अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 41/ मन्त्र 1
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - चन्द्रमाः
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - दीर्घायुप्राप्ति सूक्त
1
मन॑से॒ चेत॑से धि॒य आकू॑तय उ॒त चित्त॑ये। म॒त्यै श्रु॒ताय॒ चक्ष॑से वि॒धेम॑ ह॒विषा॑ व॒यम् ॥
स्वर सहित पद पाठमन॑से । चेत॑से । धि॒ये । आऽकू॑तये । उ॒त । चित्त॑ये । म॒त्यै । श्रु॒ताय॑ । चक्ष॑से । वि॒धेम॑ । ह॒विषा॑ । व॒यम् ॥४१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
मनसे चेतसे धिय आकूतय उत चित्तये। मत्यै श्रुताय चक्षसे विधेम हविषा वयम् ॥
स्वर रहित पद पाठमनसे । चेतसे । धिये । आऽकूतये । उत । चित्तये । मत्यै । श्रुताय । चक्षसे । विधेम । हविषा । वयम् ॥४१.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आत्मा की उन्नति का उपदेश।
पदार्थ
(मनसे) उत्तम मननसाधन मन के लिये, (चेतसे) ज्ञान के साधन चित्त के लिये, (धिये) धारणावती बुद्धि के लिये, (आकूतये) अच्छे सङ्कल्प वा उत्साह के लिये (उत) और (चित्तये) स्मृति के हेतु विवेक के लिये, (मत्यै) समझ के लिये, (श्रुताय) श्रवण के लिये और (चक्षसे) दर्शन के लिये (वयम्) हम लोग (हविषा) भक्ति से [परमेश्वर को] (विधेम) पूजें ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य ईश्वरज्ञान द्वारा आत्मिक शक्तियों को बढ़ा कर सदा पुरुषार्थ करें ॥१॥
टिप्पणी
१−(मनसे) मननसाधनाय हृदयाय (चेतसे) चिती संज्ञाने−असुन्। ज्ञानसाधनाय चित्ताय (धिये) धारणावत्यै प्रज्ञायै (आकूतये) सङ्कल्पाय। उत्साहाय (उत) अपिच (चित्तये) स्मृतिहेतवे विवेकाय (मत्यै) ज्ञानजनन्यै शक्त्यै (श्रुताय) श्रवणाय (चक्षसे) दर्शनाय (विधेम) परिचरेम इन्द्रम्, इति शेषः (हविषा) आत्मदानेन। भक्त्या (वयम्) धार्मिकाः ॥
विषय
मनसे-चक्षसे
पदार्थ
१. (मनसे) = मनन के उत्तम साधनभूत मन के लिए, (चेतसे) = ज्ञान के साधनभूत चेतस् के लिए, (धिये) = ध्यान-साधन एकाग्र बुद्धि के लिए, (आकूतये) = संकल्प के लिए (उत) = और (चित्तये) = अतीत आदि विषय-स्मृति हेतु चिति के लिए (वयम्) = हम (इविषा) = दानपूर्वक अदन के द्वारा (विधेम) = प्रभु का पूजन करते हैं। २. (मत्यै) = आगामी विषयों के ज्ञान की जननीभूत मति के लिए, (श्रुताय) श्रवणजनित ज्ञान के लिए तथा (चक्षसे) = चाक्षुष ज्ञान के लिए हम हवि के द्वारा प्रभुपूजन करते हैं।
भावार्थ
दानपूर्वक अदन, अर्थात् यज्ञशेष का सेवन तथा प्रभु-पूजन हमें 'मन, चेतस्, धी, आकूति, चिति, मति, श्रुत व चक्षस्' प्राप्त कराते हैं।
भाषार्थ
(मनसे) मनन के लिये, (चेतसे) सम्यक्-ज्ञान के लिये, (धिये) ध्यान के लिये, (आकूतये) संकल्प के लिये, (चित्तये) स्मरण शक्ति के लिये, (मत्यै) मेधा के लिये (श्रुताय) वेदाध्ययन के [चित्त में ] धारण करने के लिये (चक्षसे) आंखों के स्वास्थ्य के लिये (वयम् ) हम (हविषा) हवि द्वारा (विधेम) यज्ञ करें, या इन सब को परिचर्या करें।
टिप्पणी
[चेतसे =चिती संज्ञाने (भ्वादिः)। चित्तये = चिति स्मृत्याम् (चुरादिः)। "मतिः, मतयः" मेधाविनाम (निघं० ३।१५)। श्रुतये, श्रुतिर्वेदः । विधेम परिचरणकर्मा (निघं० ३।५)।]
विषय
अध्यात्म शक्तियों की साधना।
भावार्थ
(मनसे) मनः-शक्ति, (चेतसे) सम्यग् ज्ञान, (धिये) धारणा शक्ति, (आकूतये) प्रतिभा (उत्) और (चित्तये) चेतना शक्ति, (मत्यै) तत्व विचार करने वाली मननशक्ति, (श्रुताय) गुरुउपदेश द्वारा प्राप्य वेद ज्ञान या श्रवण शक्ति और (चक्षसे) भीतरी चक्षु, आत्मा की दर्शनशक्ति, इन सब शक्तियों के प्राप्त करने के लिए (वयम्) हम (हविषा) अन्न आदि पौष्टिक सात्विक पदार्थों द्वारा या आत्मशक्ति या मस्तिष्क शक्ति या मन और वाणी की शक्ति से प्राप्त करने की (विधेम) सदा साधना किया करें।
टिप्पणी
हविः जीवं वै देवानां हविरमृतमम्तानाम्। श० १। २। १। २०॥ तस्य पुरुषस्य शिर एव हविर्धाने। कौ० १७। ७॥ वाक् च वै मनश्व हविर्धाने। कौ० ९। ३॥ अर्थात् हवि = आत्मा, जीव, शिर की ज्ञानशक्ति, वाणी और मन इनकी साधना से मनुष्य उपरोक्त सब शक्तियां प्राप्त करे।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। बहवः उत चन्द्रमा देवता। १ भुरिगनुष्टुप्, २ अनुष्टुप्, ३ त्रिष्टुप्, तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Self-Expansion
Meaning
For the development of mind, intelligence, thought, intention and purpose, understanding, wisdom, hearing and vision, we worship Indra, Lord Almighty, with offers of havi in yajna.
Translation
For mental power, for intellectual power, for comprehension, for determined effort, for understanding, for resolution, for learning and for realization, we perform sacrifice with offerings.
Translation
Let us create through offering oblations in the yajna an atmosphere conducive to attaining to accomplishment of mind, of intellect, of thought, of purpose, of intelligence, of sense, of audibility and of vision.
Translation
For acquiring the strength of mind, thought, intellect, purpo0se, intelligence, discernment, hearing, and sight, let us adore God with devotion.
Footnote
Rishis: Seven Rishis referred to in verse I, Hymn Xl. They are immortal, deathless.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(मनसे) मननसाधनाय हृदयाय (चेतसे) चिती संज्ञाने−असुन्। ज्ञानसाधनाय चित्ताय (धिये) धारणावत्यै प्रज्ञायै (आकूतये) सङ्कल्पाय। उत्साहाय (उत) अपिच (चित्तये) स्मृतिहेतवे विवेकाय (मत्यै) ज्ञानजनन्यै शक्त्यै (श्रुताय) श्रवणाय (चक्षसे) दर्शनाय (विधेम) परिचरेम इन्द्रम्, इति शेषः (हविषा) आत्मदानेन। भक्त्या (वयम्) धार्मिकाः ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal