अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 69/ मन्त्र 1
ऋषिः - अथर्वा
देवता - बृहस्पतिः, अश्विनौ
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - वर्चस् प्राप्ति सूक्त
1
गि॒राव॑र॒गरा॑टेषु॒ हिर॑ण्ये॒ गोषु॒ यद्यशः॑। सुरा॑यां सि॒च्यमा॑नायां की॒लाले॒ मधु॒ तन्मयि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठगि॒रौ । अ॒र॒गरा॑टेषु । हिर॑ण्ये । गोषु॑ । यत् ।यश॑: । सुरा॑याम् । सि॒च्यमा॑नायाम् । की॒लाले॑ । मधु॑ । तत् । मयि॑ ॥६९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
गिरावरगराटेषु हिरण्ये गोषु यद्यशः। सुरायां सिच्यमानायां कीलाले मधु तन्मयि ॥
स्वर रहित पद पाठगिरौ । अरगराटेषु । हिरण्ये । गोषु । यत् ।यश: । सुरायाम् । सिच्यमानायाम् । कीलाले । मधु । तत् । मयि ॥६९.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
यश की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(गिरौ) उपदेश करनेवाले संन्यासी में, (अरगराटेषु) ज्ञान के उपदेशकों में विचरनेवालों [ब्रह्मचारी आदिकों] के बीच, (हिरण्ये) सुवर्ण में और (गोषु) विद्याओं में (यत्) जो (यशः) यश है। और (सिच्यमानायाम् सुरायाम्) बहते हुए जल [अथवा बढ़ते हुए ऐश्वर्य] में और (कीलाले) अन्न में (मधु) जो मीठापन है, (तत्) वह (मयि) मुझ में होवे ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य विद्वानों के सत्सङ्ग से विद्या आदि प्राप्त करके अपना ऐश्वर्य और स्वास्थ्य स्थिर रखकर यश पावें ॥१॥
टिप्पणी
१−(गिरौ) अ० ५।४।१। गॄ विज्ञापने−इ। विज्ञापके। उपदेशके संन्यासिनि (अरगराटेषु) ऋ गतौ−अच्+गॄ विज्ञापने−अच्+अट=गतौ−अच्। अरस्य ज्ञानस्य गरेषु विज्ञापकेषु आचार्येषु अटन्ति विचरन्ति ये तेषु ब्रह्मचारिषु (हिरण्ये) सुवर्णे (गोषु) वाक्षु। विद्यासु (सुरायाम्) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। इति षुञ् अभिषवे=स्नाने, यद्वा, षु ऐश्वर्ये−क्रन्। यद्वा। षुर ऐश्वर्यदीप्त्योः−क, टाप्। सुरा सुनोतेः। निरु० १।११। सुरा, उदकनाम−दयानन्दसंशोधिते निघण्टौ, १।११। जले। ऐश्वर्ये (सिच्यमानायाम्) प्रवहन्त्याम्। प्रवर्धमानायाम् (कीलाले) अ० ४।११।१०। अन्ने−निघ० ३।७। (मधु) माधुर्यम्। बलवत्त्वम् (तत्) (मयि) पुरुषार्थिनि ॥
विषय
यश:+मधु
पदार्थ
१. (गिरौ) = ज्ञान का उपदेश करनेवाले ब्राह्मणों में (अर-ग-राटेषु) = [अरा:, अरय तान् गच्छन्ति इति अरगाः, तेषां राटा: जयघोषा] वीर क्षत्रियों के जयघोषों में, (हिरण्ये) = स्वर्ण में-कृषि-गोरक्षा व वाणिज्य द्वारा स्वर्ण का संग्रह करनेवाले वैश्यों में तथा (गोषु) = गौओं में-गो-सेवक शूरों में (यत् यशः) = जो यशस्वी जीवन है (तत् मयि) = वह यशस्वी जीवन मुझे भी प्राप्त हो। २. (सिच्यमानायाम्) = पर्जन्य द्वारा सिक्त किये जाते हुए (सुरायाम्) = जल में [सुरा-water] तथा (कीलाले) = इन जलों से उत्पन्न अन्न में जो (मधु) = माधुर्य है, वह मुझमें भी हो।
भावार्थ
स्वकर्तव्यपालक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र' का जो यशस्वी जीवन है वह यशस्वी जीवन मेरा भी हो। मेघ-जल और उनसे उत्पन्न अत्रों में जो माधुर्य है, इनके सेवन से वह माधुर्य मुझमें भी हो।
भाषार्थ
(गिरौ) पर्वत में, (अरगराटेषु) अरगराटों में, (हिरण्ये) हिरण्य में, (गोषु) गौओं में (यत्) जो (यश:) यश है; (सिच्यमानायाम्) सीचे जाने वाले (सुरायाम्) शुद्ध जल में, (कीलाले१) अन्न में (मधु) जो मिठास है (तत्) वह सब (मयि) मुझ में हो।
टिप्पणी
[पर्वत में यश है दृढ़ता। अरगराटों अर्थात् अरों वाले घराटों में यश है अन्न को पीसना; यहां केवल पीसना अर्थ अभिप्रेत है, कुकर्मों तथा व्यसनों को पीस डालना। "अरों वाले घराट" हैं "पनचक्कियाँ" जो कि पानी के वेग द्वारा चलती हैं। हिरण्य में यश है हृदयरमणीयता, सबके हृदयों की रमणीय होना। गौओं में यश है निज दुग्ध द्वारा पालन-पोषण, अन्यों को पालना तथा पोषण करना। सुरा है उदक (निघं० १।१२)। कृषि काम में सींचा गया, मीठा उदक मीठे अन्न का उत्पादन करता है, खारा-उदक कृषि कर्म में न सींचना चाहिये। भारतीय दर्शन शास्त्रों के अनुसार शुद्ध जल का गुण है माधुर्य। कीलाल है अन्न (निघं० २।७), प्रकरणानुसार मधुर अन्न, न कि खट्टा कसैला अन्न। सायणाचार्य ने "अरगराटेषु" के निम्नलिखित अर्थ किये हैं "रथचकावयवाः कीलका अरा:। तान् गिरति आत्मना संश्लेषयतीति अरगरो रथः। तेन अटन्ति संचरन्तीति अरगराटा: रथिनो यशस्विनो राजान:। यद्वा अरा: अरयः, तान् गच्छन्तीति अरगाः वीरा भटा: तेषां राटाः जयघोषः। रट परिभाषणे] [१. कीलालम्= कील बन्धने (भ्वादिः), तदर्थम् अलम् (पर्याप्तम, भ्वादिः) जीवात्मा को शरीर के साथ बान्धे रखने में जो पर्याप्त है, समर्थ है- अन्न।]
