अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 25/ मन्त्र 1
ऋषिः - शुनः शेप
देवता - मन्याविनाशनम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - मन्याविनाशन सूक्त
1
पञ्च॑ च॒ याः प॑ञ्चा॒शच्च॑ सं॒यन्ति॒ मन्या॑ अ॒भि। इ॒तस्ताः सर्वा॑ नश्यन्तु वा॒का अ॑प॒चिता॑मिव ॥
स्वर सहित पद पाठपञ्च॑ । च॒ ।या: । प॒ञ्चा॒शत् । च॒ । स॒म्ऽयन्ति॑ । मन्या॑: । अ॒भि । इ॒त: । ता: । सर्वा॑: । न॒श्य॒न्तु॒ । वा॒का: । अ॒प॒चिता॑म्ऽइव ॥२५.१॥
स्वर रहित मन्त्र
पञ्च च याः पञ्चाशच्च संयन्ति मन्या अभि। इतस्ताः सर्वा नश्यन्तु वाका अपचितामिव ॥
स्वर रहित पद पाठपञ्च । च ।या: । पञ्चाशत् । च । सम्ऽयन्ति । मन्या: । अभि । इत: । ता: । सर्वा: । नश्यन्तु । वाका: । अपचिताम्ऽइव ॥२५.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रोग के नाश के लिये उपदेश।
पदार्थ
(पञ्च) पाँच (च च) और (पञ्चाशत्) पचास (याः) जो पीड़ायें (मन्याः अभि) गले की नसों में (संयन्ति) सब ओर से व्याप्त होती हैं। (ताः सर्वाः) वे सब (इतः) यहाँ से (नश्यन्तु) नष्ट हो जावें, (इव) जैसे (अपचिताम्) निर्बलों के (वाकाः) वचन [नष्ट हो जाते हैं] ॥१॥
भावार्थ
जैसे सद्वैद्य गले के गण्डमाला आदि रोगों को नष्ट करता है, इसी प्रकार मनुष्य अपने दोषों का निवारण करे ॥१॥
टिप्पणी
१−(पञ्च च पञ्चाशच्च) पञ्चाधिकपञ्चाशत्संख्यकाः (याः) पीडाः (संयन्ति) सर्वतो व्याप्नुवन्ति (मन्याः) मन धृतौ−क्यप्, टाप्। ग्रीवायाः पश्चात् शिराः (अभि) प्रति (इतः) अस्माद्देशात् (ताः) पीडाः (सर्वाः) (नश्यन्तु) अदृष्टा भवन्तु (वाकाः) वच व्यक्तायां वाचि−घञ् कुत्वम्। वचनानि (अपचिताम्) अप+चिञ् हीनकरणे−क्विप्। हीनानां निर्बलानाम् ॥
विषय
नाड़ियों के विकार का निराकरण
पदार्थ
१. (या:) = जो (पञ्च च पञ्चाशत् च) = पाँच और पचास पीड़ाएँ (मन्याः अभि) = गले के पृष्ठ भाग की नाड़ियों में (संयन्ति) = व्याप्त होती हैं, (ताः सर्वाः) = वे सब (इत:) = यहाँ से इसप्रकार (नश्यन्त) = नष्ट हो जाएँ, (इव) = जैसे विद्वानों के सामने (अपचितां वाका:) = मूखों के वचन। २. (या:) = जो (सप्त च समतिः च) = सात और सत्तर पीड़ाएँ (ग्रैव्या: अभि) = गले की नाड़ियों में (संयन्ति) = व्याप्त हो जाती हैं, वे सब यहाँ से उसी प्रकार नष्ट हो जाएँ (इव) = जैसेकि ज्ञानियों के सामने (अपचिताम् वाका:) = मूखों के वचन नष्ट हो जाते हैं। (या:) = जो (नव च नवतिश्च) = नौ और नव्वे पीडाएँ (स्कन्ध्या: अभि) = कन्धों की नाडियों में (संयन्ति) = व्याप्त हो जाती हैं, वे सब यहाँ से इसप्रकार नष्ट हो जाएँ जैसेकि ज्ञानियों के सामने मूखों के वचन नष्ट हो जाते हैं।
भावार्थ
'मन्या, ग्रैव्य व स्कन्ध्य' नाड़ियों में विकार के कारण गण्डमाला का रोग प्रकट होता है। नाना प्रकार की फुसियों या गिलटियों से बना यह रोग जल के ठीक प्रयोग से दूर किया जाए, तभी जीवन सुखी होगा।
विशेष
