अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
ऋषिः - अथर्वा
देवता - सोमः, वनस्पतिः
छन्दः - परोष्णिक्
सूक्तम् - जेताइन्द्र सूक्त
3
इन्द्रा॑य॒ सोम॑मृत्विजः सु॒नोता च॑ धावत। स्तो॒तुर्यो वचः॑ शृ॒णव॒द्धवं॑ च मे ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रा॑य । सोम॑म् । ऋ॒त्वि॒ज॒: । सु॒नोत॑ । आ । च॒ । धा॒व॒त॒ । स्तो॒तु: । य: । वच॑: । शृ॒णव॑त् । हव॑म् । च॒ । मे॒ ॥२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्राय सोममृत्विजः सुनोता च धावत। स्तोतुर्यो वचः शृणवद्धवं च मे ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्राय । सोमम् । ऋत्विज: । सुनोत । आ । च । धावत । स्तोतु: । य: । वच: । शृणवत् । हवम् । च । मे ॥२.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परम ऐश्वर्य पाने का उपदेश।
पदार्थ
(ऋत्विजः) हे ऋतु-ऋतुओं में यज्ञ करनेवाले पुरुषो ! (इन्द्राय) परम ऐश्वर्यवाले परमात्मा के लिये (सोमम्) अमृत रस [तत्वज्ञान] (सुनोत) निचोड़ो (च) और (आ) अच्छे प्रकार (धावत) शोधो ! (वः) जो परमेश्वर (स्तोतुः) स्तुति करनेवाले (मे) मेरे (वचः) वचन (च) और (हवम्) पुकार को (शृणवत्) सुने ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य परमात्मा का तत्त्वज्ञान प्राप्त करके अपना सामर्थ्य बढ़ावें ॥१॥
टिप्पणी
१−(इन्द्राय) परमैश्वर्यवते जगदीश्वराय (सोमम्) अ० ३।१६।१। अमृतरसम्। तत्त्वबोधम् (ऋत्विजः) ऋत्विग्दधृक्०। पा० ३।२।५९। इति ऋतु+यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु−क्विन्। हे ऋतौ ऋतौ याजकाः। देवपूजकाः (सुनोत) अभिषुणुत (आ) समन्तात् (च) (धावत) धावु गतिशुद्ध्योः, णिजर्थः। शोधयत (स्तोतुः) स्तावकस्य (वचः) वाक्यम् (शृणवत्) श्रु श्रवणे, लेटि अडागमः। शृणुयात् (हवम्) आह्वानम् (च) (मे) मदीयम् ॥
विषय
सोमं सनोता च धावत
पदार्थ
१. हे (ऋत्विजः) = [ऋतौ ऋतौ यजति] समय-समय पर-सदा प्रभु-पूजन करनेवाले उपासको! (इन्द्राय) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु की प्राप्ति के लिए (सोमम्) = सोमशक्ति [वीर्य] को (सुनोत) = अपने में उत्पन्न करो (च) = और (धावत) = अपने जीवन को गतिमय व शुद्ध बनाओ। २. उस प्रभु की प्रासि के लिए सोम का सवन करो (यः) = जो (स्तोतुः) = स्तुतिकर्ता के (वच:) = स्तुतिवचानों को (शुणवत्) = सुनता है, (च) = और (मे) = मुझे स्तोता की (हवम्) = पुकार व प्रार्थना को सुनता है।
भावार्थ
प्रभु-प्राति के लिए शरीर में सोम का सम्पादन और गतिमयता द्वारा जीवन को शुद्ध बनाना आवश्यक है। प्रभु स्तोता के स्तुति-वचनों व पुकार को सुनते हैं।
भाषार्थ
(ऋत्विजः) ऋतु-ऋतु के अनुकूल भक्तियज्ञ करने वालों ! (इन्द्राय) परमैश्वर्यवान् परमेश्वर के लिये (सोमम्) भक्तिरस को (सुनोत) पैदा करो, (च) और (आधावत) उसे पूर्णरूप में शुद्ध करो, (यः) जो इन्द्र कि (स्तोतुः) प्रत्येक स्तुतिकर्त्ता के (वच:) स्तुतिवचन को, (च) और ( मे ) मेरे (हवम्) आह्वान को (शृणवत्) सुने या सुनता है।
टिप्पणी
