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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 85/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मानाशन सूक्त
    1

    व॑र॒णो वा॑रयाता अ॒यं दे॒वो वन॒स्पतिः॑। यक्ष्मो॒ यो अ॒स्मिन्नावि॑ष्ट॒स्तमु॑ दे॒वा अ॑वीवरन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒र॒ण: । वा॒र॒या॒तै॒ । अ॒यम् । दे॒व:। वन॒स्पति॑: । यक्ष्म॑: । य: । अ॒स्मिन् । आऽवि॑ष्ट: । तम् । ऊं॒ इति॑ । दे॒वा: । अ॒वी॒व॒र॒न् ॥८५.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वरणो वारयाता अयं देवो वनस्पतिः। यक्ष्मो यो अस्मिन्नाविष्टस्तमु देवा अवीवरन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वरण: । वारयातै । अयम् । देव:। वनस्पति: । यक्ष्म: । य: । अस्मिन् । आऽविष्ट: । तम् । ऊं इति । देवा: । अवीवरन् ॥८५.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 85; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग के नाश के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (अयम्) यह (देव) दिव्य गुणवाला, (वनस्पतिः) सेवनीय गुणों का रक्षक (वरणः) स्वीकार करने योग्य [वैद्य अथवा वरणा अर्थात् वरुणवृक्ष] [राजरोग आदि को] (वारयातै) हटावे। (यः) जो (यक्ष्मः) राजरोग (अस्मिन्) इस पुरुष में (आविष्टः) प्रवेश कर गया है (तम्) उसको (उ) निश्चय करके (देवाः) व्यवहार जाननेवाले विद्वानों ने (अवीवरन्) हटाया है ॥१॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार से सद्वैद्य पूर्वज विद्वानों से शिक्षा पाकर बड़े-बड़े रोगों को वरण वा अन्य ओषधिद्वारा मिटाता है, वैसे ही मनुष्य उत्तम गुण को प्राप्त करके दुष्कर्मों का नाश करे ॥१॥ (वरणः) ओषधिविशेष भी है, जिसको वरुण, वरणा और उरण आदि कहते हैं। वरुण कटु, उष्ण, रक्तदोष, शीत वात हरनेवाला, चिकना और दीपन है ॥

    टिप्पणी

    १−(वरणः) सुयुरुवृञ युच्। उ० २।७४। इति वृञ्−वरणे=स्वीकरणे−युच्। स्वीकरणीयः। वैद्यो वरुणवृक्षो वा। वरुणस्य गुणाः। कटुत्वम् उष्णत्वम्, रक्तदोषशीतवातहरत्वम्, स्निग्धत्वम्, दीपनत्वम्−इति शब्दकल्पद्रुमात् (वारयातै) अ० ४।७।१। वारयातेर्लेटि आडागमः। वैतोऽन्यत्र। पा० ३।४।९६। इति ऐकारः। वारयतु। निवर्तयतु (अयम्) प्रसिद्धः। (देवः) दिव्यः (वनस्पतिः) अ० १।३५।३। वन सेवने−अच्। वन+पतिः, सुट् च। सेवनीयगुणानां रक्षकः (यक्ष्मः) अ० २।१०।५। राजरोगः क्षयः (यः) (अस्मिन्) पुरुषे (आविष्टः) प्रविष्टः (तम्) यक्ष्मम् (उ) एव (देवाः) व्यवहारकुशला विद्वांसः (अवीवरन्) वारयतेर्लुङ् चङि रूपम्। निवारितवन्तः ॥

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    विषय

    वरण:-वरुणः

    पदार्थ

    १. (वरण:) = यह वरणवृक्ष (वारयातै) = रोग का निवारण करे। (अयम्) = यह (देव:) = रोगों को जीतने की कामनावाला है [दिव् विजिगीषायाम्] (वनस्पति:) = [वनस् lovliness] शरीर के सौन्दर्य का रक्षक है। (य: यक्ष्म:) = जो रोग (अस्मिन् आविष्टः) = इस पुरुष में प्रवेश कर गया है, (तम् उ) = उसे निश्चय से (देवा:) = ज्ञानी वैद्य (अवीवरन्) = इस वरण [वरना] के प्रयोग से हटाते हैं।

    भावार्थ

    वरण को आयुर्वेद में '(वरुणः पित्तलो भेदी श्लेष्मकृष्ठाश्ममारुतान् । निहन्ति गुल्मवातास्त्रकृमींश्चोष्णोऽग्रिदीपनः ।।' रक्तदोषघ्नः शिरोवातहरः स्निग्ध आग्नेयो विद्धि वाघतनश्च') कहा है। यह 'श्लेष्मा, मूत्रदोष, वातदोष, गुल्म, वातरक्त, कृमिदोष, रक्तदोष व शिरोवात' को दूर करनेवाला है। यह आग्रेय है। इसके प्रयोग से हम नीरोग शरीरवाले बनें।

