अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 103/ मन्त्र 1
ऋषिः - प्रजापतिः
देवता - ब्रहात्मा
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - क्षत्रिय सूक्त
2
को अ॒स्या नो॑ द्रु॒होव॒द्यव॑त्या॒ उन्ने॑ष्यति क्ष॒त्रियो॒ वस्य॑ इ॒च्छन्। को य॒ज्ञका॑मः॒ क उ॒ पूर्ति॑कामः॒ को दे॒वेषु॑ वनुते दी॒र्घमायुः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक: । अ॒स्या: । न॒: । द्रु॒ह: । अ॒व॒द्यऽव॑त्या: । उत् । ने॒ष्य॒ति॒ । क्ष॒त्रिय॑: । वस्य॑: । इ॒च्छन् । क: । य॒ज्ञऽका॑म: । क: । ऊं॒ इति॑ । पूर्ति॑ऽकाम: । क: । दे॒वेषु॑ । व॒नु॒ते॒ । दी॒र्घम् । आयु॑: ॥१०८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
को अस्या नो द्रुहोवद्यवत्या उन्नेष्यति क्षत्रियो वस्य इच्छन्। को यज्ञकामः क उ पूर्तिकामः को देवेषु वनुते दीर्घमायुः ॥
स्वर रहित पद पाठक: । अस्या: । न: । द्रुह: । अवद्यऽवत्या: । उत् । नेष्यति । क्षत्रिय: । वस्य: । इच्छन् । क: । यज्ञऽकाम: । क: । ऊं इति । पूर्तिऽकाम: । क: । देवेषु । वनुते । दीर्घम् । आयु: ॥१०८.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
द्रोह के त्याग का उपदेश।
पदार्थ
(वस्यः) उत्तम फल (इच्छन्) चाहता हुआ (कः) प्रजापति [प्रजापालक प्रकाशमान वा सुखदाता] (क्षत्रियः) क्षत्रिय (नः) हमको (अस्याः) इस (अवद्यवत्याः) धिक्कारयोग्य (द्रुहः) डाह क्रिया से (उत् नेष्यति) उठावेगा। (कः) प्रजापति [मनुष्य] (यज्ञकामः) पूजनीय व्यवहार चाहनेवाला और (कः) प्रजापति (उ) ही (पूर्तिकामः) पूर्ति [सिद्धि] चाहनेवाला [होता है], (कः) प्रजापति [मनुष्य] (देवेषु) उत्तम गुणों के बीच (दीर्घम्) दीर्घ (आयुः) आयु (वनुते) माँगता है ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य द्रोह छोड़कर पुरुषार्थ करते हुए उत्तम गुण प्राप्त करके सुख बढ़ाते रहें ॥१॥
टिप्पणी
१−(कः) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। कच दीप्तौ वा कमु कान्तौ वा क्रमु पादविक्षेपे गतौ च-ड प्रत्ययः। कः कमनो वा क्रमणो वा सुखो वा-निरु० १०।२२। कमिति सुखनाम-निघ० ३।६। दीप्यमानः। सुखकारकः। प्रजापतिर्मनुष्यः (अस्याः) वर्तमानायाः (नः) अस्मान् (द्रुहः) द्रुह जिघांसायाम्-क्विप्। द्रोहक्रियायाः। दुर्गतेः सकाशात् (अवद्यवत्याः) निन्द्यकर्मयुक्तायाः (उन्नेष्यति) उद्धरिष्यति (क्षत्रियः) अ० ४।२२।१। क्षत्रे राज्ये साधुः (वस्यः) अ० ६।४७।३। वसीयः। प्रशस्तं फलम् (इच्छन्) अभिलष्यन् (कः) (यज्ञकामः) पूजनीयव्यवहारं कामयमानः (कः) (उ) एव (पूर्तिकामः) सिद्धिकामः (कः) (देवेषु) उत्तमगुणेषु वर्तमानः (वनुते) वनु याचने। याचते (दीर्घम्) (आयुः) जीवनम् ॥
विषय
यज्ञकाम: पूर्तिकामः
पदार्थ