विषय
यश और तेज की प्रार्थना।
भावार्थ
(यद् यशः) जो यश, कीर्त्ति और धन (गिरौ) पर्वत में, (अरगराटेषु) अरगराट अर्थात् रथों या यन्त्रों से विचरने वाले शिल्पी लोगों में, (हिरण्ये) सुवर्ण में, और (गोषु) गाय बैलों में विद्यमान है और जो (मधु) मधुर रस (सिच्यमानायाम्) पात्रों में पड़नेवाली (सुरायां) सुरा = जलधारा में और (कीलाले) अन्न में है (तत्) वह यश इस (मयि) मेरे आत्मा में विद्यमान हो।
टिप्पणी
अरगराट = सायण के मत से (१) अराः रथचक्रावयवाः कीलकाः, तान् गिरति आत्मना संश्लेषयति इति अरगराः रथाः। तेन अटन्ति संचरन्तीति अरगराटाः रथिनः। (२) यद्वा अरा अरयः तान् गच्छन्ति इति अरगाः वीराः। तेषां राटाः जयघोषाः। अर्थात् अरगराट रथी या वीरों के जयघोष। क्षेमकरण के मत में—“अरस्य ज्ञानस्य गरेषु विज्ञापकेषु अटन्ति इति।” अर्थात् गुरुओं के पास जाने वाले शिष्य। इस मतभेद में सायण ने लिखा है “व्युत्पत्त्यनवधारणाद् नावगृह्यते।” साफ साफ अर्थ नहीं खुलने से इसका अर्थ ठीक तरह से विदित नहीं होता। ग्रीफिथ के मत में अरगराट = घाटियां। अथवा—“अरम् अत्यर्थगरगर् शब्देन अटन्ति इति अरगराटाः = महानदाः। अथवा अरघट्टाः जलयन्त्राणि, धान्यपेषणार्थ जलधारया प्रवर्त्तितं पेषणीयन्त्रं ‘घराट्’ इति प्रसिद्धं तादृशो वा अन्यो विद्युदादियन्त्रविशेषः। अर्थात्—खूब घर घर आवाज़ से चलनेवाले महानद व अरघट्ट वा जल द्वारा चलने वाली चक्कियां, मिलें वा विजली के यन्त्र।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वर्चस्कामो यशस्कामश्चाथर्वा ऋषिः। बृहस्पतिरुताश्विनौ देवता। अनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Honour and Grace
Meaning
The beauty, grace and splendour that is in the mountain and the valley, in gold, in cows and the flowing streams, and the honey sweetness that is in food, may that be in me too.
Subject
Brhaspatib.: Pair of A§vins
Translation
What glory is there in the hill, in valleys, in gold, and in cows, what sweetness is there in the strong drink being poured out, and in the sweet drink, may that come unto me.
Translation
Let mine be the glory which is found in hills which is found in vales, in gold and in cattle’s and let us attain the sweetness which remains in the flowing juice of fruits and in corn.
Translation
Mine be the glory, that is found in the ascetics living on mountains, in the celebates (Brahmcharis) residing in the midst of the preachers of knowledge, in gold, and in cattle. Mine be the sweetness, that is found in flowing Water and in food.
Footnote
Sayana has translated Argrata as a shout of victory by the warriors, or as a king who travels in conveyances. Griffith has translated the word as a vale. Some commentators translate the word as a water-mill घ्राट, and same as an electrical weapon.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(गिरौ) अ० ५।४।१। गॄ विज्ञापने−इ। विज्ञापके। उपदेशके संन्यासिनि (अरगराटेषु) ऋ गतौ−अच्+गॄ विज्ञापने−अच्+अट=गतौ−अच्। अरस्य ज्ञानस्य गरेषु विज्ञापकेषु आचार्येषु अटन्ति विचरन्ति ये तेषु ब्रह्मचारिषु (हिरण्ये) सुवर्णे (गोषु) वाक्षु। विद्यासु (सुरायाम्) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। इति षुञ् अभिषवे=स्नाने, यद्वा, षु ऐश्वर्ये−क्रन्। यद्वा। षुर ऐश्वर्यदीप्त्योः−क, टाप्। सुरा सुनोतेः। निरु० १।११। सुरा, उदकनाम−दयानन्दसंशोधिते निघण्टौ, १।११। जले। ऐश्वर्ये (सिच्यमानायाम्) प्रवहन्त्याम्। प्रवर्धमानायाम् (कीलाले) अ० ४।११।१०। अन्ने−निघ० ३।७। (मधु) माधुर्यम्। बलवत्त्वम् (तत्) (मयि) पुरुषार्थिनि ॥
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