[ऋत्विजः=ऋतु+यज्ञ । प्रत्येक ऋतु में परमेश्वर के भिन्न-भिन्न गुण-कर्म अर्थात् स्वरूप प्रकट होते हैं तदनुकूल या तदनुरूप ही उस की स्तुति या भक्तियज्ञ करने चाहिये। सोमम् =अथर्ववेद में कहा है कि– सोमं मन्यते पपिवान् यत्संपिषन्त्योषधिम् । सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति पार्थिवः॥१४॥१॥३॥। सोम को मानता है कि मैंने पी लिया, जब कि ओषधि को पीसते हैं। जिसे कि ब्रह्मवेद [अथर्ववेद] के ज्ञाता, या ब्रह्मज्ञ, सोम जानते हैं उसका प्राशन पृथिवी-भोगी नहीं करता। [इससे प्रतीत होता है कि मन्त्र में "सोम" द्वारा सोम ओषधि और उसका रस ही नहीं, अपितु प्रकरणानुसार सोम के अन्यार्थ भी होते हैं। पृथिवी भोगी= पार्थिव भोगों में आसक्त पुरुष। काण्ड ६, सूक्त १ भक्तिगानपरक है, अतः सूक्त २ में भी भक्ति का सम्बन्ध अभीष्ट प्रतीत होता है। अतः सोमपान का अर्थ "भक्तिरसपान" किया गया है।
विषय
समाधि द्वारा ब्रह्मरस पान।
भावार्थ
हे (ऋत्विजः) हे ऋतु ऋतु में यज्ञ करने हारे, अथवा ऋतु = प्राणों का परस्पर यज्ञ = संगति करने वाले समाधि-कुशल योगी पुरुषो ! उस (इन्द्राय) इन्द्र अपने आत्मा के लिये (सोमम्) ब्रह्मानन्द रस को (सुनोत) उत्पन्न करो, और उसको (आ धावत च) भली प्रकार और भी परिमार्जित और स्वच्छ करो, (यः) जो इन्द्र = आत्मा (स्तोतुः वचः) स्तुति करने हारे विद्वान् की वाणी (मे हवं च) और मेरी पुकार को (शृणवत्) सुनता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। सोमो वनस्पतिर्देवता। १-३ परोष्णिहः। तृचं सुक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Victorious
Meaning
Holy performers of yajna according to the seasons, press the soma of immortality in honour of Indra, omnipotent lord of life and life’s joy, distil it to purest purity, for he listens to the prayers of the celebrant and responds to my call of invocation.
Subject
Somah - Vanaspatih
Translation
O performers of sacrifices according to seasons, press out devotional bliss and clean it carefully for the resplendent Lord, who will listen to the words and invocation of mine, an adorer
Translation
O ye priests of Yajna! develop intuitional wisdom to attain the Almighty Good and let it be refined further. It is he who listens to the prayer of devotee and the call of mine.
Translation
O Yogis who control the breath in samadhi, creates for the soul the joy of God, and make it pure. The soul listens to the praiser's word and my call.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(इन्द्राय) परमैश्वर्यवते जगदीश्वराय (सोमम्) अ० ३।१६।१। अमृतरसम्। तत्त्वबोधम् (ऋत्विजः) ऋत्विग्दधृक्०। पा० ३।२।५९। इति ऋतु+यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु−क्विन्। हे ऋतौ ऋतौ याजकाः। देवपूजकाः (सुनोत) अभिषुणुत (आ) समन्तात् (च) (धावत) धावु गतिशुद्ध्योः, णिजर्थः। शोधयत (स्तोतुः) स्तावकस्य (वचः) वाक्यम् (शृणवत्) श्रु श्रवणे, लेटि अडागमः। शृणुयात् (हवम्) आह्वानम् (च) (मे) मदीयम् ॥
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