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    भाषार्थ

    (अयम्) यह (देवः) दिव्यगुणों वाला (वरण:) वरण नाम वाला या यक्ष्म का निवारण करनेवाला (वनस्पतिः) बनस्पति (वारयातै) यक्ष्म को निवारित करे। (यः) जो (यक्ष्मः) यक्ष्म अर्थात् क्षय रोग (अस्मिन्) इस क्षय रोगी में (आविष्टः) प्रविष्ट है (तम्) उसे (उ) निश्चय से (देवा:) दिव्यगुणी वैद्यों ने (अवीवरन्) निवारित किया है।

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    विषय

    यक्ष्मा रोग की चिकित्सा।

    भावार्थ

    यक्ष्मा रोग के नाश का उपदेश करते हैं। (अयम्) यह (वरणः) वरण नाम का (देवः) दिव्यगुण वाला (वनस्पतिः) वृक्ष (वारयातै) बहुत से दोषों को नाश करता है। (अस्मिन्) इस पुरुष में (यः) जो (यक्ष्मः) रोगकारी कीटाणु (आविष्टः) प्रवेश कर गये हैं (तम् उ) उनको भी (देवाः) विद्वान् लोग (अवीवरन्) वरण नामक औषध के बल से ही दूर करदें। वरण = वरुण = जीरक, इसके तीन भेद हैं। शुक्ल जीरक, कृष्ण जीरक और बृहत्पाली। जिन में बृहत्पाली जीर्ण ज्वर का भी नाशक है। कृमिघ्न तो सभी हैं वरुण तमाल वृक्ष का भी नाम है। वह सुगन्ध होने से कदाचित् यक्ष्मदोष को दूर करने में सहायक हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषि यक्ष्मनाशनकामः। वनस्पतिर्देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Yakshma Cure

    Meaning

    This Varuna tree of divine efficacious qualities wards off and cures yakshma, the consumptive disease, which affects the body system of this patient. Learned physicians use this and cure the disease.

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    Subject

    Vanaspatih : A herb

    Translation

    This divine fast-tree Varana (Varuna; Creataeva roxburghii) is a preventive remedy, May the enlightened ones cure the consumption that has entered this man.

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    Translation

    Let this medicinal plant which possesses remedial qualities and is called varana herb keep disease away. The learned and experienced physicians with this drive away the affection of consumption which has entered in this man.

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    Translation

    May this qualified, experienced, capable physician keep disease away. The learned persons have driven off consumption that entered and possessed this man.

    Footnote

    Varana is the name of a tree as well, Crataeva Roxburghii, found in ail parts of India, used in medicine to cure consumption. Varana is named also as Varuna and Jïrak. Jïrak is of three kinds, white, dark and Brihātpali, which cures fever. All three kinds of Jïrak are the killers of the bacilli of consumption. Varana, through its intense fragrance helps curing consumption. Varana is the name of a medicine also, which is called Varuna, Varanā and Urna. This medicine is pungent, hot in nature, purifies blood and removes wind, vide Shabdakalpadruma; Monier-Williams, Sanskrit English Dictionary. I: Physician. Thy:-Patient’s.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(वरणः) सुयुरुवृञ युच्। उ० २।७४। इति वृञ्−वरणे=स्वीकरणे−युच्। स्वीकरणीयः। वैद्यो वरुणवृक्षो वा। वरुणस्य गुणाः। कटुत्वम् उष्णत्वम्, रक्तदोषशीतवातहरत्वम्, स्निग्धत्वम्, दीपनत्वम्−इति शब्दकल्पद्रुमात् (वारयातै) अ० ४।७।१। वारयातेर्लेटि आडागमः। वैतोऽन्यत्र। पा० ३।४।९६। इति ऐकारः। वारयतु। निवर्तयतु (अयम्) प्रसिद्धः। (देवः) दिव्यः (वनस्पतिः) अ० १।३५।३। वन सेवने−अच्। वन+पतिः, सुट् च। सेवनीयगुणानां रक्षकः (यक्ष्मः) अ० २।१०।५। राजरोगः क्षयः (यः) (अस्मिन्) पुरुषे (आविष्टः) प्रविष्टः (तम्) यक्ष्मम् (उ) एव (देवाः) व्यवहारकुशला विद्वांसः (अवीवरन्) वारयतेर्लुङ् चङि रूपम्। निवारितवन्तः ॥

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