अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
येन॑ सो॒मादि॑तिः प॒था मि॒त्रा वा॒ यन्त्य॒द्रुहः॑। तेना॒ नोऽव॒सा ग॑हि ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । सो॒म॒ । अदि॑ति: । प॒था । मि॒त्रा: । वा॒ । यन्ति॑ । अ॒द्रुह॑: । तेन॑ । न॒: । अव॑सा । आ । ग॒हि॒ ॥७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
येन सोमादितिः पथा मित्रा वा यन्त्यद्रुहः। तेना नोऽवसा गहि ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । सोम । अदिति: । पथा । मित्रा: । वा । यन्ति । अद्रुह: । तेन । न: । अवसा । आ । गहि ॥७.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सुख की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(सोम) हे बड़े ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर ! (येन पथा) जिस मार्ग से (अदितिः) अदीन पृथिवी (वा) और (मित्राः) प्रेरणा करने हारे सूर्य आदि लोक (अद्रुहः) द्रोहरहित होकर (यन्ति) चलते हैं। (तेन) उसी से (अवसा) रक्षा के साथ (नः) हमें (आ गहि) आकर प्राप्त हो ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य सत्य वेदपथ पर चल कर प्रीतिपूर्वक परस्पर रक्षा करें, जैसे सूर्यादि लोक परस्पर आकर्षण से परस्पर उपकार करते हैं ॥१॥
टिप्पणी
१−(येन) (सोम) परमैश्वर्यवन् (अदितिः) अ० २।२८।४। अदीना पृथिवी (पथा) मार्गेण (मित्राः) अ० ३।८।१। डुमिञ् प्रक्षेपणे−क्त्र। प्रेरकाः सूर्यादिलोकाः (वा) चार्थे (यन्ति) संचरन्ति (अद्रुहः) अद्रोग्धारः सन्तः (तेन) पथा (नः) अस्मान् (अवसा) रक्षणेन सह (आ गहि) आगच्छ ॥
विषय
अदितिः, अद्रुहः, मित्राः
पदार्थ
१.हे (सोम) = शान्त प्रभो! (येन पथा) = जिस मार्ग से (अदिति:) = अदीना देवमाता (वा) = अथवा (अद्रुहः) = द्रोह न करनेवाले (मित्रा:) = आदित्य देव (यन्ति) = गति करते हैं, (तेन) = उसी मार्ग से (न:) = हमें (अवसा) = रक्षण के साथ (आगहि) = प्राप्त होओ। २. (अदिति:) = अदीना देवमाता-स्वास्थ्य की देवता है। स्वस्थ होने पर ही दिव्य गुणों का विकास होता है। ('मित्रा:') = आदित्यों का नाम है ये जीवन देते हैं, किसी का जीवन छीनते नहीं। हमारे जीवन का मार्ग भी यही होना चाहिए।
भावार्थ
हम स्वस्थ व स्नेही बनकर प्रभु-रक्षा के पात्र बनें।
भाषार्थ
(सोम) हे सेनाध्यक्ष ! (येन यथा) जिस मार्ग से (अदितिः) माता (वा) या (अद्रुहः) पारस्परिक द्रोहरहित ( मित्राः) मित्र (यन्ति) चलते हैं, (तेन अवसा) उस पारस्परिक रक्षा करने वाले मार्ग द्वारा (नः) हमारी ओर (आ गहि) आ।
टिप्पणी
[अदिति= पृथिवी, वाक्, गौः (निघं० १।९; १।११; २।११)। वेद की दृष्टि में ये तीनों माताएं हैं, पृथिवी माता (अथर्व० १२।१०;१२)। वाक् अर्थात् वेदमाता (अथर्व० १९।७१।१)। गौः तो माता प्रसिद्ध ही है। इस प्रकार अदिति द्वारा इन तीनों का भी ग्रहण हो सके इसलिये अदिति का अर्थ "अदीना देवमाता" (निरुक्त ४।४।१३) न होकर संकुचितार्थ ही, अर्थात् मन्त्र में केवल "माता" अर्थ ही ग्रहण करना चाहिये। इस से "मानुषी माता" अर्थ भी मन्त्र में "अदिति" का किया जा सकता है। "मानुषी माता" स्नेह की सुचिता है, अपनी सब सन्तानों के प्रति। इसी प्रकार "अद्रोही मित्र" भी पारस्परिक स्नेह के सूचक हैं। ये दो दृष्टान्त देकर सेनाध्यक्ष के प्रति कहा है कि तू भी स्नेहमय-रक्षामार्ग द्वारा हम प्रजाजनों की ओर आ, [हमारे शासक रूप में आ]।
विषय
उत्तम शासन की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (सोम) राजन् ! (येन पथा) जिस मार्ग से या उपाय से (अदितिः) अखण्डित शासक राजा और (मित्राः वा) उसके प्रजाधिकारी जो प्रजा को परस्पर के मरने मारने से रक्षा करने हारे हैं वे (अद्रुहः) बिना परस्पर द्रोह किये (यन्ति) गमन करते हैं (तेन) उस (अवसा) प्रजारक्षणकारी बल से (नः) हमें (आ गहि) प्राप्त हो और हमें अपना।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। सोमो देवता, विश्वेदेवा देवताः। १-३ गायत्र्यः। ३ निचृत्। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Path without Hate
Meaning
O Soma, come and be with us for our protection and advancement, by the path whereby Aditi, inviolable earth, and Mitra, sun and other stars, move in orbit without hate or jealousy.
Subject
Soma
Translation
O blissful Lord, by which path-way the earth and the suns (adityah of twelve months) move never hostile (to each other), thereby may you come to us with help.
Translation
O All-impelling Lord! come to us with that protective power and ways through which the harmless globe and sun with other planets move round.
Translation
O King, what pathway, the Earth and Sun, like companions free from guile use, come thou thereby to us, with thy power of protection.
Footnote
A king should be friendly to his subjects, as the Sun and Earth are to each other.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(येन) (सोम) परमैश्वर्यवन् (अदितिः) अ० २।२८।४। अदीना पृथिवी (पथा) मार्गेण (मित्राः) अ० ३।८।१। डुमिञ् प्रक्षेपणे−क्त्र। प्रेरकाः सूर्यादिलोकाः (वा) चार्थे (यन्ति) संचरन्ति (अद्रुहः) अद्रोग्धारः सन्तः (तेन) पथा (नः) अस्मान् (अवसा) रक्षणेन सह (आ गहि) आगच्छ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal