय) नाश करदे, (यः) जो (अङ्गेष्ठाः) अङ्ग-अङ्ग में बैठा हुआ (च) और (पर्वसु) सब जोड़ों में है ॥१॥
भावार्थ
जैसे वैद्य ओषधि द्वारा रोगों का नाश करता है, वैसे ही मनुष्य विद्या द्वारा अविद्या का नाश करें ॥१॥
टिप्पणी
१−(अस्थिस्रंसम्) स्रंसु पतने−पचाद्यच्। अस्थ्नां स्रंसः स्रंसनं पतनं यस्मात् तं रोगम् (परुस्रंसम्) परुषां पर्वणां शरीरसन्धीनां पतनं यस्मात् तम् (आस्थितम्) समन्ताद् व्याप्य स्थितम् (हृदयामयम्) हृद्रोगम् (बलासम्) अ० ४।९।८। बलस्य असितारं कासकफादिक्षयरोगम् (सर्वम्) निःशेषम् (नाशय) उन्मूलय (अङ्गेष्ठाः) अङ्गे+ष्ठा−विच्। हस्तपादाद्यङ्गेषु स्थितः (यः) (बलासः) (च) (पर्वसु) शरीरसन्धिषु वर्तते ॥
विषय
हृदयामयम्, बलासम्
पदार्थ
१. (अस्थिस्त्रसम्) = हड्डियों को गला देनेवाले (परुस्त्रसम्) = जोड़ों को ढीला कर देनेवाले (आस्थितम्) = स्थिर हो जाने-जम जानेवाले (हृदयामयम्) = हृदय-रोग को (नाशय) = नष्ट कर दो। २. (सर्व बलासम्) = सब बल को गिरा देनेवाले क्षय रोग को, (अङ्गेष्ठाः) = जो अङ्गों में बैठ गया (या: च) = जो (पर्वसु) = जोड़ों में बैठ गया है-उस सबको नष्ट कर दीजिए।
भावार्थ
वैद्य औषध-प्रयोग द्वारा हृदय तथा क्षय-रोग को नष्ट करे ।
भाषार्थ
[हे वैद्य] (अस्थिस्रंसम्) हड्डी को स्वस्थान से च्युत कर देने वाले, (परुस्रंसम) जोड़ों को ढीला कर देने वाले, (सर्वम् ) सब (बलासम् ) बलास रोग को, तथा (आस्थितम्) स्थिर हुए (हृदयामयम्) हृद्रोग को (नाशय) नष्ट कर, तथा (य:) जो (अङ्गेष्ठाः) शरीर के किसी अंग में स्थित (च) और (पर्वसु) जोड़ों में रोग है [उसे नष्ट कर]
टिप्पणी
[बलास =रोग जो कि शारीरिक वल को नष्ट कर देता है, "बल+असू क्षेपणे" (दिवादिः)। बलासः कासश्वासात्मकश्लेष्मरोगः (सायण)। मन्त्र में नाना रोगों का वर्णन हुआ है। यथा चोट के कारण अस्थि और परु का स्वस्थान से च्युत हो जाना, स्रं सु अवस्रं सने (भ्वादिः ), अवस्रं सनम् =Dropping, or falling down, fall (आप्टे); (२) हृदयामया; (३) बलास= श्लेष्मरोग या क्षय; (४) अंगेष्ठा:=Rheumation (वात पीढ़ा); (५) पर्वसु= जोड़ों का दर्द, Arthritis (gout, गठिया)]।
विषय
कफ रोग निदान और चिकित्सा।
भावार्थ
(अस्थिं-स्रंसं) हड्डियों को तोड़ डालनेवाले (परुः-स्रंसं) पोरुओं को भी तोड़नेवाले, उनमें प्रबल पीड़ा उत्पन्न करनेवाले और (आ-स्थितं) जमे हुए (हृदय-आमयम्) हृदय के रोग रूप (बलासं) शरीर के बलनाशक श्लेश्म रोग को (यः) जो कि (अंगे-ष्ठाः) शरीर के अंग अंग में व्यापक हो और (यः च पर्वसु) जो पोरु पोरु, जोड़ जोड़ में बैठ गया हो उस सब कफविकार को (नाशय) विनाश कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बभ्रुपिङ्गल ऋषिः। बलासो देवता। अनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Cancer and Consumption
Meaning
O life energy of nature, O physician, cure and eliminate the weakness of the bones and joints, cleanse out the dirt and disease that has settled in the heart. Remove all the cancerous consumptions which affect the limbs and which accumulate in the joints.
Subject
Bone - Weakening : Balasah
Translation
May you remove the bone-weakening and the joint weakening malady, the firmly seated heart-trouble and all the wasting disease, that lies in limbs and in joints.
Translation
O physician! remove the decline or cough which demolishes, the bones, which creates harm in the Joints, dispel away the firmly rooted bear disease that has its influence in the limbs and that which spreads in the joints.
Translation
O medicine, remove thou the breaking of the bones and the joints, the firmly-settled heart-disease, the strength decaying bronchitis that racks the bones and rends the limbs.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(अस्थिस्रंसम्) स्रंसु पतने−पचाद्यच्। अस्थ्नां स्रंसः स्रंसनं पतनं यस्मात् तं रोगम् (परुस्रंसम्) परुषां पर्वणां शरीरसन्धीनां पतनं यस्मात् तम् (आस्थितम्) समन्ताद् व्याप्य स्थितम् (हृदयामयम्) हृद्रोगम् (बलासम्) अ० ४।९।८। बलस्य असितारं कासकफादिक्षयरोगम् (सर्वम्) निःशेषम् (नाशय) उन्मूलय (अङ्गेष्ठाः) अङ्गे+ष्ठा−विच्। हस्तपादाद्यङ्गेषु स्थितः (यः) (बलासः) (च) (पर्वसु) शरीरसन्धिषु वर्तते ॥
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