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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 81 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 81/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - त्वष्टा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
    1

    यं प॑रिह॒स्तमबि॑भ॒रदि॑तिः पुत्रका॒म्या। त्वष्टा॒ तम॑स्या॒ आ ब॑ध्ना॒द्यथा॑ पु॒त्रं जना॑दिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । प॒रि॒ऽह॒स्तम् । अबि॑भ: । अदि॑ति: । पु॒त्र॒ऽका॒म्या । त्वष्टा॑ । तम् । अ॒स्यै॒ । आ । ब॒ध्ना॒त् । यथा॑ । पु॒त्रम् । जना॑त् । इति॑ ॥८१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यं परिहस्तमबिभरदितिः पुत्रकाम्या। त्वष्टा तमस्या आ बध्नाद्यथा पुत्रं जनादिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । परिऽहस्तम् । अबिभ: । अदिति: । पुत्रऽकाम्या । त्वष्टा । तम् । अस्यै । आ । बध्नात् । यथा । पुत्रम् । जनात् । इति ॥८१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 81; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    उत्तम गर्भधारण का उपदेश।

    पदार्थ

    (पुत्रकाम्या) उत्तम सन्तान की कामनावाली (अदितिः) अखण्डव्रता स्त्री ने (यम्) जिस [जैसे] (परिहस्तम्) हाथ का सहारा देनेवाले पति को (अबिभः) धारण किया है। (त्वष्टा) विश्वकर्मा वा शिल्पी परमात्मा (तम्) उस [वैसे ही पति] को (अस्यै) इस पत्नी के लिये (आ बध्नात्) नियमबद्ध करे (यथा) जिससे वह पत्नी (पुत्रम्) कुलशोधक सन्तान (जनात्) उत्पन्न करे, (इति) यही प्रयोजन है ॥३॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार स्त्री-पुरुष वेदविहित रीति से प्रेम के साथ उत्तम सन्तान उत्पन्न करते रहे हैं, उसी प्रकार से स्त्री-पुरुष परस्पर अनुराग के साथ श्रेष्ठ सन्तान उत्पन्न करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(यम्) यादृशम् (परिहस्तम्) परोपकाराय प्रसृतकरं पुरुषम् (अबिभः) डुभृञ् धारणपोषणयोः−लङि रूपम्। धृतवती (अदितिः) अ० २।२८।४। दो अवखण्डने−क्तिन्। अखण्डव्रता स्त्री (पुत्रकाम्या) काम्यच्च। पा० ३।१।९। इति पुत्र−काम्यच् इच्छार्थे। पुत्रं कुलशोधकं सन्तानम् आत्मनमिच्छन्ती (त्वष्टा) अ० २।५।६। विश्वकर्मा परमात्मा (तम्) तादृशं पतिम् (अस्यै) पत्नीहिताय (आ) समन्तात् (बध्नात्) नियमे बध्नातु (यथा) येन प्रकारेण (पुत्रम्) कुलशोधकं सन्तानम् (जनात्) जनेर्ण्यन्तात् लेटि आडागमः। छन्दस्युभयथा। पा० ३।४।११७। आर्धधातुकत्वात् णिलोपः। जनयेत् ॥

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    विषय

    पुत्रकाम्या अदिति

    पदार्थ

    १. (पुत्रकाम्या) = उत्तम सन्तान की कामनावाली (अदिति:) = अखण्डित व्रतवाली यह स्त्री (यम्) = जिस (परिहस्तम्) = हाथ का सहारा देनेवाले पुरुष को (अविभः) = धारण करती है, (त्वष्टा) = संसार का निर्माता प्रभु (तम्) = उस पुरुष को (अस्यै आबध्नात्) = इसके लिए बाँधे-इसके साथ उस पुरुष के सम्बन्ध को स्थिर करे, (यथा) = जिससे यह (पुत्रं जनात्) = उत्तम सन्तान को जन्म देनेवाली हो। (इति) = यही तो इस सम्बन्ध का उद्देश्य है।

    भावार्थ

    पत्नी को पुत्र की ही कामनावाला होना चाहिए। वह व्रतमय जीवनवाली होगी तो सन्तान भी उत्तम होगी। उसे पतिव्रता होना, जिससे सन्तान भी व्रतमय जीवनवाले हों।

     

    विशेष

    धन कमाने की योग्यतावाला यह पुरुष गृहस्थ में प्रवेश करता है। घर को सौभाग्य-सम्पन्न बनानेवाला [गृभ्णामि ते सौभगत्वाय हस्तम्], यह पति 'भग' कहलाता है। अगले तीन सूक्तों का ऋषि यह भग ही है।

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    भाषार्थ

    (पुत्रकाम्या) पुत्र की कामनावाली (अदितिः) अक्षतयोनि पत्नी ने (यम् परिहस्तम्) जिस हस्तग्रहण करने वाले पति को (अबिभः) धारित किया है, स्वीकृत किया है, (तम्) उसे (त्वष्टा) जगत् के रचयिता ने (अस्य) इस पत्नी के लिये (आ बध्नात्) गठजोड़े की विधि में बान्ध दिया है, (यथा) ताकि (पुत्रम्, जना, इति) यह पत्नी पुत्र को पैदा करे, इसलिये।

    टिप्पणी

    [अदितिः= अ + दो अवखण्डने (दिवादिः) +क्तिन्। विवाह में पाणिग्रहण तथा पति-पत्नी में गठ-जोड़ किया जाता है]।

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    विषय

    पति पत्नी का पाणि-ग्रहण, सन्तानोत्पादन कर्त्तव्यों का उपदेश।

    भावार्थ

    (अदितिः) अखण्डित, ब्रह्मचारिणी स्त्री (पुत्रकाम्या) पुत्र की अभिलाषा वाली होकर (परिहस्तम्) निज पाणिग्रहण करने वाले जिस पति को (अबिभः) धारण करती है (तम्) उसको (अस्याः) इस पत्नी के संग (त्वष्टा) परमात्मा (इति) इसलिये (आ बध्नात्) सब प्रकार से बांधता है कि (यथा) जिससे यह स्त्री (पुत्रं जनात्) पुत्र को उत्पन्न करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्वष्टा ऋषिः। मन्त्रोक्ता उत आदित्यो देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Conjugal Love

    Meaning

    Aditi, the inviolable woman, who loves to have the baby, has accepted the helping hand of the husband and has observed her conjugal discipline. So may Tvashta, divine architect of life, bind the husband too in conjugal discipline so that the couple may have noble progeny.

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    Translation

    Tlie bangle, which was wom -by aditi (the earth) with the . desire of having a son - the universal architect has put ‘the - Same on this woman, so that she may bear a son.

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    Translation

    Aditih, the material cause of the universe as desiring the creation of the universe accepts the creator of the universe, the efficient cause as its progenitive counter-part, so the All-creating Lord binds this man as the husband of this woman so that she may give birth to child.

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    Translation

    A celibate woman, desirous of a son, accepts whomsoever as her husband, God binds him with that wife, for this purpose that she may give birth to a son.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(यम्) यादृशम् (परिहस्तम्) परोपकाराय प्रसृतकरं पुरुषम् (अबिभः) डुभृञ् धारणपोषणयोः−लङि रूपम्। धृतवती (अदितिः) अ० २।२८।४। दो अवखण्डने−क्तिन्। अखण्डव्रता स्त्री (पुत्रकाम्या) काम्यच्च। पा० ३।१।९। इति पुत्र−काम्यच् इच्छार्थे। पुत्रं कुलशोधकं सन्तानम् आत्मनमिच्छन्ती (त्वष्टा) अ० २।५।६। विश्वकर्मा परमात्मा (तम्) तादृशं पतिम् (अस्यै) पत्नीहिताय (आ) समन्तात् (बध्नात्) नियमे बध्नातु (यथा) येन प्रकारेण (पुत्रम्) कुलशोधकं सन्तानम् (जनात्) जनेर्ण्यन्तात् लेटि आडागमः। छन्दस्युभयथा। पा० ३।४।११७। आर्धधातुकत्वात् णिलोपः। जनयेत् ॥

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