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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 55 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 55/ मन्त्र 1
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - विश्वे देवाः छन्दः - जगती सूक्तम् - सौम्नस्य सूक्त
    1

    ये पन्था॑नो ब॒हवो॑ देव॒याना॑ अन्त॒रा द्यावा॑पृथि॒वी सं॒चर॑न्ति। तेषा॒मज्या॑निं यत॒मो वहा॑ति॒ तस्मै॑ मा देवाः॒ परि॑ धत्ते॒ह सर्वे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । पन्था॑न: । ब॒हव॑: । दे॒व॒ऽयाना॑: । अ॒न्त॒रा । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । स॒म्ऽचर॑न्ति । तेषा॑म् । अज्या॑निम् । य॒त॒म: । वहा॑ति । तस्मै॑ । मा॒ । दे॒वा॒: । परि॑ । ध॒त्त॒ । इ॒ह । सर्वे॑ ॥५५.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये पन्थानो बहवो देवयाना अन्तरा द्यावापृथिवी संचरन्ति। तेषामज्यानिं यतमो वहाति तस्मै मा देवाः परि धत्तेह सर्वे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । पन्थान: । बहव: । देवऽयाना: । अन्तरा । द्यावापृथिवी इति । सम्ऽचरन्ति । तेषाम् । अज्यानिम् । यतम: । वहाति । तस्मै । मा । देवा: । परि । धत्त । इह । सर्वे ॥५५.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 55; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब सम्पत्ति प्राप्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो (देवयानाः) विद्वानों के यानों, रथादिकों के योग्य (बहवः) बहुत से (पन्थानः) मार्ग (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी के (अन्तरा) बीच (संचरन्ति) चलते रहते हैं, (तेषाम्) उन मार्गों में से (यतमः) जो कोई मार्ग (अज्यानिम्) अभङ्ग शान्ति (वहाति) पहुँचावे। (सर्वे देवा) हे सब विद्वानों ! (तस्मै) उस मार्ग के लिये (मा) मुझे (इह) यहाँ पर (परि) अच्छे प्रकार (धत्त) स्थिर करो ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य पूर्वज महात्माओं के समान विज्ञानपूर्वक वैदिक मार्ग में चलकर शान्ति प्राप्त करें ॥१॥ इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध अ० ३।१५।२। में आ गया है ॥

    टिप्पणी

    १−पूर्वार्द्धो व्याख्यातः−अ० ३।१५।२। यथा (ये) (पन्थानः) मार्गाः (बहवः) नानाविधाः (देवयानाः) विदुषां यानयोग्याः (अन्तरा) मध्ये (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (संचरन्ति) वर्तन्ते (तेषाम्) पथां मध्ये (अज्यानिम्) ज्या वयोहानौ−क्तिन्। अजरां शान्तिम् (यतमः) अ० ४।११।५। यः कश्चित् (वहाति) लेटि, अडागमः। वहेत् प्रापयेत् (तस्मै) मार्गाय (मा) माम् (देवाः) विद्वांसः (परि) सर्वतः (धत्त) स्थापय (इह) अस्मिन् लोके (सर्वे) समस्ताः ॥

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    विषय

    सर्वोत्तम देवयान मार्ग

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (बहवः) = बहुत-से (देवयानः पन्थान:) = देवों के जाने योग्य [देवा यैर्यान्ति] मार्ग (द्यावापृथिवी अन्तरा) = इस द्युलोक व पृथिवीलोक के बीच में (संचरन्ति) = [वर्तन्ते] हैं, अर्थात् संसार में जितने भी उत्तम मार्ग हैं, (तेषाम्) = उनमें से (यतमः) = जौन-सा सबसे अधिक (अज्यानिम्) = समृद्धि को-लाभ को वहाति प्राप्त कराए, (तस्मै) = उस मार्ग के लिए (सर्वे देवा:) = हे सब देवो! आप (इह) = यहाँ-इस जीवन में (मा परिधत्त) = मुझे धारण करो।

    भावार्थ

    हम देवयान मार्गों में भी सर्वोत्तम देवयान मार्ग से गतिवाले हों। 'द्यावापृथिवी के मध्य में' इन शब्दों में इस भाव को समझकर कि 'मध्यमार्ग' ही श्रेष्ठ है, उसी से चलने का यत्न करें।

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    भाषार्थ

    (बहवः) नाना, (देवयानाः) व्यापारियों के जाने-आने के (पन्थानः) मार्ग, (ये) जो (द्यावापृथिवी अन्तरा) द्युलोक और पृथिवी के मध्य में अर्थात् अन्तरिक्ष में (सं चरन्ति) सम्यक्तया चालू हैं, (तेषाम्) उनमे से (यतमः) जो मार्ग (अज्यानिम्) वयोहानि के अभाव को लक्ष्य करके (वहाति) ले चलता है, (तस्मै) उस मार्ग के लिये (देवाः) हे व्यापारियों ! (सर्वे) तुम सब (इह) इस राज्य में (मा) मुझे (परिधत्त) [मार्ग के] परिज्ञान द्वारा परिपुष्ट करो।

    टिप्पणी

    [देवयानाः; देव हैं व्यापारी, यथा "दिवु क्रीडा विजिगीषा "व्यवहार" आदि (दिवादिः); व्यवहार है व्यापार; व्यापारियों के यान अर्थात् जाने आने के मार्ग हैं, पन्थान:, अर्थात् अन्तरिक्ष के मार्ग। नया व्यापारी, व्यापार के निमित्त, अन्तरिक्षीय सुरक्षित मार्गों के परिज्ञान की प्रार्थना करता है। इस सम्बन्ध में देखो (अथर्व० ३।१५।१-२), जिन में कि इन्द्र- वणिक्, व्यापार निमित्त, अन्तरिक्ष मार्ग से वस्तुक्रय करके धनार्जन चाहता है। अज्यानिम्= अ + ज्या, वयोहानौ (क्र्यादिः) जीवन रक्षा। वहाति =वह प्रापणे (भ्वादिः) लेट् लकार में "आट्"]।

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    विषय

    उत्तम मार्गों से जाने और सुख से जीवन व्यतीत करने का उपदेश।

    भावार्थ

    (ये) जो (देवयानाः) विद्वानों के जाने योग्य (बहवः) बहुत से (पन्थानः) ज्ञानमार्ग (द्यावापृथिवी) द्यौ और पृथिवी, ज्ञान और कर्म, परलोक और इहलोक, ब्रह्म और प्रकृति और राजा प्रजा के (अन्तरा) बीच में (सं चरन्ति) चल रहे हैं (तेषां) उनमें से (यतमः) जो भी (अज्यानिम्) हानिरहित समृद्धि, आत्मरक्षा को (वहाति) प्राप्त कराता है (तस्मै) उस मार्ग के लिये (सर्वे देवाः) सब विद्वान् लोग (मा) मुझे (इह) संसार में (परि धत्त) पुष्ट करें, बल दें, उस उत्तम मार्ग में चलने को कटिबद्ध करें। ब्रह्मज्ञान का मार्ग सबसे उत्तम है। “इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति न चेदवेदीन्महती विनष्टिः।” इसी शरीर में रहकर आत्मज्ञान कर लिया तो ठीक, नहीं तो बड़ा भारी विनाश हो जाता है। कठ उप०।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। १ विश्वेदेवा देवताः, २, ३ रुद्रः। १, ३ जगत्यौ, २ त्रिष्टुप्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Highest Path to Follow

    Meaning

    O divinities of the world, of all those many paths worthy of devas, divine souls, which are nobly and actively followed over earth and heaven, take me and commit me to that sole one, the best, which leads us to a world of peace and progress without violence to any one.

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    Subject

    Visvedevah

    Translation

    Those numerous paths, that run between heaven and earth and are frequented by the enlightened ones, whichever of them carry one to prosperity, may you all the enlightened ones lead me on that very path. here.

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    Translation

    May all the learned men consign me that path way of many pathways of learned men which traverse the realms between the earth and heaven, which leads to perfect and inviolable safety.

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    Translation

    Of all the many pathways frequented by the learned, that traverse realms between God and Matter, consign me, all Ye sages, to that which leadeth to perfect and inviolable safety in the world.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−पूर्वार्द्धो व्याख्यातः−अ० ३।१५।२। यथा (ये) (पन्थानः) मार्गाः (बहवः) नानाविधाः (देवयानाः) विदुषां यानयोग्याः (अन्तरा) मध्ये (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (संचरन्ति) वर्तन्ते (तेषाम्) पथां मध्ये (अज्यानिम्) ज्या वयोहानौ−क्तिन्। अजरां शान्तिम् (यतमः) अ० ४।११।५। यः कश्चित् (वहाति) लेटि, अडागमः। वहेत् प्रापयेत् (तस्मै) मार्गाय (मा) माम् (देवाः) विद्वांसः (परि) सर्वतः (धत्त) स्थापय (इह) अस्मिन् लोके (सर्वे) समस्ताः ॥

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