शरीर के रोगों की भाँति मानस रोगों को दूर करनेवाला यह व्यक्ति 'ब्रह्मा' बनता है-बड़ा-एकदम निष्पाप । यही अगले सूक्त का ऋषि है।
भाषार्थ
(याः) जो (पञ्च) पांच ( च) और ( पञ्चाशत् च ) पचास ( मन्या: ) छोटी ग्रन्थियां, (अभि) गर्दन के सामने की ओर (संयन्ति) परस्पर साथ-साथ लगी हुई हैं, (ता: सर्वाः ) वे सब ( इतः ) इस प्रयोग से ( नश्यन्तु) नष्ट हो जांय, (अपचिताम् ) सत्कर्मों में अपचय, अर्थात् ह्रास वालों के (वाकाः) वचन या कथन (इव) जैसे (नश्यन्तु) नष्ट हो जाते हैं [सत्य न होने के कारण स्थिरता प्राप्त नहीं करते यतः वे अविश्वसनीय होते हैं।]
टिप्पणी
[सायण ने 'मन्या' का अर्थ गण्डमाला किया है। छोटी-छोटी ये ग्रन्थियां परस्पर मिलकर गण्डमाला हो जाती हैं।]
विषय
कण्ठमाला रोग का निदान और चिकित्सा।
भावार्थ
गले के ऊपर के भाग में (याः) जो (पञ्च च पञ्चाशत् च) पचपन प्रकार की (मन्याः) गण्डमालाएं (अभि संयन्ति) आ जाती हैं (ताः) वे सब (अपचिताम्) अप = बुरे माद्दे के सञ्चयों से उत्पन्न (पाकाः इव) पाक = पकी फुन्सियों के समान होती हैं (ताः सर्वाः) वे सब (इतः) यहां से (नश्यन्तु) दूर हो जायं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुनःशेप ऋषिः। मन्याविनाशनं देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Manya-Vinashanam
Meaning
Let all the five and fifty outgrowths and ailments of the neck which together afflict the patient be cured and disappear from here as words and wishes of ignorant fools disappear in the air.
Subject
Cure for Manya : Region of Napes
Translation
The five and the fify (pains), that go towards region of nape (back of neck), may all of them vanish from here like noises of noxious flying insects (apacitam). (5-->50) (manya-abhi- towards nape)
Translation
Let all the five and fifty excrescences...that develop round the tendons of the neck vanish away from here like the Softer Scrofulous swelling of the men in whose body the bad matters get accumulated.
Translation
May all the fifty-five tumours that appear on the neck, depart and vanish hence away, like the words of the weak.
Footnote
Fifty-five: various. Just as the words of the weak vanish, as none cares for them, s0may the diseases of the neck depart.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(पञ्च च पञ्चाशच्च) पञ्चाधिकपञ्चाशत्संख्यकाः (याः) पीडाः (संयन्ति) सर्वतो व्याप्नुवन्ति (मन्याः) मन धृतौ−क्यप्, टाप्। ग्रीवायाः पश्चात् शिराः (अभि) प्रति (इतः) अस्माद्देशात् (ताः) पीडाः (सर्वाः) (नश्यन्तु) अदृष्टा भवन्तु (वाकाः) वच व्यक्तायां वाचि−घञ् कुत्वम्। वचनानि (अपचिताम्) अप+चिञ् हीनकरणे−क्विप्। हीनानां निर्बलानाम् ॥
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