१.(क:) = [को ह वै नाम प्रजापति:-तै०२.२.१०.२] वह अनिरुक्त प्रजापति (क्षत्रियः) = क्षतों से हमारा त्राण करनेवाला है। (वस्यः इच्छन्) = प्रशस्त फल को हमारे लिए देने की इच्छा करता हुआ (नः) = हमें (अस्या:) = इस (अवघवत्या) = गर्ह्या कौवाली (द्रुहः) = जिघांसा से (उन्नेष्यति) = अवश्य ऊपर उठाएगा। २. (क:) = वह प्रजापति (यज्ञकाम:) = हमसे अनुष्ठीयमान यज्ञों को चाहता है। (कः उ) = वह प्रजापति ही (पूर्तिकाम:) = हमारी धनादि की पूर्ति को चाहता है। (क:) = वह प्रजापति ही (देवेषु) = देववृत्ति के व्यक्तियों में दीर्घ (आयु:) = दीर्घ जीवन को (वनुते) = देते हैं।
भावार्थ
प्रभु हमें हिंसावृत्ति से दूर करके यज्ञों द्वारा समृद्ध करते हैं और हमें दीर्घ जीवन प्राप्त कराते हैं।
भाषार्थ
(क्षत्रियः) क्षतों से त्राण करने वाला, और (वस्यः इच्छन्) श्रेष्ठ राज्य सम्पत् चाहता हुआ (कः) कौन व्यक्ति (अस्याः) इस (अवद्यवत्याः) निन्दा से युक्त (द्रुहः) जिघांसा से (नः) हम प्रजाजनों का (उन्नेष्यति) उद्धार करेगा। (कः) कौन (यज्ञकामः) राष्ट्र यज्ञ की कामना वाला है, (कः उ) और कौन (पुर्तिकामः) राष्ट्र-यज्ञ की पूर्ति की कामना वाला है, (कः) कौन (देवेषु) राष्ट्र के देवों में (दीर्घम्, आयुः) दीर्घ आयु (वनुते) चाहता है।
टिप्पणी
[यदि कोई राष्ट्र, परकीय राष्ट्रपति की जिघांसा का शिकार बन जाय, तो हिंसित राष्ट्र के प्रजाजन निज उद्धार के लिये किसी क्षत्रिय द्वारा सहायता के अभिलाषी मन्त्र में प्रतीत होते हैं। “दीर्घम् आयुः" का अभिप्राय है पराजित हुए राष्ट्र को पुनः स्वतन्त्र कर, राष्ट्र के शासक-देवों में सदा कीर्ति लाभ द्वारा ऐतिहासिक दृष्टि से सदा जीवित रहना। (वनुते= वनु याचने (तनादिः)]।
विषय
प्रजापति ईश्वर का वर्णन।
भावार्थ
(कः) प्रजापति राजा और परमेश्वर वा कौन (क्षत्रियः) क्षत्रिय, बलवान् (वस्यः*) उत्तम फल की (इच्छन्) अभिलाषा करता हुआ (नः) हमें (अस्याः) इस अद्भुत (अवद्यवत्याः) निन्दा योग्य, घृणित (द्रुहः) पारस्परिक द्रोह से (उत् नेष्यति) ऊपर उठाएगा। ईश्वर या प्रजापति के सिवाय कौन दूसरा (यज्ञकामः) इस महान् यज्ञ को, जिसमें लक्षों जीव परस्पर संगति किये जा रहे हैं, चलाने की इच्छा करता है, और इस महाप्रभु के सिवाय (कः) कौन दूसरा है जो (पूर्तिकामः) इस समस्त संसाररूप यज्ञ को पूर्ण करने की अभिलाषा रखता है, और (कः) प्रजापति ईश्वर के सिवाय और कौन है जो (देवेषु) सूर्य, चन्द्र आदि दिव्य तेजोमय पदार्थों में विद्वान् तपस्वी पुरुषों में (दीर्घम्) दीर्घ (आयुः) जीवन को (वनुते) प्रदान करता है। इस प्रकार समस्त जीवों में प्रेमभाव उत्पन्न करके परस्पर के घातप्रतिघात को मिटाने वाला, जीव-संसार को हिंसा प्रतिहिंसा के भावों को हटाकर उन्नत करने वाला, संसार को चलाने हारा, पूर्ण करनेहारा और दीर्घ जीवन का दाता विश्व का आत्मा वही प्रभु है। इसी प्रकार प्रजाओं में परस्पर के झगड़े मिटाने वाला, एक दूसरे की प्रतिहिंसा के भाव को हटाकर उन्नत करनेवाला, राष्ट्रयज्ञ के चलाने और पूर्ण करने वाला, राष्ट्र का आत्मा, राजा प्रजापति है। शरीर में वीर्यवान् एवं कर्ता, आत्मा ही वैसा प्रजापति है।
टिप्पणी
‘वस्यः बसीयः प्रशस्तं फलम्’ इति सायणः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। आत्मा देवता। त्रिष्टुप् छन्दः। एकर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Kshatriya the Saviour
Meaning
Who would take us out of this despicable misery of jealousy and enmity and raise us higher? Answer: Kshatriya, the just and saviour warrior, who desires the happiness and noble wealth of life. Who is the lover of yajna? Who is the seeker and achiever of fulfilment? Who is the one that wins long life among the divines? Answer: Prajapati, saviour, protector and sustainer of the people, Kshatriya, the Ruler.
Subject
Atman
Translation
Who the protecting warrior, desirous of promoting welfare, will raise us up out of this shameful mutual malice ? Who is willing to sacrifice ? Who is desirous of fulfillment ? Who bestows a long life-span on the enlightened ones ?
Comments / Notes
MANTRA NO 7.108.1AS PER THE BOOK
Translation
The happy ruler desiring fortune of the state will free us from this shameful mischievous aversion. Happy householder desiring to perform yajna and happy householder desiring accomplishment and happy learned men chooses long life between various virtues.
Translation
Who, besides the God Almighty, the Giver of the nice fruit of our actions, will free us from this censurable malice. Who, but God, wills to control the Yajna of the world in which millions of souls work together. Who else than God desires to perfect this Yajna of the world. Who, besides God, grants longevity to the sages.
Footnote
None but God controls the universe. He grants us the fruit of actions, and long life.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(कः) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। कच दीप्तौ वा कमु कान्तौ वा क्रमु पादविक्षेपे गतौ च-ड प्रत्ययः। कः कमनो वा क्रमणो वा सुखो वा-निरु० १०।२२। कमिति सुखनाम-निघ० ३।६। दीप्यमानः। सुखकारकः। प्रजापतिर्मनुष्यः (अस्याः) वर्तमानायाः (नः) अस्मान् (द्रुहः) द्रुह जिघांसायाम्-क्विप्। द्रोहक्रियायाः। दुर्गतेः सकाशात् (अवद्यवत्याः) निन्द्यकर्मयुक्तायाः (उन्नेष्यति) उद्धरिष्यति (क्षत्रियः) अ० ४।२२।१। क्षत्रे राज्ये साधुः (वस्यः) अ० ६।४७।३। वसीयः। प्रशस्तं फलम् (इच्छन्) अभिलष्यन् (कः) (यज्ञकामः) पूजनीयव्यवहारं कामयमानः (कः) (उ) एव (पूर्तिकामः) सिद्धिकामः (कः) (देवेषु) उत्तमगुणेषु वर्तमानः (वनुते) वनु याचने। याचते (दीर्घम्) (आयुः) जीवनम् ॥
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